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विश्व हिंदी दिवस कार्यक्रम में विदेश राज्‍य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी का संबोधन

जनवरी 10, 2022

सचिव (पश्चिम) श्रीमती रीनत संधुजी,
अपर सचिव (प्रशासन) तथा डीन, सुषमा स्वराज्य विदेश सेवा संस्थान,
श्री अरूण कुमार चैटर्जी जी,
संयुक्त सचिव (राजभाषा)
मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण
विदेशों से जुड़े हुए हमारे राजनयिकगण
पासपोर्ट अधिकारी और मित्रो।


मैं विदेश मंत्रालय की ओर से आप सभी राजनयिकों और अधिकारियों को विश्‍व हिंदी दिवस और नव वर्ष की शुभकामनाएं देती हूं।

साथियो! विदेश मंत्रालय द्वारा राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आप सभी के सहयोग और अनेक कदम सार्थक प्रयास कर रहें हैं। और सितंबर माह में इसी विषय से सम्बंधित बड़े पैमाने पर हमने हिंदी दिवस और हिंदी पखवाड़े का भी आयोजन किया था जिसमे मैंने खुद भाग लिया था और हिंदी प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत और प्रोत्‍साहित भी किया गया था। हिन्दी दिवस पर मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा राजभाषा में प्रतिज्ञा भी ली गयी थी।

मंत्रालय द्वारा सरकारी कामकाज को हिंदी में करने में आने वाली दिक्कतें, परेशानियों और झिझक को दूर करने के लिए अलग-अलग विषयों पर विषय विशेषज्ञों द्वारा हिंदी कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता है। नियमित आधार पर मंत्रालय में राजभाषा हिंदी कामकाज की समीक्षा भी की जाती है और आवश्यक निर्देश जारी किए जाते हैं।

हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस के सफल आयोजन के लिए मंत्रालय द्वारा मिशनों को आवश्यक सहायता भी प्रदान की जाती है। विदेश स्थित भारतीय मिशनों के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार उससे जुड़ी हुई विदेशी संस्थाओं और संगठनों आदि को हिंदी शिक्षण सामग्री, सॉफ्टवेयर, साहित्य आदि की आपूर्ति भी करवाई जाती है।

साथियो! विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ ही भारतीय संस्‍कृति को बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के माध्‍यम से विभिन्न देशों में कुल 49 अध्‍ययन पीठें स्‍थापित की हैं जिसमें से 13 पीठें हिंदी की हैं। साथ ही, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद विदेश स्थित भारतीय सांस्‍कृतिक केंद्रों में हिंदी शिक्षण के लिए भारत से अध्‍यापकों की व्‍यवस्‍था भी की जाती है।

लंदन, सिंगापुर और फिज़ी स्थित मिशनों में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (नराकास/TOLIC) का गठन भी किया गया है ताकि विदेशों में भारत सरकार के अन्य कार्यालयों में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके। विदेश में अन्य शहरों में भी इस समिति के गठन की संभावनाओं की तलाश की जा रही है।

साथियो! आप भली-भांति जानते हैं कि विदेश मंत्रालय हिंदी को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर ले जाने और संयुक्त राष्ट्र संघ में इसका प्रयोग बढ़ाने तथा दुनिया भर में इसके प्रचार-प्रसार के लिए लगातार प्रयासरत रहा है। हिंदी का अंतरराष्‍ट्रीय भाषा के रूप में प्रचार-प्रसार तथा हिंदी को संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए मंच तैयार करने के उद्देश्‍य से वर्ष 2008 से मॉरीशस में विश्‍व हिंदी सचिवालय की स्थापना भी की गयी।

साथियो! आपको यह बताते हुए मैं बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ कि आज 100 से भी ज्यादा देशों में 670 विश्वविद्यालयों में, शैक्षिक संस्थाओं और विद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। इसके वैश्विक स्वरूप का एक पहलू यह भी है कि विदेशों से बड़ी संख्या में छात्र हमारे देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों/संस्थाओं में हिंदी पढ़ने के लिए आ रहे हैं। और इसके कई कारण हैं, जिसमें मुख्य रूप से भारत का तेजी से आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना है। ऐसे में विदेशी कंपनियों को अहसास है कि हमारे देश की भाषा को बिना अपनाए वे यहाँ पर सफलता प्राप्त नहीं कर सकते और हिंदी आज बाजार की भी भाषा बन चुकी है इसलिए अधिकांश लोग हिंदी भाषा भी सीख रहे हैं।

मंत्रालय और इसके अधीनस्थ कार्यालयों में किए जा रहे काम काज का समय-समय पर संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निरीक्षण किया जाता है। गत वर्ष 9 अधीनस्थ कार्यालयों का राजभाषा हिंदी संबंधी निरीक्षण किया गया और समिति द्वारा सभी कार्यालयों में हिंदी का कामकाज संतोषजनक पाया गया। इन कार्यालयों की प्रशंसा भी की गयी। आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि हमारे 22 पासपोर्ट कार्यालय ऐसे हैं जिनमें 80 प्रतिशत से अधिक कार्मिक अपना पूरा काम हिंदी में करते हैं।

विदेश मंत्रालय अपने मुख्यालय और अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई साल से कोई न कोई नई योजना या कार्यक्रम आयोजित करता है। इसी क्रम में 2019 में 'क', 'ख' और 'ग' क्षेत्र में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले 3 क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालयों को पुरस्कृत करने के लिए पुरस्कार योजना भी शुरू की गई। इस वर्ष विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर इन कार्यालयों की घोषणा करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है। अतः 'क' क्षेत्र से बरेली, 'ख' क्षेत्र से चंडीगढ़ और 'ग' क्षेत्र से बेंगलूरु स्थित पासपोर्ट कार्यालयों को हिंदी में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने वाले कार्यालय के रूप में चुना गया है। मुझे यह बताया गया है कि 'ख' क्षेत्र में स्थित चंडीगढ़ पासपोर्ट कार्यालय यह पुरस्कार पिछले 4 सालों से लगातार प्राप्त कर रहा है और बेंगलुरु स्थित पासपोर्ट कार्यालय को यह पुरस्कार दूसरी बार मिला है।

मैं यह जानकारी भी पासपोर्ट अधिकारियों के साथ साझा करना चाहूंगी कि विश्व हिंदी दिवस पर इस साल से तीन उत्कृष्ट हिंदी पत्रिकाओं को भी पुरस्कृत करने की योजना शुरू की गई है और मुझे यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि इस साल भोपाल की पत्रिका 'क्षितिज', रांची की पत्रिका 'सरिता' और कोझिकोड की हिंदी पत्रिका 'नियति' को उत्कृष्ट पत्रिका के रूप में चयन किया गया है। अतः इन पासपोर्ट अधिकारियों को इस सफलता के लिए उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देती हूं। साथ ही सभी पासपोर्ट अधिकारियों को बधाई देना चाहूंगी कि वे अपने कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में कार्य करने के साथ-साथ हिंदी पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कर रहे हैं।

साथियो! मंत्रालय के पास हिंदी को लेकर दोहरी जिम्मेदारी है। हम मंत्रालय और अपने कार्यालयों में राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ाने में प्रयासरत हैं वहीं विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए भी अनेक कदम उठा रहे हैं। अब हम हिंदी के प्रचार-प्रसार में प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल भी कर रहे हैं। विदेशों में परम्‍परागत तरीके से हिंदी सिखाने के स्‍थान पर डिजिटल माध्‍यम से हिंदी सिखाने के लिए विदेश मंत्रालय ने महात्‍मा गांधी संस्‍थान, मॉरीशस में पाणिनी हिंदी भाषा प्रयोगशाला की स्थापना की है।

एक भाषा-शास्त्री ने लिखा है कि किसी भाषा के सौंदर्य और शुद्धता की रक्षा गृहिणी अर्थात मां करती है जो अपनी गोद में बच्चे को भाषा का स्वर तथा वाक्य-विन्यास सिखाती है। कोई भी आधुनिक भाषा केवल कवि, साहित्यकार और सरकार के प्रयासों से विकसित नहीं की जा सकती। इसमें निखार और शक्ति तभी आएगी जब व्यापारी अपने व्यापार के लिए, वैज्ञानिक अपनी खोजों को समझने के लिए, विद्यार्थी ज्ञानार्जन के लिए तथा सार्वजनिक जीवन के लोग आशापूर्ण दृष्टिकोण रखने के लिए इसका प्रयोग करें। सबसे अच्छा गद्य वह नहीं होता जो केवल अलंकृत है, बल्कि वह होता है जिसमें युक्ति देने, व्याख्या करने और भावों को सही तरीके से प्रकट करने तथा दूसरे तक पहुंचाने की क्षमता होती है। हिंदी हमें इन सभी कसौटियों पर खरी उतरती दिखाई देती है। इसलिए एक वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है।

आज विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर मैं यह कहना चाहूंगी कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में भारतीय लेखकों के साथ-साथ विदेशी लेखकों, शोधकर्ताओं, भारतीय सिनेमा तथा अधिकारियों का भी योगदान बहुत अधिक है। हिंदी सिर्फ सरकारी भाषा नहीं है, यह मन की भाषा है। हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र, जिनकी पुण्यतिथि अभी कुछ चार दिन पहले ही 6 जनवरी को थी, ने कई दशक पूर्व ही अपनी मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा था-

''निज भाषा उन्नति अहे, सब भाषा को मूल,
निज भाषा उन्नति बिना मिटे न हिय की शूल''

हिय की शूल यानी जो अपने मन में हीन भाव हैं उसको दूर करने के लिए हमें देशभाषा, मातृभाषा की उन्नती की मूल धारा को विसर्जित करना होगा। इस मूल मंत्र को हम अपने दैनिक जीवन में उतारने का प्रयास करें। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य यही होना चाहिए।

मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में और माननीय विदेश मंत्री जी के मार्गदर्शन में हम हिंदी को वैश्विक पटल पर उसका उचित स्थान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

जय हिंद !
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