जुलाई 02, 2020
इटली के अनुरोध पर, 15 फरवरी 2012 की घटना के संबंध में इतालवी टैंकर "एनरिका लेक्सी" और मछली पकड़ने वाली `सेंट एंटनी' नाम की नौका से संबंधित एक विवाद पर 26 जून 2015 को समुद्र संबंधी कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुलग्नक VII के तहत गठित आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला सुनाया।फैसले के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं: • ट्रिब्यूनल ने कहा कि दोनों नौसैनिकों ने अंतरराष्ट्रीय कानून यूएनसीएलओएस (UNCLOS) का उल्लंघन किया है और इसके परिणामस्वरूप इटली ने यूएनसीएलओएस (UNCLOS) (समुद्र संबंधी कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि) अनुच्छेद 87 (1) (ए) और 90 के तहत भारत की नौवहन स्वतंत्रता का उल्लंघन किया। • ट्रिब्यूनल ने देखा कि भारत और इटली का इस घटना पर समवर्ती अधिकार क्षेत्र था और नौसैनिकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करने के लिए एक वैध कानूनी आधार था।ट्रिब्यूनल ने नौसैनिकों को हिरासत में रखने के लिए मुआवजे के इटली के दावे को खारिज कर दिया।हालांकि, यह पाया कि सरकारी अधिकारियों की तरह नौसैनिकों को मिली छूट भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र के लिए अपवाद है और इसलिए उन्हें नौसैनिकों के खिलाफ फैसला करने से रोक दिया। • ट्रिब्यूनल ने इटली द्वारा 15 फरवरी 2012 की घटनाओं में अपनी आपराधिक जांच फिर से शुरू करने के लिए व्यक्त की गई प्रतिबद्धता पर ध्यान दिया। • ट्रिब्यूनल ने फैसला दिया कि भारत, "सेंट एंटनी" के कप्तान और अन्य चालक दल के सदस्यों के जीवन की क्षति, शारीरिक नुकसान, संपत्ति को नुकसान और नैतिक नुकसान के संबंध में, मुआवजे के भुगतान का हकदार है।ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि भारत को दी जाने वाली मुआवजे की राशि पर समझौते पर पहुंचने के लिए पक्षों को एक दूसरे के साथ परामर्श करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्णय लिया कि वह अधिकार क्षेत्र बनाए रखेगा यदि कोई भी पक्ष या दोनों पक्ष भारत को दिए जाने वाले मुआवजे को निर्धारित करने के संबंध में आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल से फैसले के लिए आवेदन करना चाहते हैं। भारत ने फैसले पर गौर किया और कहा कि वह इस मामले पर संबंधित संस्थाओं के साथ संपर्क करेगा।
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