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रूस के विदेश मंत्री श्री सर्गेई लावरोव के साथ बैठक के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर द्वारा प्रेस वक्‍तव्‍य

नवम्बर 08, 2022

प्रेस के दोस्तों

जैसा कि आप सभी जानते हैं, मैं यहाँ मास्को में विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ नियमित परामर्श करने के लिए आया हूँ। मैं उप प्रधानमंत्री, डेनिस मंटुरोव से भी मिला, जो अंतर-सरकारी आयोग, जिसके हम दोनों प्रमुख हैं, के सह-अध्यक्ष के रूप में मेरे समकक्ष हैं। हम बेशक, अभी भी अपनी चर्चा के बीच में हैं। हमने अपनी बातचीत का एक दौर पूरा कर लिया है। तो, मैं आप को हमने जो चर्चा की है उसके बारे में, और साथ ही कुछ ऐसे मुद्दों के बारे में, जिन्हें मैं समझता हूँ कि हम इस प्रेस कांफ्रेंस के तुरंत बाद आगे चर्चा करेंगे, दोनों पर विवरण दूँगा ।

2. उस पर आने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि मैं इस यात्रा का संदर्भ दे दूँ। सामान्यतः, यह आवश्यक नहीं होता, लेकिन ये असामान्य समय हैं। मैं प्रारंभ में इस बात पर बल देना चाहता हूँ कि भारत और रूस के बीच लंबे समय से चली आ रही एक साझेदारी है, जो कई दशकों से दोनों देशों के लिए बहुत उपयोगी रही है। इसमें व्यापार, निवेश, ऊर्जा, वस्तुओं आदि जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग की एक श्रृंखला शामिल है। आज यहाँ आने का मेरा उद्देश्य अपने रूसी समकक्षों - मंत्री लावरोव और उप प्रधानमंत्री मंटुरोव - के साथ बैठना और यह आकलन करना है कि हम कैसी प्रगति कर रहे हैं। स्पष्ट रूप से ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका हमें समाधान करने की आवश्यकता है और साथ ही संभावनाएँ हैं जिनकी हम खोज कर रहे हैं । इस पड़ताल करने की प्रक्रिया के लिए, मेरे साथ भारत के कृषि और किसान कल्याण, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, बंदरगाह, शिपिंग और जलमार्ग, वित्त, रसायन और उर्वरक के साथ-साथ वाणिज्य और उद्योग मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी हैं।

3. पिछले कुछ वर्षों में, हम, भारत और रूस, उन तरीकों की तलाश में जुटे हुए हैं कि अपने द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार कैसे किया जाए और इसमें दीर्घकालिक स्थिरता और विकास के और अधिक कारकों को कैसे शामिल किया जाए। इनमें से कुछ चर्चाओं के अब परिणाम मिल रहे हैं, जिनमें, यूक्रेन संघर्ष के परिणामों सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्तमान में जिस तनाव का सामना कर रही है, उसके कारण तेजी आई है। मंत्री लावरोव और मैंने इस वर्ष हमारे द्विपक्षीय व्यापार में महत्वपूर्ण वृद्धि को नोट किया है और इस पर ध्यान केंद्रित किया है कि इसे और अधिक स्थायी कैसे बनाया जाए। स्वाभाविक रूप से हम व्यापार असंतुलन पर चिंतित हैं, और मैंने रूसी पक्ष के साथ यह मुद्दा उठाया है कि अधिक से अधिक भारतीय निर्यात के रास्ते में आने वाली बाधाओं को कैसे दूर किया जाए।

हमने अपने अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों की प्रगति की समीक्षा की। यह भी आवश्यक है कि हमारे समय-परीक्षणित रक्षा संबंध सुचारू रूप से कार्य करते रहें। विशेष रूप से, हमारा ऊर्जा और उर्वरक सहयोग मजबूत हो रहा है और पिछले कुछ वर्षों की हमारी उपलब्धियाँ और अधिक सहयोग करने का आधार बन गई हैं। विदेश मंत्री लावरोव ने निश्चित रूप से अपनी टिप्पणियों में इनमें से कुछ मुद्दों पर बात की है।

4. हमने पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़ते हुए, अपने सहयोग का विस्तार करने और उसमें विविधता लाने के तरीकों पर चर्चा की। अंतर-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना, विशेष रूप से रूसी सुदूर पूर्व के साथ, हमारे लिए एक प्रमुख प्राथमिकता रही है। हमने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के साथ-साथ चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे के माध्यम सहित कनेक्टिविटी बढ़ाने पर भी चर्चा की। मैंने मंत्री लावरोव और उप प्रधानमन्त्री मंटुरोव को भारत की प्रमुख पहलों पर अद्यतन जानकारी दी, जिसमें आत्मनिर्भर भारत यानी स्वावलंबी भारत और मेक इन इंडिया शामिल हैं, जो हमारे दोनों देशों के बीच अधिक समकालीन आर्थिक संबंधों के लिए मंचों के रूप में काम कर सकते हैं।

5. यह स्वाभाविक है कि विदेश मंत्रियों के रूप में, हमने अपने विशेष दृष्टिकोणों और प्रमुखता बिंदुओं से अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर विचारों का आदान-प्रदान किया। जाहिर है, यूक्रेन संघर्ष एक प्रमुख पहलू था, हालाँकि हम इस पर चर्चा करना जारी रखेंगे। इस अवसर पर मैं इस मामले में भारतीय स्थिति को स्पष्ट करना चाहता हूँ। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर में समरकंद में राष्ट्रपति पुतिन को बताया था, यह युद्ध का युग नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत अधिक अन्योन्याश्रित है, इसलिए विश्व में कहीं भी कोई भी महत्वपूर्ण युद्ध होता है तो पूरे विश्व में उसके बड़े भारी परिणाम होते हैं । हम इस युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा पर बढ़ती चिंताओं को देख रहे हैं, जो पहले ही दो साल के कोविड के कारण पैदा हुए गंभीर तनावों के कारण और भयंकर बन रही है। ग्लोबल साउथ, विशेष रूप से, इस दर्द को बहुत तीव्रता से महसूस कर रहा है। इसलिए, भारत संवाद और कूटनीति की राह की वापसी की पुरजोर वकालत करता है। हम स्पष्ट रूप से शांति, अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के समर्थन के पक्ष में हैं। जहाँ तक खाद्यान्न और उर्वरक शिपमेंट जैसे मुद्दों से संबंधित विशिष्ट पहलों का संबंध है, या उस तरह से कोई अन्य समस्या हो, भारत जितना संभव होगा उतना मददगार होगा । वास्तव में, मैं कहूँगा कि कोई भी पहल, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को जोखिम से मुक्त करती हो और इस समय-स्थिति में वैश्विक व्यवस्था को स्थिर बनाती हो; भारत उसके लिए सहयोग करेगा।

6. हमारी ओर से, मैंने मंत्री लावरोव के साथ उपमहाद्वीप में हाल के रुझानों के बारे में भारतीय विचार को भी साझा किया। आप सभी जानते हैं कि देशों ने गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का अनुभव किया है। अस्थिरता के अन्य कारक भी हैं। सीमा पार से अपने प्रस्फुटन के साथ आतंकवाद एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है । जहाँ तक हिंद-प्रशांत का संबंध है, इसकी प्रगति और समृद्धि में हमारे दोनों देशों के हित हैं। भागीदारों के रूप में, हम व्यापक क्षेत्रीय स्थापत्य के लिए आसियान की केंद्रीयता को अत्यधिक महत्व देते हैं। अपने-अपने हितों के दृष्टिकोण से, हमने इस बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लक्ष्यों को सर्वोत्तम रूप से पूरा किया जाता है, जिसमें वैश्विक आम जनों को सुरक्षित करना भी शामिल है।

7. हमारी वार्ता में अनेक क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा हुई। अफगानिस्तान के संबंध में, हमने चर्चा की कि अफगानिस्तान के लोगों के लिए अपना समर्थन कैसे जारी रखा जाए, जबकि हम तालिबान से उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का आग्रह करते हैं। हम दोनों विभिन्न प्रारूपों के सदस्य हैं जहाँ अफगान से संबंधित मुद्दे संवीक्षा के लिए आते हैं और हम निकट संपर्क में बने रहेंगे।

8. मै आगामी सत्र में ईरानी जेसीपीओए की संभावनाओं पर चर्चा करने की आशा करता हूँ, क्योंकि भारत का मानना है कि वैश्विक शांति, सुरक्षा और अप्रसार के हित में आगे का रास्ता खोजना चाहिए। मैं मध्य पूर्व की वर्तमान स्थिति, जिसे हम पश्चिम एशिया कहते हैं, पर आकलन के व्यापक आदान-प्रदान की भी अपेक्षा करता हूँ, जिसमें सीरिया और फ़िलिस्तीन से संबंधित मामले भी शामिल हैं। भारत में आज हितों की एक विस्तृत श्रृंखला है और बढ़ते हुए पदचिह्न हैं । इसमें से कुछ हमारी संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारियों के संदर्भ में जैसे लीबिया समिति की अध्यक्षता, कुछ अफ्रीका के साथ हमारी पारंपरिक रूप से घनिष्ठ भागीदारी में, और अब तेजी से, कई क्षेत्रों के साथ हमारी गहरी आर्थिक भागीदारी में व्यक्त किए जाते हैं । दुनिया स्थिर और निरंतर पुनर्संतुलन के माध्यम से अधिक से अधिक बहु-ध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है। और इसका विशेष रूप से अर्थ है एक बहुध्रुवीय एशिया । एक साथ मिलकर काम करने का सकारात्मक इतिहास रखने वाले प्रमुख राष्ट्रों के रूप में, यह स्वाभाविक रूप से रूस और भारत के बीच बातचीत को प्रभावित करेगा।

9. हमारे दोनों देश, अन्यों के अलावा, जी20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं। हम इन प्रारूपों में एक साथ कैसे काम करते हैं यह मुद्दा भी हमारे एजेंडे में है। आप सभी जानते हैं कि भारत ने एससीओ की अध्यक्षता ग्रहण कर ली है और दिसंबर में जी20 की अध्यक्षता सँभालेगा। हमारा दृढ़ विश्वास है कि समग्र रूप से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की गंभीर चिंताओं को पूरी तरह से पहचाना जाना चाहिए और प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाना चाहिए। बहुपक्षवाद की स्थिति, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र और उसकी प्रमुख संस्थाओं की कार्यप्रणाली, आज स्पष्ट रूप से अप्रभावी है। यहाँ तक ​​कि जब हम तत्काल आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो एक सुधारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित बहुपक्षवाद में सुधार के मामले को नकारना मुश्किल होता जा रहा है। हम इस संबंध में भारत के लिए रूसी समर्थन का स्वागत करते हैं।

10. अंत में, मैं कहना चाहूँगा कि आज सुबह हमने बहुत खुला और उपयोगी विचार-विमर्श किया है। जैसा कि मैंने उल्लेख किया, हम अभी भी कुछ हद तक अपनी चर्चाओं में बीच में हैं। मंत्री लावरोव, मैं आपके आतिथ्य के लिए, आपके स्वागत के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। और मुझे विश्वास है कि हमारी वार्ता भारत-रूस सहयोग के और विकास में योगदान देगी।

मास्को
नवंबर 8, 2022

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