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मेक्सिको और ब्राज़ील के लिए प्रस्थान करने से पूर्व प्रधानमंत्री जी का वक्तव्य

जून 16, 2012

राष्ट्रपति फेलिप काल्ड़ेरोन के निमंत्रण पर मैं लॉस कबोस, मेक्सिको में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रस्थान कर रहा हूँ। इसके बाद में राष्ट्रपति दिलमा रोसेफ के निमंत्रण पर सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भाग लेने के लिए रियो डि जेनारियो, ब्राज़ील जाऊंगा।

यूरो ज़ोन में आर्थिक संकट और सुस्त पड़ती विश्व अर्थव्यवस्था के साये में एक बार पुनः जी-20 नेताओं की बैठक होने जा रही है। यूरोप की यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि यूरोप विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है और यह भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापार और निवेश भागीदार भी है। यदि वहाँ समस्याएँ बनीं रहती हैं तो इससे विश्व बाज़ारों में मंदी आएगी और हमारी आर्थिक प्रगति पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हमारी आशा है कि यूरोप के नेता अपने समक्ष विद्यमान वित्तीय समस्याओं का समाधान करने के लिए ठोस कार्यवाही करेंगे।

तात्कालिक चिंता का एक और कारण वैश्विक विकास को बहाल करने की ज़रूरत भी है। यह अनिवार्य है कि जी-20 के देश सतत विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों का कार्यान्वन करने के लिए समन्वय के साथ कार्य करें। भारत "मजबूत, स्थायी एवं संतुलित विकास की रूप रेखा'' से संबन्धित कार्य दल के सह अध्यक्ष के रूप मे इस उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयास करता रहा है। मैं जी-20 में होने वाले विचार विमर्शों में विकास आयाम की प्राथमिकता सुनिश्चित करने तथा वैश्विक विकास को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में अवसंरचना क्षेत्र में, अन्य निवेश पर बल दिये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दूंगा।

ब्रिक्स देश विश्व अर्थव्यवस्था के नए विकास ध्रुव बनकर उभरे हैं। इस वर्ष मार्च माह में नई दिल्ली में आयोजित चौथे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स नेताओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्वस्थ बहाली के अनुकूल वृहत आर्थिक स्थायित्व बनाए रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत समन्वय सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर कार्य करने पर सहमति व्यक्त की थी। ब्रिक्स के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में भारत इस शिखर सम्मेलन की कार्यसूची पर विचार विनमय करने के लिए जी-20 शिखर सम्मेलन आरंभ होने से पूर्व ब्रिक्स नेताओं की एक अनौपचारिक बैठक की भी मेजवानी करेगा।

वर्ष 1992 में आयोजित रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन के बाद से हमने लंबी दूरी तय की है। आज वैश्विक चर्चाओं में पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को महत्वपूर्ण जगह दी जाती है। फिर भी हम विकास की ओर सही मायने में सतत मार्ग पर बढ़ने से काफी दूर हैं। सतत विकास से सम्बद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सतत विकास के प्रतिमान को सार्थकता प्रदान करने का एक ऐतिहासिक अवसर उपलब्ध कराता है। इसके केंद्र में संसाधन गहन विकास मार्ग से हटने की अनिवार्यता है जबकि लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली घोर गरीबी का उन्मूलन करने के लिए समावेशी एवं संतुलित विकास भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

रियो+20 सम्मेलन में हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास लक्ष्यों जैसे जटिल एवं विवादास्पद मुद्दों पर बहस होने की संभावना है। में इस बात पर बल देना चाहूँगा की हमें रियो 1992 के प्रधान सिद्धांतो, खास कर साझे परंतु भिन्न दायित्वों और समानता के सिद्धांतों को समाप्त नहीं करना चाहिए जो वैश्विक सतत विकास प्रयासों के केंद्र में रहें हैं।यदि हमें पर्यावरण से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण चुनोतियाँ का समाधान करने के लिए वैश्विक समुदाय के रूप में करना है तो हमें पूरे विश्व में विकास के स्तरों में सतत रूप से मौजूद अंतर को तथा विकासशील विश्व के लिए वित्तीय और प्रौद्योगिक समर्थन का प्रावधान किए जाने की आवश्यकता स्वीकार करनी होगी। भारत इस प्रयास में सर्वसम्मति का निर्माण करने के लिए सामान्य विचार वाले देशों के साथ मिलकर कार्य करेगा।

अपनी यात्रा के दौरान मुझे राष्ट्रपति फिलिप कोल्डेरोन, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चान्सलर एंजेला मरकेल, राष्ट्रपति फ्रेंकोइस होलन्दे, प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर, प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ, राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षा, प्रधानमंत्री जिगमी वाई थिनले, प्रधान मंत्री बाबुराम भट्टारइ, राष्ट्रपति बोनी यायी तथा अन्य नेताओं से मिलने की प्रतीक्षा है।

नई दिल्ली
16 जून 2012



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