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पेरिस शांति मंच में विदेश मंत्री का हस्तक्षेप (12 नवम्बर, 2019)

नवम्बर 12, 2019

महामहिम ली ड्रीआन,
महामहिम हेइकोमास,
अन्य सम्मानित मंत्रीगण,
महानुभावों एवं मित्रों।


साइबरस्पेस के प्रशासन से संबंधित मुद्दों पर पेरिस शांति मंच में बोलने का अवसर देने तथा निमंत्रण के लिए धन्यवाद।

हमारी बातचीत का एक प्रारंभिक बिंदु साइबरस्पेस और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के बारे में हमारी साझा समझ है, जिसमें मेरे विचार से, शामिल हैं:

(i) यह मान्यता कि यह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, औद्योगिक और यहां तक कि व्यवहार परिवर्तन का एक वास्तविक बल रहा है।

(ii) यह राष्ट्र की सीमाओं में संचालित होता है लेकिन इसकी प्रकृति सीमाहीन है।

(iii) डाटा इसकी नई मुद्रा है जो नई प्रौद्योगिकियों और उनके उपयोग को शक्ति प्रदान करता है।

(iv) असीम अवसर प्रदान करता है, लेकिन यह हमें चुनौतियों के एक अनसुलझे क्षेत्र में भी ले जाता है।

(v) इसकी अच्छाइयाँ साझा हो सकती हैं लेकिन इसके भीतर प्रतियोगिता और संघर्ष के लिए भी स्थान हैं।

अब, भारत जैसे बड़े विकासशील देश के लिए, डिजिटल डोमेन और इसकी तकनीकें हमारे लोकतंत्र और विकास कार्यक्रमों को संचालित करती हैं; प्रभावी और विस्तारित शासन के केंद्र में हैं; और हमारे ज्ञान और नवाचार अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करता है।

चार साल पहले, हमने दुनिया के सबसे बड़े, डिजिटल प्रौद्योगिकी संचालित परिवर्तन कार्यक्रम "डिजिटल इंडिया" को लॉन्च किया। इसकी केंद्रीय धारणा यह है कि डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर सभी नागरिकों के लिए एक उपयोगी वस्तु के रूप में उपलब्ध होनी चाहिए।

दुनिया का सबसे बड़ा 1.2 बिलियन बायोमेट्रिक्स आधारित मजबूत डिजिटल यूनिक आईडी प्रोग्राम; 1.2 बिलियन मोबाइल फोन कनेक्शन; 1 बिलियन बैंक खाते; और 500 मिलियन से अधिक इंटरनेट कनेक्शन (और तेजी से बढ़ रहा) ने बड़े पैमाने पर एक ऐसा मैट्रिक्स बनाया है जो प्रगति को शासन के साथ सम्मिलित करता है; और पूरी आबादी को राष्ट्रीय विकास में शामिल करता है।

एल्गोरिदम का उपयोग हमारी महिलाओं, गरीबों, किसानों, युवाओं, हमारे वित्तविहीन और समाज के अन्य हाशिए पर के वर्गों को सशक्त बनाने के लिए किया जाता है।

अवसरों को लेकर हम उत्साहित हैं, लेकिन साइबरस्पेस के खतरों के बारे में चिंतित भी हैं।

ऐसे कई राज्यीय और गैर-राज्यीय कारक हैं, जिनकी हरकतें हमारी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए स्पष्ट खतरा हैं।

एक उदाहरण चरमपंथी प्रचार सहित आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों; आतंकियों का वित्तपोषण; साइबर स्पेस में अवैध तस्करी और कट्टरपंथीकरण का बेरोक-टोक विस्तार है।

आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी ऑनलाइन सामग्री को समाप्त करने के लिए क्राइस्टचर्च के आह्वान को भारत का समर्थन समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संपूर्ण डिजिटल स्पेस हमारे समाजों और अर्थव्यवस्थाओं की रक्षा और सुरक्षा को खतरे में डाले बिना उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कार्य करता है, जिससे कि लेसेज़ फेयर दृष्टिकोण और सत्तावादी दृष्टिकोण के बीच संतुलन सही प्राप्त हो सके।

तो सरकारों और अन्य हितधारकों को क्या करना चाहिए?

हम जानते हैं कि डिजिटल स्पेस में नीति और नियामक हस्तक्षेप पर बहस कोई नई बात नहीं है।

हम यह भी जानते हैं कि यद्यपि यूएन फ्रेमवर्क के तहत कई अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों, जैसे यूएनजीजीई, ने कुछ सराहनीय कार्य किए हैं, फिर भी एक वैश्विक समझौता हो पाना मुश्किल ही रहा है।

हमारे विचार में, साइबरस्पेस में चुनौतियों का जवाब देने तथा अवसरों को बढ़ाने के लिए टूल किट को प्रत्येक हितधारक की स्पष्ट भूमिका को पहचानने की आवश्यकता होगी, और इसमें शामिल होंगे:

(i) राज्य संप्रभुता के सिद्धांत से लेकर, राज्यों/सरकारों के लिए अपने संबंधित राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करने के लिए एक स्पष्ट भूमिका और जिम्मेदारियां;

(ii) राज्यों को डाटा गोपनीयता की रक्षा करनी चाहिए और अपने नागरिकों के लिए डाटा सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए;

(iii) साथ ही साथ उनके खुलेपन को बनाए रखना;

(iv) डिजिटल डोमेन में मौजूदगी से आतंकवाद और चरमपंथ की ताकतों को रोकने के लिए देशों (द्विपक्षीय या बहुपक्षीय) द्वारा समन्वित कार्रवाई। महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं पर साइबर हमलों सहित विशिष्ट सुरक्षा खतरों के लिए, देशों को शीघ्र कार्रवाई और शमन की व्यवस्था करने पर विचार करना चाहिए।

(v) सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और कई सामाजिक कथाओं के विभिन्न रूपों को स्थान दें।

अंत में, यदि वैश्विक विनियमन नहीं भी है तो हमें एक वैश्विक समझ पर पहुंचने की आवश्यकता है, ताकि साइबरस्पेस खुला और सुरक्षित रह सके और इसके लिए बहुपक्षवाद पहले से कहीं अधिक आवश्यक है।



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