अध्यक्ष महोदय, शिखर बैठक के लिए आपकी उत्कृष्ट व्यवस्था के लिए तथा आपके आतिथेय के लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहूंगा।
हमारी बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब विश्व अर्थव्यवस्था असाधारण अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। हमारे शिखर सम्मेलन का मूल्यांकन यूरो जोन के क्षेत्र से उत्पन्न वित्तीय अस्थिरता से निपटने के लिए हमारी योग्यता के आधार पर किया जाएगा। हमने आशा की
थी कि ग्रीक ऋण कम करने के लिए यूरो जोन के नेताओं द्वारा किए गए करार तथा अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराने के लिए यूरोपीय संघ - आईएमएफ कार्यक्रम को शीघ्रता से लागू किया जाएगा। ग्रीक सरकार द्वारा जनमत संग्रह की घोषणा से ये समीकरण गड़बड़ा गए हैं। मुझे उम्मीद है
कि स्थिति का प्रबंधन करने के तरीके ढूंढे जा सकते हैं ताकि यथाशीघ्र कोई पैकेज लागू किया जा सके।
हम यूरोपीय वित्तीय स्थिरता सुविधा के लिए संसाधन जुटाने तथा गहन निगरानी के माध्यम से राजकोषीय अनुशासन सुदृढ़ करने के लिए नवाचारी तंत्र विकसित करने की दिशा में यूरो जोन में की गई पहलों का स्वागत करते हैं। इससे किसी न किसी रूप में राजकोषीय संघ के बिना मौद्रिक
संघ बनाने की ज्ञात कमियों में से एक को दूर करने की दिशा में कोई रास्ता निकलेगा। तथापि, संकट से निपटने में इन व्यवस्थाओं की कारगरता का अभी परीक्षण किया जाना है।
यद्यपि इन समस्याओं से निपटने के लिए यूरो जोन के देशों की मुख्य जिम्मेदारी है, फिर भी बाकी विश्व में यूरो जोन से प्रभावों के छलकने का खतरा हम सबके लिए चिन्ता का विषय है।
उत्तरोत्तर एकीकृत विश्व में, यूरो जोन के देशों समेत यूरोप की समृद्धि और व्यवस्थित कार्यकरण में हम सबका दांव लगा हुआ है। यूरो जोन के देशों में लंबी अनिश्चितता एवं अस्थिरता से हम सबको नुकसान हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को चाहिए कि वह क्षेत्रीय
निगरानी के अंग के रूप में स्थिति पर बारीकी से नजर रखे। उसे उपयुक्त ढंग से सहायता प्रदान करने का भी इच्छुक होना चाहिए, अगर ऐसा करने के लिए उससे कहा जाता है।
हम यूरोप में स्थिरता बहाल करने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की भूमिका का जोरदार समर्थन करते हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को उन विकासशील देशों की तरलता संबंधी आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए, जो इस संकट के केंद्र में नहीं हैं, परन्तु
निर्दोष तमाशाई के रूप में प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
जैसा कि हम अस्थिरता की अल्पावधिक समस्या से निपटने का प्रयास कर रहे हैं, हमें औद्योगिक देशों में तथा विकासशील देशों में विस्तृत आधार पर समुत्थान एवं संपोषणीय विकास की चुनौती का भी सामना करना चाहिए। पारस्परिक मूल्यांकन प्रक्रिया की कवायद में यही कार्य
करने का जिक्र है।
हम अल्पावधि में विकास को गति देने के लिए आवश्यकता को संतुलित करने के कार्य तथा मध्यम अवधि में राजकोषीय स्थिरता बहाल करने के मुश्किल कार्य से जूझ रहे हैं। इनके लिए बहुत भिन्न नीतिगत अनुदेशों की जरूरत है।
मध्यम अवधि में कारगरता एवं प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ाने के लिए जी-20 के सभी देशों में पारस्परिक मूल्यांकन प्रक्रिया को संरचनात्मक सुधारों पर बल देने की जरूरत है। इससे निवेशकों का उत्साह बहाल करने में सहायता मिलेगी, जो सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र
में मांग को बनाए रखने का बोझ अंतरित करने में हमें समर्थ बनाने के लिए आवश्यक है। इस तरह का पुनर्संतुलन समुत्थान को संपोषणीय बनाने के लिए आवश्यक है।
हम भारत में ऊंची विकास दर की वापसी के सुनिश्चय के लिए कदम उठा रहे हैं। वर्तमान वर्ष में हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी हो गई है तथा जीडीपी विकास दर 7.6 प्रतिशत से 8 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है। अनेक अन्य उभरते बाजार देशों की तरह हम भी मुद्रास्फीति
के उच्च स्तरों का अनुभव कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि 2012-13 में हमारी विकास दर अधिक हो जाएगी और मुद्रास्फीति भी नियंत्रित हो जाएगी।
मध्यम अवधि की हमारी रणनीति विशेष रूप से अवसंरचना में निवेश को बहाल करने तथा राजस्व संग्रहण में सुधार, जो कर सुधारों से आने की उम्मीद है, के माध्यम से अपना राजकोषीय घाटा कम करने के लिए निरंतर प्रयास पर केंद्रित है।
अध्यक्ष महोदय, जैसा कि जी-20 संकट प्रबंधन की अल्पावधिक समस्याओं से जूझ रहा है, इसे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की विकास संबंधी आवश्यकताओं से अपनी नजर नहीं हटानी चाहिए। एक लंबी अवधि के बाद, इन अर्थव्यवस्थाओं ने विस्तृत आधार पर विकास में तेजी का अनुभव
किया, जिसके चलते वे वैश्विक विकास में संभावित रूप से महत्वपूर्ण योगदान कर सकती हैं। परन्तु विकसित देशों में विकास की घटती रुझानों तथा वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता के कारण आज यह संकट में है।
हमें विकास के इन आवेगों को सुदृढ़ करने के विश्वसनीय तरीकों को ढूंढने की आवश्यकता है। सियोल में, मैंने वैश्विक बचत के पुनर्निर्देशन के लिए कदम उठाने का आह्वान किया था ताकि विकासशील देशों में निवेश बढ़ाने के लिए उनका प्रयोग किया जा सके। इससे औद्योगिक देशों
में निजी मांग में संतुलन को प्रतितुलित करने में सहायता मिलेगी।
बहुपक्षीय विकास बैंक वैश्विक बचत जुटाने एवं प्रयुक्त करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसलिए जी-20 को चाहिए कि वे इन संस्थाओं के लिए अपनी महत्वाकांक्षा के स्तर को ऊपर उठाएं ताकि वे उस तरह की परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकें जैसा उन्होंने युद्धोत्तर अवधि
में निभाया था।
जी-20 ने वैश्विक वित्तीय विनियमन को सुदृढ़ करने की दिशा में काफी प्रगति की है तथा अनुवर्ती उपायों के माध्यम से इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह महत्वपूर्ण है कि एक एकीकृत विश्व में एक समान मानक होने चाहिए जिन्हें सभी क्षेत्राधिकारों में एक साथ लागू किया
जाए ताकि एक दूसरे को पछाड़ने की दौड़ में कोई भी शामिल न हो। अन्यथा वित्तीय गतिविधि सख्ती से विनियमित क्षेत्रों से पलायन करके कम विनियमित क्षेत्राधिकारों में चली जाएगी। तथापि, यह महत्वपूर्ण है कि इन विनियामक सुधारों में विकासशील देशों की विकास संबंधी आवश्यकताओं
को ध्यान में रखा जाए।
भारत समेत अनेक विकासशील देशों में वित्तीय बाजार सख्ती से विनियमित हैं। इस सख्त विनियमन ने अत्यधिक उत्तोलन से उत्पन्न वित्तीय संकटों से बचने में हमारी सहायता की, परन्तु हमें इसकी लागत भी चुकानी पड़ी क्योंकि इससे मध्यस्थता की लागत में वृद्धि हुई।
इसलिए उभरते बाजार अपने वित्तीय बाजारों को आधुनिक बनाने तथा मध्यस्थता का विस्तार करने के विचार से सख्त विनियमों में उत्तरोत्तर कमी लाने में लिप्त थे।
संकट से पूर्व भारत जैसे उभरते बाजारों की प्राथमिकताएं विनियामक न होकर विकास से संबंधित थीं जिनका उद्देश्य वास्तविक अर्थव्यवस्था में विकास की ऊंची दर को बनाए रखने के लिए नए बाजारों को गहन एवं विकसित करना था।
संकट से पूर्व भारत में अन्यों के अलावा, वित्तीय समावेशन, अवसंरचना के लिए दीर्घावधिक निधीयन लिखतों का प्रावधान, मौद्रिक नीति के पारेषण में सुधार के लिए तरल बांड बाजारों का विकास आदि वित्तीय क्षेत्र की प्राथमिकताएं थीं। भारतीय वित्तीय बाजारों में या वैश्विक
स्तर पर ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ है जिसकी वजह से इन प्राथमिकताओं को बदलना आवश्यक हो। हमें आश्वस्त होने की जरूरत है कि वैश्विक स्तर पर शुरू किए जा रहे विनियामक सुधार इस प्रक्रिया में अड़चन नहीं बनेंगे।
ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां हमारे सरोकार भिन्न हैं। उदाहरण के लिए, यद्यपि भारत में बैंकिंग पूंजी को सुदृढ़ करने की जरूरत है, ऐसा अधिक जोखिम के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है कि हम जिस वास्तविक ऊंची विकास दर की उम्मीद करते हैं, उसके पोषण के लिए बहुत तेज गति
से क्रेडिट में विस्तार होने का अनुमान है। एक अन्य उदाहरण के रूप में, यद्यपि यह सिद्धांत बहुत मजबूत है कि बेल आउट की लागत इक्विटी धारकों पर पड़ती है न कि करदाताओं पर, भारत में वित्तीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र अधिकांशत:
राज्य के स्वामित्व में है तथा इक्विटी धारक एवं करदाता अधिकांशत: एक और समान हैं।
इस परिवेश में, यह समझना कठिन है कि वित्तीय क्षेत्र पर कर, जिससे कुछ और न होकर पूंजी की लागत ही और बढ़ेगी, क्यों उपयुक्त होगा।
अध्यक्ष महोदय, कर अपवंचन एवं अवैध प्रवाह से विकासशील देशों से कराधारों के विदेशों में पलायन का मार्ग प्रशस्त होता है। जी-20 को इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए एक तगड़ा संदेश भेजना चाहिए। जी-20 के देशों को वर्तमान या अतीत जैसे कृत्रिम भेदों पर ध्यान
दिए बिना, हमारी लंदन शिखर बैठक की इस भावना को ध्यान में रखते हुए कि ‘‘बैंक गोपनीयता का युग खत्म हो गया है’’ कर अपवंचन या कर जालसाजी के संबंध एक दूसरे के साथ कर से संबंधित सूचनाओं के स्वत: आदान प्रदान पर सहमत होने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, आपका धन्यवाद।
कान (फ्रांस)
03 नवंबर, 2011