मीडिया सेंटर

द्वितीय अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान में लोवी संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल फुल्लिलोव का संबोधन

दिसम्बर 24, 2021

मैं इस उदार परिचय के लिए मंत्रीजी को धन्यवाद देता हूँ। मैं जिस देश में लोवी संस्थान स्थित है, उसके पारंपरिक अभिरक्षकों, इओरा राष्ट्र के गाडीगल, को धन्‍यवाद देते हुए अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ और अतीत और वर्तमान के उनके बुजुर्गों के प्रति अपना आदर ज्ञापित करता हूँ। इस अवसर पर मैं इस महीने की शुरुआत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और भारतीय सशस्त्र बलों के उनके सहयोगियों की दुखद मृत्‍यु पर दुख व्यक्त करता हूँ।

मैं भारत के विदेश मंत्री का यह व्याख्यान देने के लिए निमंत्रण प्राप्त करने के लिए आभारी हूँ। मैं डॉ. जयशंकर को लंबे समय से जानता हूँ। जब वह बीजिंग और वाशिंगटन में तैनात थे, तब मेरी उनसे फोन पर बातचीत होती थी और विदेश सचिव और मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान मैं उनके संपर्क में बना रहा हूँ। मैंने लंबे समय से उनकी मेधा और दूरंदेशी की प्रशंसा की है और मैं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे गुणी राजनेता के नाम पर व्याख्यान देने के लिए भी सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। हम अक्सर आज के द्विआयामी राजनेताओं पर विलाप करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री वाजपेयी एक राजनेता होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। वह अंतर्क्षेत्र वाले नेता थे। विदेश मंत्री और प्रधान मंत्री के रूप में, उनकी शासनकला रचनात्मक और कल्पनाशील थी। प्रतिस्पर्धियों और विरोधियों के प्रति अपने पूर्वरंग, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों में अपने विश्वास और पूर्व की ओर देखों के प्रति अपने दृढ़निश्‍चय में, प्रधान मंत्री वाजपेयी ने अतीत के व्‍यवहारों को दूर करने और नए दोस्तों और चीजों को करने के नए तरीकों की तलाश करने की इच्छा दिखाई। मैं सामरिक कल्पना की इस अवधारणा को इस व्याख्यान के लिए अपने विषय के रूप में लेना चाहता हूँ।

राष्ट्रमंडल के कई राजनेताओं की तरह, प्रधान मंत्री वाजपेयी का क्रिकेट से घनिष्ठ संबंध था। और वैसे, कितने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री उनके नाम पर 50,000 सीटों वाला क्रिकेट स्टेडियम बनवाना चाहते हैं। आज मेरे दिमाग में क्रिकेट इसलिए है क्योंकि इस साल की एशिया सीरीज का तीसरा टेस्ट मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर बॉक्सिंग दिवस पर शुरू हो रहा है। मैं बताना चाहता हूँ कि मैंने कई राजनयिक स्वागतों में भाग लिया है, लेकिन बहुत कम ही सुनील गावस्कर, कपिल देव और कई अन्य लोगों की उपस्थिति में 2014 में एमसीजी में प्रधान मंत्री मोदी के लिए आयोजित राजकीय रात्रिभोज का मुकाबला कर सकते हैं। एमसीजी जैसे क्रिकेट के मंदिर में इस तरह का महत्वपूर्ण राजनयिक सुयोग का आयोजन करना एक मौलिक विचार था।

कई मायनों में क्रिकेट का खेल राज्यों के बीच संबंधों के महान खेल के समान है, और मुझे लगता है कि इसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों की विदेश नीतियों के लिए महत्वपूर्ण सबक निहित हैं क्योंकि हम हिंद-प्रशंत की उभरती रणनीतिक परिस्थितियों का संचालन कर रहे हैं। विदेश नीति की तरह ही क्रिकेट भी एक लंबा खेल है। एक टेस्ट मैच में पाँच दिन तक लग सकते हैं, हालांकि तब नहीं जब गाबा में ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड से खेल रहा हो। क्रिकेट की तरह ही कूटनीति में में चीजें अपारदर्शी होती हैं और कभी-कभी खेल बराबरी पर छूटना जीत हो सकती है। क्रिकेट और विदेश नीति के लिए कई समान गुणों की आवश्यकता होती है - बुद्धिमत्‍ता, कौशल, धैर्य, अनुशासन, कठोरता और कल्पना। सबसे सफल क्रिकेट कप्तान रचनात्मक हैं। वे कल्पनापरक क्षेत्ररक्षण सजाते हैं। वे गेंदबाजी में अप्रत्याशित परिवर्तन से अपने विरोधियों को चकित कर देते हैं। वे बल्ले के साथ फ्रंट से नेतृत्व करते हैं। कल्पना प्रमुख है। मौसम की स्थितियाँ और पिच की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। विदेश नीति में भी निर्णय लेने का वातावरण द्रुत और अस्थिर होता है और आज निश्चित रूप से ऐसा ही है।

1991 में, वैश्विक नेतृत्व के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के एकमात्र प्रतिद्वंद्वी सोवियत संघ ने हार मान ली और दुनिया द्विध्रुवीय व्‍यवस्‍था से एकध्रुवीय व्‍यवस्‍था में बदल गई। शीत युद्ध के दौरान पश्चिम पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्राप्त किया गया आधिपत्य नई विश्व व्यवस्था बन गया। रूस और चीन के लिए उपलब्‍ध एकमात्र विकल्प इस उद्यम में हितधारक बनना था, यदि वे जिम्मेदार हितधारक बनने का वादा करते। दुनिया में एक उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्‍थापित हो गई या हम ऐसा सोचते थे। अब तीन दशक बीत जाने के बाद हमारी आँखों से परदा हट गया है। राष्ट्र राज्यों के बीच और विचारधाराओं के बीच होड़ फिर से शुरू हो गई है। महाशक्तियों के बीच सहयोग घट रहा है, न कि बढ़ रहा है। एकध्रुवीयता ने बहुध्रुवीयता का मार्ग प्रशस्त किया है। भू-राजनीति लौट आई है। हर दिन उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कम उदार, कम अंतरराष्ट्रीय और कम व्यवस्थित होती जा रही है।

दूसरा बड़ा वैश्विक परिवर्तन यह है कि धन और शक्ति पूर्व की ओर भारत और ऑस्ट्रेलिया की ओर खिसक रही है। हाल के दशकों में प्रभावशाली एशियाई आर्थिक विकास ने इस क्षेत्र को बदलकर रख दिया है और एक अरब से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। उभरता हुआ एशिया दुनिया का सबसे गतिशील हिस्सा है जो केवल एक-तिहाई वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद आधे से अधिक वैश्विक विकास के लिए जिम्मेदार है। चीन की आर्थिक वृद्धि अभूतपूर्व रही है। दशकों की तीव्र आर्थिक संवृद्धि ने लगभग 70 करोड़ चीनी लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर खींच लिया है। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इस दशक के अंत तक सबसे बड़ी बनने की संभावना है। यह पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार करने वाला राष्ट्र है, और ऑस्ट्रेलिया सहित अधिकांश एशियाई देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। बेशक, भारत का आर्थिक उत्थान भी इस एशियाई सफलता की कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 30 साल पहले उदारीकरण और सुधार के रास्ते पर चलने से पहले, भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था का सिर्फ एक छोटा-सा हिस्सा थी। आज भारत की अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज का औसत भारतीय नागरिक 1990 की तुलना में तीन गुना अधिक अमीर है।

ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के लिए, जिसकी अर्थव्यवस्था एशिया की अर्थव्यवस्थाओं से इतनी जुड़ी हुई है, चीन और भारत के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में परिवर्तन हमारे लिए जबरदस्त अवसर पैदा करते हैं। लेकिन जहाँ एशिया में आर्थिक संभावना सकारात्मक है, वहीं सुरक्षा संभावना नहीं। हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में द्विध्रुवीय प्रतिस्पर्धा की लंबी अवधि की ओर बढ़ रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों ने पिछले दशक में परेशान करने वाला व्यवहार प्रदर्शित किया है। इस वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया के गठबंधन की 70वीं वर्षगांठ है। हमारे हितों की पूर्ती तभी होगी जब संयुक्त राज्य अमेरिका सुशासित, एकजुट, दुनिया के लिए आकर्षक और विरोधियों का बुरा व्यवहार रोकने के लिए पर्याप्त मजबूत होगा। डोनाल्ड ट्रम्प की राष्‍ट्राध्यक्षता में, संयुक्त राज्य अमेरिका मेरी राय में, कुशासित, विभाजित, दुनिया के लिए अनाकर्षक और कमजोर था, जिसने हम सभी को अनिष्‍टकर कर्ताओं के प्रति असुरक्षित रख छोड़ा था। विदेश नीति के मोर्चे पर, श्री ट्रम्प के कार्य ऑस्ट्रेलियाई प्रवृत्तियों के विपरीत थे। ऑस्ट्रेलियाई गठबंधन में विश्वास करने वाले हैं; श्री ट्रम्प को लगता था कि मित्रराष्‍ट्र ठग हैं। आस्ट्रेलियाई लोगों का झुकाव अंतर्राष्ट्रीयता की ओर है; श्री ट्रम्प अलगाववाद के प्रति सहानुभूति रखते थे। ऑस्ट्रेलिया एक व्यापारिक राष्ट्र है; श्री ट्रम्प ट्रांस पैसिफिक साझेदारी से पीछे हट गए और उन्‍होंने विश्व व्यापार संगठन पर हमला किया।

उनके उत्तराधिकारी, जो बाइडेन परिपूर्ण राष्ट्रपति नहीं हैं। लेकिन आज हम यह कह सकते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति एक शिष्‍ट व्यक्ति है। और चार साल तक ऐसा नहीं रहा था। बाइडेन प्रशासन ने अच्छी शुरुआत की है, जिसकी विशेषता घर में अधिक प्रभावी शासन और विदेशों में अधिक निपणु गठबंधन प्रबंधन है। दूसरे शब्दों में, अमेरिका वापस आ गया है। यदि पिछले एक दशक में वाशिंगटन का अंतर्राष्ट्रीय रुख परिवर्तनशील रहा होता, तो बीजिंग लगातार और उत्‍तरोत्‍तर चिंतित रहा होता। 2012 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्‍तारोहण के बाद से, चीन अपने पूर्व समुद्र में और पश्चिम और अन्य राज्यों के साथ अपने संबंधों में बहुत अधिक आक्रामक हो गया है। ऑस्ट्रेलिया एक चरम मामला है। सात साल पहले, शी जिनपिंग ने हमारी संसद को सत्‍तापक्ष और विपक्ष की जोरदार तालियों के साथ संबोधित किया था। अब दोनों देश जानी दुश्‍मन हैं। यह किसकी गलती है, इस पर विश्लेषकों की अलग-अलग राय है। मेरे विचार से चीन के साथ हमारे संबंध बदलने का मुख्य कारण यह है कि चीन बदल गया है। उसकी विदेश नीति कठोर हो गई हैं; चीन के भीतर लोगों पर प्रतिबंध सख्‍त हो गए हैं; आलोचना स्वीकार करने की उसकी तत्‍परता छू-मंतर हो गई है।

ऑस्ट्रेलिया ने अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें हुवावेई और अन्य उच्च जोखिम वाले विक्रेताओं को अपने 5जी रोलआउट में भाग लेने से प्रतिबंधित करना और नया विदेशी हस्तक्षेप कानून बनाना शामिल है। चीनियों के लिए, ऑस्ट्रेलिया द्वारा पिछले साल कोरोनावायरस महामारी की उत्पत्ति की अंतरराष्ट्रीय जाँच का आह्वान सिर्फ नवीनतम प्रकोपन है। हमारे नजरिए से देखा जाए तो हमारी सारी हरकतें चीनी चालों की प्रतिक्रिया मात्र थीं। चीन ने कुछ समय के लिए ऑस्ट्रेलिया को कूटनीतिक डीप फ्रीज में रख दिया है। चीन ने जौ, शराब, समुद्री भोजन, कपास, लकड़ी, बीफ और कोयले सहित हमारे कई निर्यातों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। बेशक, भारतीय भी चीन की नई-नई मुखरता से परिचित हो गए हैं, जिसकी कीमत भारतीय सैनिकों ने अपनी जान से चुकाई है। चीन के प्रति ऑस्ट्रेलियाई जनता की राय चीनी व्यवहार के अनुरूप कठोर हो गई है। 2021 में किए गए लोवी संस्‍थान के सर्वेक्षण में पाया गया कि पहली बार, अधिक से अधिक ऑस्ट्रेलियाई चीन को आर्थिक भागीदार की तुलना में सुरक्षा खतरे के रूप में अधिक देखते हैं। चीन में भरोसा तेजी से कम हुआ है, तीन साल पहले 52% की तुलना में काफी कम केवल 16% आस्ट्रेलियाई लोगों ने कहा कि वे चीन पर बहुत भरोसा करते हैं या कुछ हद तक दुनिया में जिम्मेदारी से कार्य करता है।

मैं चीन के प्रति ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण के व्यापक जोर से सहमत हूँ। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं आलोचनात्मक नहीं हूँ। कूटनीति के लिए धूर्तता के साथ-साथ दृढ़ता की भी आवश्यकता होती है। मेरे विचार से, हम हमेशा उतना कुशल नहीं रहे हैं जितना हम हो सकते थे। कभी-कभी ऑस्ट्रेलियाई मंत्री और सांसद हमारी संप्रभुता और हमारे मूल हितों की रक्षा करने से परे भटक जाते हैं, और अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों में अनुशासनहीनता को घुसने देते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति की मुख्य जिम्मेदारी झोंगनानहाई के लोगों की है।

अमेरिकी नीति में उतार-चढ़ाव और चीनी व्यवहार की उग्रता हिद-प्रशांत की सुरक्षा में तीन महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को प्रेरित कर रही है। पहला, कई क्षेत्रीय शक्तियाँ अपनी क्षमता के बारे में बड़ा दृष्टिकोण अपना रही हैं और अपनी संचलन की स्वतंत्रता बढ़ा रही हैं। आखिरकार कोई दूसरे देश के साये में नहीं रहना चाहता है। मैं भारत सरकार द्वारा अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए उठाए गए कदमों और समय के अनुकूल लचीली विदेश नीति अपनाने से बहुत प्रभावित हुआ हूँ, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ उन्नत संबंध और क्वाड जैसी महत्वपूर्ण नई संस्थागत व्यवस्था की सदस्यता शामिल है।

ऑस्ट्रेलिया के मामले में, हमने अपना आंतरिक लचीलापन सशक्‍त किया है, अपना रक्षा खर्च बढ़ाया है, और हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम, एयूकेयूएस के साथ एक नया रक्षा समझौता किया है, जो तीन देशों के बीच घनिष्ठ सैन्य और वैज्ञानिक संबंधों और परमाणु चालित ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी बेड़े के विकास का वादा करता है। अगस्त में काबुल के पतन के बाद, अमेरिकी विदेश नीति के कई पर्यवेक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि अमेरिका ने अपने मित्रराष्‍ट्रों में रुचि खो दी है, और यह कि उसके मित्ररराष्‍ट्रों का अमेरिका पर से विश्वास उठ गया है। सितंबर में एयूकेयूएस की घोषणा ने दोनों तर्कों का शक्तिशाली खंडन किया है। एयूकेयूएस के साथ, ऑस्ट्रेलिया संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपना गठबंधन दोगुना कर रहा है, जबकि साथ ही हिंद-प्रशांत में यूनाइटेड किंगडम को और अधिक गहराई से खींच रहा है। यह ऑस्ट्रेलिया के लिए एक महत्वाकांक्षी कदम है, जो इस बात का संकेत है कि यह देश अपने बाहरी वातावरण को आकार देने और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में योगदान करने का इरादा रखता है। परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बियाँ मारक क्षमता, गति, रेंज और छुपाव के मामले में अपार क्षमता प्रदान करती हैं। यह मानते हुए कि इन पनडुब्बियों का अंततः अवश्‍य निर्माण किया जाएगा, ये ऑस्ट्रेलिया को महत्वपूर्ण निवारक शक्ति प्रदान करेंगी। हालाँकि, एयूकेयूएस केवल पनडुब्बियों को लेकर नहीं है। यह प्रौद्योगिकी सहभाजन, साइबर क्षमताओं और कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता को लेकर भी है। यह मुझे कुछ ऐसा याद दिलाता है जो प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने 1940 में कहा था, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने नौसैनिक ठिकानों तक पहुँच के बदले ब्रिटेन को विध्वंसक प्रदान किए थे। चर्चिल ने कहा था कि दोनों देशों को पारस्परिक और सामान्य लाभ के लिए अपने कुछ मामलों में कुछ हद तक आपस में घुलना-मिलना होगा। मुझे लगता है कि नई चुनौतियों के समक्ष, हम एक बार फिर समान विचारधारा वाले देशों को आपस में अधिक घुलते-मिलते देखेंगे।

दूसरा, हिंद-प्रशांत में महत्वपूर्ण संस्थागत विकास हुए हैं, उनमें सबसे प्रमुख, राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा क्वाड का नेता स्तर तक उन्‍नयन है। 2021 के अपने लोवी व्याख्यान में, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने क्वाड का संस्थागत व्यवस्थाओं के नए जालीकर्म के एक उदाहरण के रूप में वर्णन किया था। जहाँ डीन एचसन की पीढ़ी के नीति निर्माताओं ने संयुक्त राष्ट्र, नाटो, आईएमएफ और विश्व बैंक के स्तंभों पर पार्थेनन का निर्माण किया, वहीं जेक ने तर्क दिया कि आज की व्यवस्थाएं अधिक लचीली, तदर्थ, अधिक राजनीतिक और कानूनी, कभी-कभी स्थायी से अधिक अस्थायी हैं। इस अर्थ में, जेक ने मुझे बताया कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संरचना युद्धोपरांत युग की औपचारिक यूनानी संरचना की तुलना में अधिक फ्रैंक गेहरी चरित्र प्राप्त कर रही है और वास्तव में सितंबर में व्हाइट हाउस के पूर्वी कक्ष में आयोजित पहली व्यक्तिगत क्वाड नेताओं की बैठक बिलबाओ में गेहरी के गुगेनहीम संग्रहालय जितना ही हू ब हू आकर्षक थी। चार अत्यधिक सक्षम हिंद-प्रशांत लोकतंत्रों के नेताओं को सहयोग का सकारात्मक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए एक साथ आते हुए देखना अद्भुत बात है।

और मैं इस अवसर पर क्वाड वैक्सीन साझेदारी के विनिर्माण केंद्र के रूप में अपने उल्लेखनीय कार्य के लिए भारत की सराहना करना चाहता हूँ। क्वाड आस्ट्रेलियाई लोगों के लिए इस बात का अनुस्मारक है कि हमें कूटनीति, साथ ही रक्षा, और नए संबंधों के साथ-साथ पुराने संबंधों में भी अपना निवेश बढ़ाना होगा। ऑस्ट्रेलिया के लिए, एंग्लोस्फीयर आवश्यक है लेकिन निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं है। अत्यावश्यकता के रूप में, हमें जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और भारत सहित अन्य हिंद-प्रशांत शक्तियों के साथ अपने संबंधों को गहरा करना होगा। समान विचारधारा वाले देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना वह तीसरा प्रमुख हिंद-प्रशांत विकास है जिसका मैं आज उल्लेख करना चाहता हूँ। नई दिल्ली और कैनबरा के बीच द्विपक्षीय संबंधों की विशेषता क्रीज पर लंबी पारी है। हमने धीरे-धीरे शुरुआत की, लेकिन अब जब हम इसमें स्थिर हो गए हैं, हम अपने शॉट ले रहे हैं और रनों की धारा बह रही है।

एक साल पहले, जब मैंने लोवी संस्‍थान के एक कार्यक्रम के लिए डॉ. जयशंकर का साक्षात्कार लिया था, तो उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर कोई एक संबंध है जिसमें मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है, तो वह भारत ऑस्ट्रेलिया संबंध है। आज, हमारी व्यापक रणनीतिक साझेदारी में प्रधानमंत्रियों, विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों की नियमित बैठकों के साथ-साथ सैन्य अभ्यास और सेना से सेना संपर्क शामिल है। मुझे पिछले महीने प्रधान मंत्री स्कॉट मॉरिसन द्वारा बेंगलुरु में एक नए ऑस्ट्रेलियाई महावाणिज्य दूतावास की स्थापना और साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर हमारा सहयोग गहरा करने के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की घोषणा करते हुए देखकर खुशी हुई। लेकिन मैं चाहूँगा कि हम और भी महत्वाकांक्षी बनें। लोवी संस्‍थान का एशिया पावर इंडेक्स का नवीनतम संस्करण, जो हिंद-प्रशांत राज्यों की सापेक्ष शक्ति की रैंकिंग करने के लिए राष्ट्रीय संसाधनों और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का मापन करने वाला डेटा चालित वार्षिक मूल्यांकन है, यह दर्शाता है कि न तो संयुक्त राज्य अमेरिका और न ही चीन हमारे क्षेत्र में निर्विवाद प्रधानता कायम कर पाएंगे। द्विध्रुवीय भविष्य इशारे से बुला रहा है। इस भविष्य में, भारत और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य हिंद-प्रशांत शक्तियों द्वारा लिए गए निर्णय अत्यधिक परिणामी होंगे। हमारे कार्यों में मामूली अंतर हो सकता है। हमारे जैसे देशों के पास क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित करने का साधन हैं और ऐसा करने में स्पष्ट रुचि है। लेकिन हमें कदम बढ़ाना होगा। इसलिए, नई दिल्ली में रायसीना हिल और कैनबरा में कैपिटल हिल में निर्णय निर्माताओं के लिए मेरी चुनौती व्यावहारिक और कल्पनाशील नए तरीकों की तलाश करना है जिससे भारत और ऑस्ट्रेलिया अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकें, और एक साथ हिंद-प्रशांत में स्थिरता और समृद्धि में योगदान दे सकें।

मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूँ। मेरा मानना ​​है कि हमें ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच उच्च स्तरीय सामरिक आर्थिक संवाद की नींव डालनी चाहिए। हमें ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच विशेष रूप से समुद्री कार्यक्षेत्र जागरूकता के क्षेत्र में अंतरसंचालनीयता में सुधार लाना चाहिए। हमें अपने राजनयिकों और अपनी खुफिया सेवाओं के बीच परामर्श और सूचना साझा करने का स्तर बढ़ाना चाहिए; दक्षिण पूर्व एशिया, प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में अवसंरचना वित्तपोषण पर सहयोग करना चाहिए; और इंडोनेशिया और जापान के साथ अपनी त्रिपक्षीय भागीदारी को पुनर्जीवित करना चाहिए। बेशक, अंतर्राष्ट्रीय संबंध अर्थशास्त्र से संचालित होते हैं, और भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच आर्थिक संबंधों में रन रेट जितना होना चाहिए, उससे कहीं अधिक धीमा है। लोगों से लोगों का संबंध बहुत मजबूत है। आज यूनाइटेड किंगडम को छोड़कर किसी भी अन्य विदेशी देश की तुलना में सबसे अधिक ऑस्ट्रेलियाई भारत में पैदा हुए हैं। तथापि भारत के बाजार के विशाल आकार के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया का केवल 3% वस्‍तु निर्यात भारत जाता है और यह लगभग पूरी तरह से कोयला है और भारत विदेशी निवेश के स्रोत या प्राप्तकर्ता के रूप में शीर्ष 20 देशों में नहीं शामिल है। जैसा कि भारत में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व उच्चायुक्त और विदेश मामलों और व्यापार विभाग के सचिव, पीटर वर्गीज ने अपनी भारत की आर्थिक रणनीति रिपोर्ट में कहा था, ऑस्ट्रेलियाई व्यापार ने लंबे समय से भारत को बहुत कठिन टोकरी में रखा है। इसे बदला जाना चाहिए। कोविड-19 के प्रति ऑस्ट्रेलिया की गलत धारणा वाले दृष्टिकोण को समाप्त करना और हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और कुशल प्रवासियों के लिए ऑस्ट्रेलिया की सीमाओं को फिर से खोलना हमारे संबंधों को फिर से ऊर्जा प्रदान करेगा। मैं इस समाचार का भी स्वागत करता हूँ कि हमारी दोनों सरकारों ने दीसाल के अंत से पहले प्रारंभिक समझौते की बात के साथ एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते के लिए बातचीत फिर से शुरू कर दी है।

ऑस्ट्रेलियाई सरकार और व्यवसायों को अपने काम करने के तरीके में सुधार लाना होगा, लेकिन ऐसा ही भारतीय सरकार और व्यवसायों को भी करना होगा। ऑस्ट्रेलियाई कंपनियाँ अभी भी भारत को व्यापार करने के लिए मुश्किल जगह मानती हैं। श्रम बाजार, वित्तीय क्षेत्र और कानूनी प्रणाली जैसे क्षेत्रों में और सुधार वांछनीय हैं और मैं भारत सरकार को व्यापार उदारीकरण के प्रति अधिक सकारात्मक और महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण अपनाते हुए देखना चाहता हूँ। भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास एशिया के भविष्य को आकार देने के लिए पर्याप्त साधन हैं। लेकिन हमें खुद पर और एक-दूसरे पर विश्वास करना है। अच्छी खबर यह है कि हमारी जनता पहले से ही यह कर रही है। 2021 में किए गए लोवी संस्‍थान के सर्वेक्षण से पता चला है कि 10 में से 6 ऑस्ट्रेलियाई, या तो बहुत अधिक या कुछ हद तक, भारत पर भरोसा करते हैं जो एक वर्ष में 16 अंकों की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। यह भारत को हमारे प्रमुख मित्रराष्‍ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में ऑस्ट्रेलिया के विश्वास के स्तर के बराबर रखता है और 2021 में किए गए ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विदेश नीति सर्वेक्षण में, दो तिहाई युवा भारतीयों ने कहा कि वे ऑस्ट्रेलिया पर पूरी तरह से या कुछ हद तक भरोसा करते हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका में उनके भरोसे के बाद दूसरे स्थान पर है और 10 में से 6 उत्तरदाताओं ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया अगले 10 वर्षों में भारत के प्रमुख भागीदारों में से एक होगा, पुन:, केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा। ये आश्चर्यजनक रूप से अनुपूरक परिणाम हैं, और इस तथ्य का और भी अधिक स्वागत करते हैं। अब, यह नीति निर्माताओं पर है कि वे अपने लोगों की दूरदर्शिता से तालमेल बैठाएं।

देवियो और सज्जनो, हम महान रणनीतिक प्रवाह के समय में रह रहे हैं। मुझे विश्वास है कि ऑस्ट्रेलिया और भारत खेल का रंग निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं, अगर हमारे पास ऐसा करने की रणनीतिक कल्पना है। हमें अपनी और एक-दूसरे की क्षमताओं पर भरोसा करते हुए और यह जानते हुए कि विधाता अपनी सहायता करने वाले लोगों की मदद करता है, अपने वातावरण को आकार देने का प्रयास करने से डरना नहीं चाहिए। मुझे उम्मीद है कि अटल बिहारी वाजपेयी की तरह भारत और ऑस्ट्रेलिया भी बड़ा सोचने का फैसला करेंगे। धन्‍यवाद।

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