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विदेश सचिव का चंडीगढ़ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित उच्च शिक्षा पर राजनयिक सम्मेलन में सम्बोधन

नवम्बर 12, 2021

चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के कूलपति श्री सतनाम सिंह संधू,
महामहिम और राजनयिक समुदाय के प्रतिष्ठित सदस्य,
भारत सरकार के मेरे सहयोगी
मित्रों,


1.मैं चंडीगढ़ विश्वविद्यालय और इसके कुलाधिपति श्री सतनाम सिंह संधू को उच्च शिक्षा पर राजनयिक सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई देना चाहूंगा। चंडीगढ़ विश्वविद्यालय ने इस कार्यक्रम के आयोजन में शिक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य किया है। सम्मेलन में राजनयिक समुदाय की इतनी महत्वपूर्ण भागीदारी देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

2. मैं मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन सत्र को संबोधित करने के लिए माननीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान को धन्यवाद देता हूं। माननीय प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री को कॉन्क्लेव में उनके द्वारा दिए संदेशों के लिए भी धन्यवाद दिया गया है।

3. इस कॉन्क्लेव के दौरान तीन विषयों पर विचार-विमर्श किया गया है- "उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए मार्ग प्रसस्त करना"; भारत के साथ-साथ प्रतिभागी देशों में उच्च शिक्षा के मानकों को ऊंचा करना"; और "चिंता के तत्काल क्षेत्र शिक्षा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में आई बाधा है."

4. सभी तीन विषय आज के संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक हैं। वे भारत के लिए प्रासंगिक हैं क्योंकि हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में अपने आर्थिक और सामाजिक विकास के अगले चरण में हैं। वे विश्व के लिए प्रासंगिक है क्योंकि यह वैश्विक महामारी के बाद, 21 वीं सदी के लिए तैयार आर्थिक और विकासात्मक मार्ग है जो कि ज्ञान पर टिकी संरचना है। शिक्षा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा, ऐसे प्रयासों के लिए केंद्रीय है।

5. ज्ञान और ज्ञान प्रणालियों के निर्माता और इनक्यूबेटर के रूप में, भारत हमेशा अन्य देशों के साथ अपनी शिक्षा साझा करने के लिए खुला रहा है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जो 2020 में शुरू की गई थी, जिसके बारे में मैं बाद में अधिक विस्तार से बात करूंगा, का उद्देश्य भारत को वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य विश्व गुरु या विश्व नेता के प्रारूप में भारत को बहाल करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में राष्ट्रीय प्रयासों में योगदान देना है।

6. उद्घाटन सत्र में माननीय शिक्षा मंत्री ने साझेदार देशों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की भारत की इच्छा का जिक्र किया। विदेश मंत्रालय भारतीय और वैश्विक शैक्षिक दृष्टिकोणों और संस्थानों के बीच मजबूत सेतु बनाने के लिए लगातार कार्य करेगा।

7. भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक समावेशी ढांचा है जो प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पूरे स्पेक्ट्रम पर केंद्रित है। इसमें शिक्षा को सुलभ, न्यायसंगत और समावेशी बनाने पर जोर दिया गया है। इन्हें वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के समकक्ष लाने के लिए पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र और सामग्री का गहन पुनर्गठन किया जा रहा है। यह नीति एक अच्छी तरह छात्र अनुभव सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न डोमेन के साथ उदार शिक्षा को सम्मिश्रण करने पर जोर देती है।

8. यहां, मैं मिशन कर्मयोगी के माध्यम से अपने विश्वविद्यालय शिक्षा से परे सिविल सेवकों के कौशल विकास और प्रशिक्षण को जारी रखने के लिए सरकार की पहल के बारे में भी संक्षेप में बात करना चाहूंगा। हमारे प्रधानमंत्री के शब्दों में, "मिशन कर्मयोगी क्षमता निर्माण की दिशा में अपनी तरह का एक नया प्रयोग है। इस मिशन के माध्यम से सरकारी कर्मचारियों को अपनी सोच, दृष्टिकोण को आधुनिक बनाना होगा और अपने कौशल सेट में सुधार करना होगा।

9. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया था, का उद्देश्य सस्ती लागत पर प्रीमियम शिक्षा प्रदान करके छात्रों के लिए एक वैश्विक गंतव्य के रूप में भारत को बढ़ावा देना भी है। इसमें अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने का प्रावधान है, जो छात्रों और बड़े पैमाने पर क्षेत्र दोनों के लिए एक बड़ी कामयाबी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी का पता लगाने के लिए अधिक अवसर होंगे ताकि भारतीय विश्वविद्यालय परिसरों में माइक्रो हब के माध्यम से शिक्षण, अधिगम और अनुसंधान कार्यक्रम स्थापित किए जा सके।

10. इससे अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय अपने पदचिह्न का विस्तार करने के लिए घरेलू संस्थानों के हमारे बड़े नेटवर्क का उपयोग कर सकेंगे और भारतीय छात्रों को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा को अधिक आसानी से पहुँचने में मदद करेंगे। दोहरी डिग्री कार्यक्रमों और ऑनलाइन डिग्री और क्रेडिट के माध्यम से सहयोग के रचनात्मक रूपों से भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अवसरों को बिना जरूरी विश्वविद्यालय कैम्पस मे गए और सुगम बनाया जाएगा।

11. विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ भारतीय विश्वविद्यालयों की भागीदारी पारस्परिक रूप से फायदेमंद होगी। इस समय 164 देशों के 50000 से अधिक छात्र विभिन्न कार्यक्रमों में भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। हमें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या बढ़ेगी। इस संबंध में, भारत ने यूरोप, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के 50 से अधिक देशों के साथ शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रम/समझौता ज्ञापन में प्रवेश किया है। इन सब मे अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यवस्था शामिल हैं,

12. शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रम और समझौता ज्ञापन जैसे कई पहलों के माध्यम से सहयोग की परिकल्पना हैं:

i. शोधार्थी, छात्रों और शोधकर्ताओं का आदान-प्रदान;
ii.सूचना/प्रकाशनों का आदान-प्रदान;
iii.संयुक्त सेमिनार, कार्यशालाओं, सम्मेलनों आदि का आयोजन;
v.योग्यता की पारस्परिक मान्यता की दिशा में कार्य करना;
v. संस्थागत संबंध विकसित करना।

13. भारत के पास विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों और यूनेस्को, ब्रिक्स, सार्क, भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका (आईबीएसए), पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, ओईसीडी और यूरोपीय संघ जैसे बहुपक्षीय/बहुपक्षीय निकायों के साथ शैक्षिक सहयोग नेटवर्क भी हैं।

14. भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति चौथी औद्योगिक क्रांति की जरूरतों और वास्तविकताओं के साथ-साथ महामारी के बाद के उभरते परिदृश्यों को संबोधित करती है। जैसा कि हम सबने देखा है और पिछले दो वर्षों के माध्यम से अनुभवी हैं, यह प्रतीत होता है की असंभव स्थितियों के समाधान खोजने में फुर्तीलापन और चपलता के लिए यह एक वास्तविक समय है। डिजिटल उपकरण और प्रणालियां एक विशाल बल गुणक हैं, और शारीरिक रूप से उपस्थित बैठकों और क्षमताओं के अभाव के लिए - संभव स्तर तक हमें आगे बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। विश्वविद्यालयों और शैक्षिक भागीदारी के लिए यहां एक सबक है।

15. जब अंतःविषय और विभिन्न-विषयक पाठ्यक्रम और डिग्री कार्यक्रमों की उभरती प्रवृत्ति के साथ संयुक्त रूप से, अंतर-देशीय और विभिन्न महाद्वीपों के बीच सहयोग के लिए विशाल क्षमता मौजूद है। इस सदी के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय सबसे पुराने इतिहास और सबसे ऊंची इमारतों के साथ नहीं होगा-परंतु सबसे विविध, अभिनव और वैश्विक भागीदारी के साथ होगा।

16. एक संबंधित या यहां तक कि अभिनव गठबंधन उप विषयक के लिए एक ग्रीनफील्ड सुविधा स्थापित करने के बजाय, एक विश्वविद्यालय या एक तकनीकी संस्थान यह एक और विश्वविद्यालय के साथ भागीदार के लिए उपयोगी हो सकता है। उपयुक्त साझेदार अगले जिले में, पड़ोसी देश में, या यहां तक कि किसी अन्य महाद्वीप में भी हो सकता है। शिक्षा और छात्रवृत्ति में, जैसे की शादी मे होता है, मैं यह सकता हूं की सही जोड़ी जरूरी नहीं की एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र मे मिले।

17. सरकारों और सार्वजनिक अधिकारियों के रूप में, हमें इच्छुक भागीदारों से मिलने में मदद करने के लिए पृष्ठभूमि सहायता प्रदान करनी होगी - और विश्वविद्यालयों को सहयोग करने में मदद करना होगा। हमारी शिक्षा नीति द्वारा पहले से ही इस रोमांचक नई विश्व के लिए तैयार है।

18. भारत हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों की मेजबानी करने के साथ-साथ विदेशों में हजारों छात्रों को भेजने में काफी अनूठा है। विदेश मंत्रालय एक महत्वपूर्ण छात्रवृत्ति कार्यक्रम का संचालन करने सहित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए समर्थन का एक महत्वपूर्ण सुविधाप्रदाता और स्रोत है। विदेश, हमारे दूतावास और वाणिज्य दूतावास एक परिचित चेहरा हैं, एक मदद का हाथ भी है और दूर देशों में भारतीय छात्रों के लिए एक अभिभावक भी हैं, जो कभी-कभार मुद्दों और चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, या बस घर से दूर रहने के कारण।

19. यह दो तरह की प्रक्रिया और युवा छात्रों, विद्वानों, शिक्षाविदों और प्रतिभा का आदान प्रदान जारी रहेगा और वास्तव में आने वाले वर्षों में यह तीव्र होगा। यह पूरी तरह से स्वागत योग्य है क्योंकि ज्ञान का मुक्त प्रवाह, और ज्ञान चाहने वालों और उत्पादकों का, अंतरराष्ट्रीय समझ और वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के लिए यह मौलिक है। आने वाले दिनों की प्रौद्योगिकियां - रोबोटिक्स, 4डी प्रिंटिंग, बायोइंजीनियरिंग, मैटेरियल साइंसेज, विशेष चिकित्सा, डिजिटल नवाचार और समाज में उनके एकीकरण और इसके नियामक ढांचे - छात्रों और दिमाग के एक और भी अधिक और व्यस्त प्रवाह को जन्म देगा।

20. अनिवार्य रूप से, देश उन देशों और समाजों से साझेदारी और छात्र सहयोग का स्वागत करेंगे जिनपर वह विश्वास करते हैं, और उन व्यक्तियों और प्रणालियों से भी साझेदारी करेंगे जो ज्ञान साझा करते हैं न की उसका ढेर लगाते हैं। और उन भागीदारों के साथ भी जो वैश्विक समाज में योगदान देते हैं, बजाय इसके की अकादमिक अनुसंधान का उपयोग इसलिए करें की दूसरों को हानी पहुंचाकर अपना फायदा कैसे करें या हथियारों के होर मे शामिल हों। यहां भारतीय प्रतिभाओं, संस्थानों और भागीदारों के साथ दुनिया का अनुभव सकारात्मक रहा है। भारतीय छात्रों से जिन्होंने सिलिकॉन वैली में तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करने में मदद की है, उन भारतीय विश्वविद्यालयों और शिक्षकों को, जिन्होंने अफ्रीका महाद्वीप में सार्वजनिक नेताओं की पीढ़ियों को शिक्षित किया है, जो उदाहरण सभी देख सकते हैं। ऐसे उदाहरण दोनों कई और उल्लेखनीय हैं।

21. मैं उद्धृत करना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हमारी शिक्षा नीति पर पहले क्या कहा था। विश्व को 21वीं सदी के भारत से बहुत उम्मीद है। भारत विश्व को प्रतिभा और प्रौद्योगिकी प्रदान करने की क्षमता वहन करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस जिम्मेदारी को संबोधित करती है जिसे हम विश्व के प्रति वहन करते हैं।

22. नई शिक्षा नीति के प्रमुख सिद्धांतों में से एक व्यवस्थित पारिस्थितिकी तंत्र के पोषण और अग्रिम के लिए उपयुक्त नीतिगत ढांचा प्रदान करना है। यह आने वाले वर्षों में विदेश मंत्रालय की अग्रणी जिम्मेदारियों में शामिल होने जा रहा है। और इसीलिए मुझे खुशी है कि चंडीगढ़ विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा की दुनिया में भारत की बढ़ती स्थिति को मजबूत करने के उद्देश्य से इस राजनयिक सम्मेलन के आयोजन में पहल की है।

23. इस राजनयिक सम्मेलन के माध्यम से और उससे आगे, भारत केंद्रित और प्रभावी साझेदारी स्थापित करने के लिए अन्य राष्ट्रों तक पहुंच रहा है। मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से भारतीय छात्रों, विश्वविद्यालयों और संस्थानों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचने में मदद मिलेगी। इससे कहीं अधिक, मुझे विश्वास है कि यह हमारे समाजों और हमारे लोगों की भलाई के लिए मानव शिक्षा, छात्रवृत्ति और ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करेगा ।

धन्यवाद।

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