मीडिया सेंटर

प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा पर विदेश सचिव द्वारा विशेष वार्ता का प्रतिलेख (मई 13, 2022)

मई 14, 2022

डॉ. आदर्श स्वाईका, संयुक्‍त सचिव (ईआरएस) : मित्रों, नमस्‍कार। 16 मई को प्रधानमंत्री की आगामी नेपाल यात्रा पर इस विशेष मीडिया वार्ता में आपका स्वागत है।आज हमारे साथ विदेश सचिव श्री विनय मोहन क्वात्रा हैं । उनके साथ संयुक्त सचिव (उत्तर) श्री अनुराग श्रीवास्तव हैं जो नेपाल डेस्क सँभालते हैं। आपने कल की प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा की विस्तृत रूपरेखा देने वाली प्रेस विज्ञप्ति देखी होगी, अब मैं विदेश सचिव महोदय से अनुरोध करता हूँ कि आपको यात्रा की जानकारी दें।और उसके बाद, हम प्रश्न लेंगे। तो धन्यवाद और महोदय आप कृपया आएँ ।

श्री विनय मोहन क्वात्रा, विदेश सचिव: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, सभी को नमस्कार,गुड आफ्टरनून, और प्रधानमंत्री की आगामी नेपाल यात्रा पर इस विशेष वार्ता में भाग लेने के लिए धन्यवाद।प्रधानमंत्री श्री मोदी इस सोमवार, 16 मई को लुंबिनी, नेपाल की यात्रा करेंगे।प्रधानमंत्री की भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी की यह यात्रा बुद्ध जयंती के शुभ अवसर पर हो रही है। यह वास्तव में अति प्राचीन सभ्यता और भारत और नेपाल के लोगों के बीच संबंधों के समारोह का अवसर है जो,जैसा कि हम सब जानते हैं हम दो देशों के घनिष्ठ और बहुआयामी संबंधों की एक बहुत मजबूत नींव बनाता है। साझी सांस्‍कृतिक और सभ्‍यतामूलक विरासत वाले स्‍थानों की पारस्‍परिक यात्राएँ इन संबंधों को और सुदृढ़ करती हैं।आपको यह भी याद होगा कि नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने 1 से 3 अप्रैल 2022 को भारत का दौरा किया था, यह तथ्य कि इतनी जल्दी फिर एक वापसी यात्रा हो रही है, यह हमारे उच्च स्तरीय आदान-प्रदान की निकटता और साथ ही हमारी पारस्परिक रूप से बढ़ती हुई लाभप्रद साझेदारीका प्रतिबिंब है।यह प्रधानमंत्री मोदी की प्रधानमंत्री के रूप में नेपाल की पाँचवीं यात्रा होगी और लुंबिनी की उनकी यह पहली यात्रा होगी। प्रधानमंत्री की इस संक्षिप्त यात्रा में बहुत व्यस्त कार्यक्रम और कई कार्यक्रम होंगे। यात्रा की शुरुआत लुंबिनी के केंद्र में स्थित प्रसिद्ध मायादेवी मंदिर के दर्शन से होगी। यह मंदिर भगवान बुद्ध का जन्म स्थल माना जाता है यह मान्यता, दो सहस्राब्दी पहले 249 ईसा पूर्व में अपनी यात्रा की याद में सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तंभ द्वारा प्रदान किए गए अभिलेखीय साक्ष्य के माध्यम से स्थापित है। यहाँ यह भी याद किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने नवंबर 2014 में अपनी नेपाल यात्रा के दौरानइस मंदिर को बोधगया से बोधि वृक्ष का पौधा भेंट किया था।इसके बाद प्रधानमंत्री लुंबिनी में निकटवर्ती मठ क्षेत्र का दौरा करेंगे, जहाँवे बौद्ध संस्कृति और विरासत के लिए एक केंद्र के निर्माण के लिए शिलान्यास समारोह में भाग लेंगे। यह परियोजना, भारत स्थित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ द्वारा विकसित और निर्मित की जा रही है और यह लुंबिनी के पश्चिमी मठ क्षेत्र में स्थित है। तत्पश्चात अपनी द्विपक्षीय वार्ता में, दोनों प्रधानमंत्री पिछले महीने दिल्ली में जहाँ उन्होंने बातचीत छोड़ी थी वहीं से चर्चा शुरू करेंगे, दोनों नेता जलविद्युत विकास, साझेदारी और कनेक्टिविटी सहित कई क्षेत्रों में हमारी साझा समझ और सहयोग को और विस्तारित करने की दृष्टि से दिल्ली में हुई अपनी उत्पादक बातचीत को आगे बढाएँगे।

अपने अंतिम आधिकारिक कार्यक्रम में, दोनों प्रधानमंत्री बुद्ध जयंती के अवसर पर नेपाल सरकार द्वारा आयोजित समारोह में भाग लेंगे, जिसमें बौद्ध भिक्षुओं और विद्वानों की भागीदारी भी होगी। प्रधानमंत्री भी उस समय इस विशिष्ट सभा को संबोधित करेंगे। इस यात्रा का सारांश यह है कि एक तो अप्रैल में प्रधानमंत्री देउबा की पिछली भारत यात्रा सहित उच्च स्तरीय आदान-प्रदान से हमारे द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक गति आएगी, और दूसरे ये यात्राएँ हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि और उस प्राथमिकता को प्रदर्शित भी करती हैं जो भारत सरकार अपने पड़ोसियों को देती है। हम निश्चित रूप से चर्चा की बारीकियों पर और 16 मई को यात्रा के होने पर परिणामों पर अधिक विवरण साझा करेंगे। एक बार फिर से बहुत-बहुत धन्यवाद और गुड आफ्टरनून और आने के लिए धन्यवाद।

डॉ. आदर्श स्वाईका, संयुक्त सचिव (ईआरएस): महोदय, हमें यात्रा का विस्तृत विवरण देने के लिए धन्यवाद।अब, मैं मंच को प्रश्नों के लिए खोलता हूँ, लेकिन मैं एक बात बहुत स्पष्ट कर देता हूँ कि एक तो, कृपया अपने प्रश्नों को नेपाल की यात्रा और नेपाल के साथ द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित रखें।दूसरे, प्रश्न पूछने से पहले, कृपया अपना परिचय दें, क्योंकि विदेश सचिव नए हैं और मैं भी नियमित संयुक्त सचिव (एक्सपी) के स्थान पर यहाँ हूँ। तो, कृपया अपना परिचय दें और फिर हम समूहों में प्रश्नों का उत्तर देंगे।

महा सिद्दीकी: विदेश सचिव, मैं सीएनएन न्यूज 18 से महा सिद्दीकी हूँ । महोदय, क्या प्रधानमंत्री सीधे लुंबिनी तक एक हेलिकॉप्टर ले जा रहे हैं?क्योंकि नेपाल में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह सुझाव दिया गया है कि वे उनके नेपाल के दूसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरनापसंद करेंगे।

सिद्धांत: नमस्कार महोदय, विऑनसे सिद्धांत । दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच किस तरह की बातचीत होगी? क्‍या हम किसी प्रकार की घोषणाओं पर भी विचार कर रहे हैं, विशेष रूप से कनेक्टिविटी पर?

नयनिमा: महोदय,द प्रिंट से नयनिमा। नक्शे के मुद्दे के बाद यह प्रधानमंत्री की पहली यात्रा होगी। क्या सीमा मुद्दे पर चर्चा होगी और क्या ईपीजी रिपोर्ट पर कोई चर्चा होगी? धन्यवाद।

सचिन : Sir मेरा नाम सचिन है, मैं हिंदी वार्ता से हूँ sir मेरा सवाल यह है कि प्रधानमंत्री जी के यात्रा के दौरान नेपाल से कुछ hydropower projects के सिलसिले में कुछ नया development होने वाला है, कुछ नए sign होने वाले है ?

डॉ. आदर्श स्वाईका, संयुक्त सचिव (ईआरएस): महोदय, हम इन चार प्रश्नों को ले सकते हैं, और फिर प्रश्नों का अगला सेट ले सकते हैं।

श्री विनय मोहन क्वात्रा, विदेश सचिव: धन्यवाद। देखिए, जहाँ तक सुश्री महा सिद्दीकी द्वारा पूछे गए प्रश्न और इस संबंध में कोई अन्य प्रश्न भी हो सकता है।और जहाँ तक प्रधानमंत्री की यात्रा की व्यवस्था से संबंधित प्रश्नों का संबंध है, मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए या किसी और के लिए उन मुद्दों पर वास्तव में टिप्पणी करना सही है, क्योंकि उनमें सुरक्षा सहित कई पैरामीटर शामिल हैं।उस प्रश्न के संबंध में, जिसके बारे में सिद्धांत आपने पूछा कि किस प्रकार की बातचीत होगी और क्या कनेक्टिविटी से संबंधित मुद्दे सामने आएँगे या नहीं?जैसा कि मैंने आपको बताया कि भारत-नेपाल साझेदारी का पूरा दायरा और परिदृश्य बहुत विस्तृत और व्यापक है, आप मानव आर्थिक प्रयास के किसी भी पहलू को ले सकते हैं, और आप उस क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच एक बहुत मजबूत साझेदारी पाएँगे। जैसा कि उन्होंने उल्लेख किया है, दोनों नेताओं के बीच बातचीत निश्चित रूप से वहीं से शुरू होगी, जहाँ उन्होंने उसे पिछले महीने छोड़ा था,जब प्रधानमंत्री देउबा ने यहाँ की यात्रा की थी, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि बातचीत में द्विपक्षीय जुड़ाव के सभी तत्वों को शामिल किया जाएगा, चाहे वह विकास साझेदारी हो, चाहे कनेक्टिविटी परियोजनाएँ कैसे प्रगति कर रही हैं इसका आकलन और जायजा लेना हो, दक्षिण एशिया के दो समाजों को जोड़ने के लिए और क्या किया जा सकता है, और जलविद्युत सहयोग से संबंधित पहलुओं पर भी, मेरा मतलब है, यह एक ऐसा प्रश्न है जो विशेष रूप से पूछा गया था, व्यापार निवेश एक अन्य क्षेत्र है, जो हमारी साझेदारी में बहुत मजबूत है। विकास भागीदारी का संपूर्ण क्षेत्र, जिसमें कई क्षेत्रों में सहयोग शामिल है, चाहे वह स्वास्थ्य हो, चाहे वह शिक्षा हो, चाहे वह संस्था निर्माण हो। इसलिए मुझे लगता है कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत का एक व्यापक एजेंडा होगा, जो हमारी चर्चाओं के पूरे दायरे को कवर करेगा और मैं विशेष रूप से किसी एक क्षेत्र का उल्लेख नहीं करना चाहूँगा, जैसा कि आपने कनेक्टिविटी का उल्लेख किया है, मुझे लगता है कि इसमें हरक्षेत्र पर बातचीतहोगी। बेशक इसमें कनेक्टिविटी शामिल होगी।

सुश्री नयनिमा आपने सीमा से संबंधित प्रश्न पूछा था। जहाँ तक सीमा पर चर्चा, दोनों देशों के बीच सीमा चर्चा का संबंध है, जैसा कि आप सभी जानते हैं, दोनों देशों के बीच एक स्थापित द्विपक्षीय तंत्र मौजूद हैं।हमने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि उन मुद्दों पर वास्तव में राजनीतिकरण किए बिना, उन मुद्दों पर चर्चा करने, जिम्मेदार तरीके से चर्चा करने के लिए वे सबसे अच्छे तरीके हैं। तो, यह एक ऐसा विषय है जो अनिवार्य रूप से उन स्थापित द्विपक्षीय तंत्रों के दायरे में होगा।सचिन आपका प्रश्न था कि hydropower को लेके दोनों देशो के बीच में क्या सहयोग को लेके कोई नई घोषणा की अपेक्षा है की नही ? देखिए जो भारत-नेपाल के संबंधों में hydropower उर्जा का जो स्थान है वो अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इसके अंतर्गत जैसा आप भलीभांति इससे परिचित है कि भारत ने काफी बड़ी मात्रा में hydropower के क्षेत्र में निवेश किया है, ना केवल निवेश किया है बल्कि hydropower से निर्मित उर्जा का जो व्यापार है जो दोनों देशो के बीच में वो भी एक व्यापक रूप ले चूका है चाहे नेपाल से उर्जा का निर्यात हो | आपको याद होगा कि जब पिछले माह जब प्रधानमंत्री देउबा जी भारत यात्रा थी उसके दौरान भारत ने लगभग 360 मेगा वाट बिजिली का नेपाल से भारत के प्रति निर्यात का अनुमति दी थी, चाहे नेपाल से भारत को निर्यात हो चाहे भारत से नेपाल को निर्यात हो उर्जा का, चाहे नेपाल द्वारा निर्मित उर्जा का evacuation हो नेपाल में भारत के लिए या अन्य देशों के लिए या नेपाल में अन्य निवेश की परियोजनाएं हो | तो, ये hydropower का पूरा क्षेत्र बहुत ही व्यापक है, इस व्यापक क्षेत्र के लगभग हर भाग पे दोनों देशो के बीच में लगातार वार्ता जारी है और इसी वार्ता का मुख्य अंश जरुर दोनों देशो के नेता जब मिलेंगे तो उनकी वार्ता में भी उभर के आएगा | कोई प्रत्यक्ष रूप से अलग से घोषणा होगी की नही, ये कहना मेरे लिए इस समय उचित नही है |

सुहासिनी: विदेश सचिव, मैं द हिंदू से सुहासिनी हैदर हूँ । अगस्त 2014 में, जब प्रधानमंत्री मोदी पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में नेपाल आए थे, तो उन्होंने सहमति व्यक्त की थी और यह संयुक्त बयान में है कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समूह की बैठक होगी और उनकी रिपोर्ट की संवीक्षा की जाएगी।मुझे लगता है कि नयनिमा ने इस बारे में पूछा था। उस रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया और जुलाई 2018 में प्रस्तुत किया गया। अब चार साल बाद, रिपोर्ट में जो बिंदु हैं, प्रस्ताव हैं, जैसे कि सीमाओं पर बाड़ लगाना, जैसे कि भारत और नेपाल मैत्री संधि को उन्नत करने की बात करना, उनमें से किसी पर चर्चा भी नहीं हुई है और रिपोर्ट को वास्तव में यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के सामने भी पेश नहीं किया गया। क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि ईपीजी रिपोर्ट अब पानी में समा गई है?

श्रीधर: महोदय,एशियाई युग से श्रीधर । आपने उल्लेख किया कि यह प्रधानमंत्री की नेपाल की पाँचवीं यात्रा है और आपने यह भी कहा कि यह उनकी लुंबिनी की पहली यात्रा है। तो मेरा सवाल है कि अब क्यों? क्या आप हमें इस यात्रा के समय, महत्व के बारे में कुछ बता सकते हैं, क्या यह बौद्ध की तरफ आगे बढ़ने का हिस्सा है क्योंकि श्रीलंका के साथ हमारे संबंधों में भी हमारे समान पहलू हैं, म्यांमार के साथ भी, थाईलैंड भी बिम्सटेक में है। तो अब क्यों, आठ साल बाद लुंबिनी क्यों जा रहे हैं?

ऋषिकेश: नमस्कार महोदय, स्पुतनिक न्यूज से ऋषिकेश। तो, क्या भारत ने नेपाल को बताया कि हम चीन द्वारा विकसित आपकी बिजली, ऊर्जा परियोजना को खरीदने नहीं जा रहे हैं क्योंकि इसका उल्लेख हाल ही में शेर बहादुर देउबा ने किया था।

तृप्ति: महोदय, मेरा नाम तृप्ति है और मैं नेपाल में जन्मी भारतीय पत्रकार हूँ (अश्रव्य)। 2015 के भूकंप के बाद बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण के लिए भारत ने नेपाल के पीछे अपना हाथ रखा, मुझे लगता है कि सहायता देने वाले हम पहले थे।क्या प्रधानमंत्री मोदी को उन पुनर्निर्माण परियोजनाओं पर एक ब्रीफिंग मिलने की संभावना है, जिनमें भारत ने सक्रिय रूप से योगदान दिया है, विशेष रूप से विरासत-स्थल ?

रंजना: महोदय, यूएनआई से रंजना। तो अप्रैल में प्रधानमंत्री देउबा की पिछली यात्रा के दौरान, विजन स्टेटमेंट में, पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना पर एक विशेष उल्लेख किया गया था कि दोनों पक्ष, अधिकारियों को शीघ्रता से काम करने के लिए निर्देशित करेंगे; मूल रूप से इसे आगे बढ़ाने के लिए। तो क्या तब से कुछ हुआ है?

डॉ. आदर्श स्वाईका, संयुक्त सचिव (ईआरएस): हम यहीं रुकेंगे और विदेश सचिव इन पाँच प्रश्नों का उत्तर देंगे।

श्री विनय मोहन क्वात्रा, विदेश सचिव: धन्यवाद। मैं पहले ईपीजी से संबंधित इस प्रश्न का उत्तर देता हूँ, मुझे लगता है कि यह नयनिमा ने भी पूछा था और मुझे खेद है, मैं उस बिंदु को उठाना भूल गया था। मुझे लगता है कि आपने स्पष्ट रूप से ईपीजी रिपोर्ट पढ़ ली है, जो हमने नहीं पढ़ी, क्योंकि ईपीजी विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र समूह है। और मैं यह मान रहा हूँ कि रिपोर्ट तक केवल उनकी पहुँच है, लेकिन शायद कुछ अन्य लोगों की भी उस तक पहुँच है। मैं बस इतना ही कहूँगा कि ईपीजी रिपोर्ट जमा किए जाने के बाद उसकी समीक्षा की जाएगी। और इसे जमा किया जाना बाकी है। इसलिए मुझे लगता है कि सरकार इसे जमा करने के बाद ही इस पर विचार करेगी।मुझे लगता है कि एक और सवाल था, श्रीधर ने पूछा - यह बौद्ध आउटरीच है, लुंबिनी, क्यों नहीं, आदि आदि। देखिए जब आप हमारे दो समाजों - भारत और नेपाल के मूलभूत निर्माण को देखते हैं, तो इसकी सबसे उल्लेखनीय बात, साझा सभ्यता की विरासत और लोगों से लोगों का जुड़ाव है।और यह कुछ ऐसा है जिस पर प्रधानमंत्री ने 2014 में अपनी पहली नेपाल यात्रा के बाद से बार-बार जोर दिया है। उनकी बाद की यात्राओं ने इसे और मजबूत किया है। इस बार, वह बुद्ध जयंती के शुभ दिन पर लुंबिनी की यात्रा कर रहे हैं। बौद्ध धर्म भी हमारी साझा सभ्यतागत विरासत का एक हिस्सा है।मैं वास्तव में इसमें बहुत अधिक नहीं जाऊँगा कि अब क्यों, या कि इसके पीछे कोई विशेष मकसद या प्रेरक शक्ति है, मुझे लगता है कि बौद्ध धर्म हमारे दो समाजों की, हमारी दो सभ्यताओं की एक साझा सभ्यतागत विरासत है। और वास्तव में, जैसा कि मैंने ठीक शुरुआत में उल्लेख किया, यह यात्राउस सभ्यतागत विरासत का उत्सव है।मुझे नहीं लगता कि आपको वास्तव में इसमें कुछ और समझने की जरूरत है और यदि आप वास्तव में चाहते हैं; भारत की पड़ोस पहले नीति को सामने रखो, दोनों को मिलाओ, आपके पास जवाब होगा।

नेपाल में जलविद्युत उत्पादन और भारत के साथ इसके व्यापार पर ऋषिकेश के प्रश्न के संबंध में, मुझे यकीन है कि आप जानते हैं कि जहाँ तक नेपाल और भारत के बीच ऊर्जा व्यापार, बिजली व्यापार, विद्युत् व्यापार का संबंध है या वास्तव में उस सन्दर्भ में, पड़ोस के किसी भी देश के साथ विद्युत्के व्यापार का संबंध है, यह सीबीटी दिशानिर्देशों द्वारा शासित होता है, जो बिजली मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हैं।और बिजली आयात करने, बिजली निर्यात करने, बिजली खरीदने का कोई भी निर्णय उन दिशानिर्देशों के तहत होता है। वे दिशानिर्देश देश विशिष्ट नहीं हैं।वे दिशानिर्देश हैं जो व्यापार के लिए स्थापित हैं और वे दिशानिर्देश बहुत स्पष्ट हैं। वे ढाँचा प्रदान करते हैं, वे संरचना प्रदान करते हैं, वे विवरण, नियम और विनियम प्रदान करते हैं जिसके तहत किसी भी देश से बिजली आयात की जा सकती है। इसलिए जहाँ तक बिजली क्षेत्र का संबंध है, वे दिशा-निर्देश व्यापार के बारे में बहुत स्पष्ट हैं।सुश्री तृप्ति, सांस्कृतिक विरासत परियोजना, पुनर्निर्माण से संबंधित आपका प्रश्न। यदि आप भारत-नेपाल सहयोग साझेदारी के भूकंप के बाद के पुनर्निर्माण खंड को देखें, आप पाएँगे कि जहाँ तक उन सांस्कृतिक स्थलों के पुनर्निर्माण का संबंध है, जो भूकंप के दौरान अत्यधिक क्षतिग्रस्त हो गए थे,इन परियोजनाओं का एक बहुत बड़ा समूह है जिसमें भारत और नेपाल दोनों वर्तमान में भागीदारी कर रहे हैं। और इसका उद्देश्य यह है कि इन पारस्परिक रूप से पहचाने गए सांस्कृतिक स्थलों को उनका पिछला गौरव बहाल किया जाए। लगभग 28 ऐसी सांस्कृतिक विरासत परियोजनाएँ हैं। मुझे लगता है कि कुछ यूएस डॉलर 50 मिलियन से अधिक है। इसलिए, यह हमारे विकास सहयोग का एक काफी मजबूत और व्यापक खंड है, नेपाल के साथ साझेदारी जिसमें भूकंप के बाद के पुनर्निर्माण तत्व इसमें बहुत मजबूत भूमिका निभाते हैं।

पंचेश्वर से संबंधित प्रश्न के संबंध में, देखिए, पंचेश्वर पर चर्चा चल रही है। और हमें उम्मीद है कि एक बार प्रोजेक्ट की डीपीआर को अंतिम रूप दिए जाने के बाद प्रोजेक्ट बहुत तेजी से आगे बढ़ सकेगा। पिछले महीने प्रधानमंत्री देउबा की यात्रा के दौरान, यह सहमति हुई थी कि दोनों पक्ष अपने संबंधित नौकरशाहों और संबंधित तकनीकी विशेषज्ञों को इस मुद्दे में तेजी लाने और इसे तेजी से करने का निर्देश देंगे ताकि हम डीपीआर को अंतिम रूप देने और परियोजना के बाद के निष्पादन की दिशा में आगे बढ़ सकें।

डॉ. आदर्श स्वाईका, संयुक्त सचिव (ईआरएस): कोई और प्रश्न? तो यदि कोई अन्य प्रश्न नहीं हैं, तो हम आज की वार्ता को समाप्त करते हैं। आज हमसे जुड़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद। धन्यवाद।

श्री विनय मोहन क्वात्रा, विदेश सचिव: बहुत-बहुत धन्यवाद।

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