सरकारी प्रवक्ता (श्री सैयद अकबरुद्दीन) : नमस्कार मित्रो, इस मीडिया वार्ता में आप सबका स्वागत है। यहां उपस्थित होने के लिए आप सबका धन्यवाद। आज हम प्रधानमंत्री जी की मैक्सिको और ब्राजील यात्रा पर अपनी वार्ता केन्द्रित
रखेंगे। माननीय पर्यावरण एवं वन मंत्री को आमंत्रित करने से पूर्व मैं कुछ ब्यौरे देना चाहूंगा।
जैसा कि आप सब जानते हैं 18 और 19 जून, 2012 को मैक्सिको में आयोजित हो रहा जी-20 शिखर सम्मेलन इस कड़ी में 7वां सम्मेलन है। इसका आयोजन लास कॉबोस में किया जा रहा है। जी-20 के सदस्यों और स्पेन, जो जी-20 शिखर सम्मेलनों में स्थायी रूप से आमंत्रित देश है, के
अतिरिक्त मैक्सिको ने अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष के रूप में बेनिन को और आसियान के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में कंबोडिया को तथा चिली, श्रीलंका और इथोपिया को इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आतंत्रित किया है।
मैक्सिको ने अपने अध्यक्षता काल के दौरान पांच प्राथमिकताओं पर बल दिया है। इसकी सूची निम्नलिखित है:
- विकास और रोजगार की आधारशिलाओं के रूप में आर्थिक स्थायित्व एवं ढांचागत सुधार।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रणाली का संवर्धन तथा वित्तीय समावेश को प्रोत्साहन।
- अंतर्संबंधित विश्व में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रूपरेखा में सुधार।
- खाद्य सुरक्षा का संवर्धन, पण्यों के मूल्य में उतार-चढ़ाव की समस्या का समाधान।
- सतत विकास एवं हरित विकास का संवर्धन तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान।
चूंकि आमतौर पर जी-20 द्वारा दो ट्रैकों-शेरपा ट्रैक तथा वित्त ट्रैक, के संबंध में की जाने वाली चर्चाएं आज आरंभ हो गई हैं, इसलिए जी-20 की चर्चाओं में हमारी ओर से भाग लेने वाले सभी लोग पहले ही लॉस कॉबोस पहुंच गए हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष डा. मोंटेक सिंह
अहलूवालिया भारतीय पक्ष के शेरपा हैं। आर्थिक कार्य विभाग में सचिव श्री आर. गोपालन वित्त ट्रैक को देख रहे हैं। इसलिए आज की प्रेस वार्ता में हम जी-20 में हुई चर्चाओं से संबंधित विशेष ब्यौरे आप सबको नहीं दे पाएंगे। मैं आप सबको कुछ अन्य बैठकों के बारे में जानकारी
देना चाहूंगा जो लॉस काबोस में प्रधानमंत्री जी करना चाहते हैं।
जैसा कि आप जानते हैं जी-20 शिखर सम्मेलन के अतिरिक्त आमतौर पर द्विपक्षीय बैठकें भी होती हैं। मेरी समझ यह है कि प्रधानमंत्री अनेक द्विपक्षीय बैठकों में भाग लेंगे। परंतु मैं आपके समक्ष उन्हीं बैठकों का ब्यौरा रखूंगा, जिसकी पुष्टि हो रखी है। मैक्सिको के राष्ट्रपति
श्री फेलिप काल्डेरोन, जर्मनी की चांसलर सुश्री एंजेला मर्केल, रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन, फ्रांस के राष्ट्रपति श्री फ्रेंकोइस होलांडे के साथ द्विपक्षीय बैठकें होंगी। इसके अतिरिक्त लॉस काबोस में ब्रिक्स नेताओं की भी बैठक होगी। इन बैठकों के
अतिरिक्त कुछ और बैठकों का निर्धारण किया जा रहा है। इनके ब्यौरे प्राप्त होने पर ही मैं आपको इसके समय के बारे में जानकारी दे पाऊंगा।
मैं आप सबको मेरे द्वारा उल्लिखित दो लोगों के अतिरिक्त प्रधानमंत्री जी के साथ जाने वाले प्रतिनिधिमण्डल के अन्य सदस्यों के बारे में बताना चाहूंगा। इसमें प्रधानमंत्री जी के सलाहकार श्री टी.के.ए. नायर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री शिवशंकर मेनन, प्रधानमंत्री
जी के प्रधान सचिव श्री पुलोक चटर्जी और विदेश सचिव श्री रंजन मथाई शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री जी सतत विकास से संबद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भी भाग लेंगे, जिसे आमतौर पर रियो+20 शिखर सम्मेलन के रूप में जाना जाता है। हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे साथ माननीय पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती जयंती
नटराजन हैं जो रियो+20 में हमारी प्रधान वार्ताकार हैं। उनकी सहायता करने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की सचिव डॉ. तिश्या चटर्जी हैं।
माननीय मंत्री महोदया ने रियो+20 के संबंध में आप सबको जानकारी देने पर अपनी सहमति व्यक्त की है। जैसा कि आमतौर पर होता है, इसके बाद किसी विशेष मुद्दे पर स्पष्टीकरण के लिए वह लघु प्रश्नोत्तर सत्र के लिए भी उपलब्ध रहेंगी।
इस प्रस्तावना के साथ ही मैं अब मंच मंत्री महोदया को सौंपता हूं ताकि वे पहले अपनी आरंभिक टिप्पणी दे सकें और तदुपरांत प्रश्नोत्तर सत्र होगा।
महोदया,
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) (श्रीमती जयंती नटराजन): धन्यवाद और नमस्कार।
हम आज अत्यंत ही महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रियो+20 सम्मेलन की पूर्व संध्या पर हैं, जिसके बारे में नि:संदेह आप सबको जानकारी होगी। यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण सम्मेलन है क्योंकि हम वर्ष 1992 में आयोजित पहले पृथ्वी सम्मेलन के लक्ष्यों के कार्यान्वयन के 20वें
वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।
जैसा कि आप सबको स्मरण होगा, पहला रियो सम्मेलन अत्यंत ही महत्वपूर्ण घटनाक्रम था क्योंकि इसमें 20 वर्ष पूर्व विकास प्रक्रिया की निरंतरता की विचारधारा का सूत्रपात किया था। मैं यहां जोर देना चाहूंगी कि उस समय की निरंतरता तथा आज की निरंतरता अनिवार्यत: विकास
की एक विचारधारा है। पिछले वर्षों के दौरान इसमें पर्यावरण से संबंधित चिंताओं को भी जोड़ा जाता रहा है।
पहले रियो सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण उपाय किए गए थे। इसमें निम्नलिखित तीन अभिसमयों की स्थापना की गई थी- जलवायु परिवर्तन अभिसमय, जैव विविधता तथा अवानिकीकरण। अत: रियो+20 शिखर सम्मेलन जिसमें अन्य शासनाध्यक्षों के साथ हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी भी भाग लेंगे,
में प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन में व्यक्त प्रतिबद्धताओं तथा उपरोक्त तीन अभिसमयों के कार्यान्वयन की समीक्षा की जाएगी।
एक शून्य मसौदा पाठ भी है, जिस पर चर्चा की जा रही है। इस पर काफी समय से बात चलती रही है। आपका बहुत अधिक समय नहीं लेते हुए मैं इस शून्य मसौदे की कुछ बातें आपके समक्ष रखना चाहूंगी। इसे ''वांछित भविष्य'' कहा जाता है। इसमें अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे भी शामिल हैं।
फिलहाल जिन महत्वपूर्ण खण्डों पर चर्चा की जा रही है वे हमारे साझे विजन, राजनैतिक प्रतिबद्धता के नवीनीकरण, हरित अर्थव्यवस्था, सतत विकास के लिए संस्थागत रूपरेखा और कार्रवाई तथा अनुवर्ती कार्रवाई की रूपरेखा से संबंधित हैं।
रियो सम्मेलन के विभिन्न विषयों में से दो विषयों ने पर्याप्त रूप से हमारा ध्यान आकर्षित किया है। ये हरित अर्थव्यवस्था और संस्थागत रूपरेखा से संबंधित हैं। इस बात की भी आशा है कि कार्रवाई एवं अनुवर्ती कार्रवाई रूपरेखा के तहत रियो सम्मेलन के एक डेलिवरेबल
के रूप में सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) से संबद्ध मुद्दे पर चर्चा की जाएगी।
सिर्फ यही एक मसला नहीं है। हमारे अनुसार एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण मुद्दा कार्यान्वयन का तरीका भी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विभिन्न देशों द्वारा जिन सिद्धांतों के आधार पर कार्रवाई की जानी है और जिस तरीके से रियो सिद्धांतों की पुष्टि की गई है और इनका
कार्यान्वयन किया गया है, वह रियो सम्मेलन के परिणामों के संदर्भ में महत्वपूर्ण होगा।
सबसे पहले मैं आप सबको हरित विकास की विचारधारा के बारे में जानकारी देना चाहूंगी। इसे आमतौर पर अल्प कार्बन विकास अथवा जलवायु अनुकूल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में समझा जाता है। हमारे मंत्रिमंडल द्वारा अधिदेशित भारत के नजरिए से यह हरित विकास एवं हरित अर्थव्यवस्था
की अत्यंत ही निषेधात्मक व्याख्या है। हम चाहते हैं कि हरित विकास को एक सामान्य विचारधारा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हम हरित अर्थव्यवस्था पर चर्चा करना चाहेंगे ताकि उन नीतियों का विकास और अनुपालन किया जाए जो पर्यावरण हितैषी आर्थिक प्रगति को बढ़ावा
देते हैं और साथ ही राष्ट्रीय परिस्थितियों का भी सम्मान करते हैं।साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कार्रवाई करने के लिए हमें राष्ट्रीय नीतियां बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
हरित अर्थव्यवस्था की विचारधारा का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत सतत विकास की विचारधारा को अधिरोपित करना नहीं है। यह भी महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास, सामाजिक समानता तथा पर्यावरण संरक्षण की तीनों आधारशिलाओं के बीच संतुलन होना चाहिए। इसलिए भारतीय नजरिए
में मुख्य रूप से इन्हीं तीन आधारशिलाओं, नामत: आर्थिक विकास, सामाजिक समानता और पर्यावरण संरक्षण के संतुलन पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
हमारे बातचीत की आदर्श भावना यही होगी कि हम समानता तथा साझे तथा भिन्न दायित्वों (सीबीडीआर) के सिद्धांतों पर विशेष रूप से बल दें, जिसे पहले ही मूल रियो सिद्धांतों के रूप में अभिव्यक्त किया जा चुका है।
हम इस बात के प्रति भी सजग हैं कि रियो+20 निष्कर्षों से हरित विकास और सतत विकास के नाम पर व्यापार को अवरुद्ध करने वाले उपाय तथा संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा न मिले क्योंकि गरीबी का उन्मूलन करना अभी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सबसे तात्कालिक प्राथमिकता
है। अत: हरित विकास को उपर्युक्त तात्कालिक प्राथमिकताओं को मूर्तरूप देने के एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
हम चाहते हैं कि रियो सम्मेलन के जरिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण संदेश दिए जाएं। इस सम्मेलन में सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की जानी चाहिए। इससे रियो सिद्धांतों एवं साझे परंतु भिन्न दायित्वों के सिद्धांत की पुन: पुष्टि की जानी चाहिए जो सतत विकास
से संबद्ध वैश्विक भागीदारी के अनुरक्षण के लिए अनिवार्य है। हम भोजन, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार की पुष्टि चाहते हैं और विभिन्न नजरिए पर आधारित मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं। हमारा मानना है कि विकसित देशों की वर्तमान प्रतिबद्धताओं
को कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है और घोषणा पर त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए।हमारा यह भी मानना है कि विकसित देशों से नए, अतिरिक्त, पूर्वानुमेय और सार्वजनिक वित्त प्राप्त करने की भी जरूरत है।
यदि सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को विश्व स्तर पर लागू किया जाना है तो साझे परंतु भिन्न दायित्वों के सिद्धांत पर निश्चित रूप से सहमति बननी चाहिए। मैं विशेष रूप से बल देना चाहूंगा कि सतत विकास लक्ष्य स्वैच्छिक, आकांक्षाओं पर आधारित, अबाध्यकारी होने
चाहिए तथा इसकी विषयवस्तु के विकास के संबंध में जिद नहीं की जानी चाहिए।
अतंत: मैं उन पांच उपायों का उल्लेख करना चाहूंगा जो भारत ने किए हैं। ऐसा नहीं है कि हम हरित विचारधारा में विश्वास नहीं करते। हमने हरित विकास अथवा अल्प कार्बन विकास की दिशा में महत्वपूर्ण उपाय किए हैं। हमने वर्ष 2005 की तुलना में वर्ष 2020 तक अपने सकल घरेलू
उत्पाद की उत्सर्जन गहनता में 20 से 25 प्रतिशत की कमी करने पर अपनी सहमति व्यक्त की है। जलवायु परिवर्तन से संबद्ध राष्ट्रीय कार्य योजना के भाग के रूप में 20,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है और राष्ट्रीय सौर मिशन के अंतर्गत इस पर सक्रिय
रूप से कार्य किया जा रहा है।संवर्धित ऊर्जा प्रभाविता से संबद्ध राष्ट्रीय मिशन में छ: क्षेत्रों की 478 औद्योगिक इकाइयों को शामिल किया गया है, जिन्हें ऊर्जा प्रभाविता के संदर्भ में विशिष्ट मानदण्ड प्राप्त करने का अधिदेश दिया गया है। सतत अधिवास से संबद्ध
राष्ट्रीय मिशन में भवनों, परिवहन तथा नगरीय आयोजना में ऊर्जा प्रभाविता प्राप्त करने से संबंधित योजनाएं शामिल हैं। जिस 25 वर्षीय योजना को तैयार करने पर कार्य किया जा रहा है उसमें जलवायु परिवर्तन पर आशा है कि इस योजना के अंतर्गत अल्प कार्बन समावेशी विकास रणनीति
को भी समेकित किया जाएगा।
धन्यवाद।
सरकारी प्रवक्ता : अब आप सब प्रश्न पूछ सकते हैं।
प्रश्न: जयंती जी, रियो+20 शिखर सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में विशेषकर एसडीजी से संबंधित अबाध्यकारी प्रावधानों के संदर्भ में ब्रिक्स देशों द्वारा किस तरह की तैयारी की गई है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री: अत्यंत महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। सिर्फ ब्रिक्स ही नहीं जी-77 प्लस चीन ने भी विकासशील देशों के नजरिए के प्रति समर्थन दर्शाया है। पूरे वर्ष अथवा वर्ष से आगे चलने वाली वार्ताओं में, इससे
पूर्व भी जी-77 और चीन के सभी देशों तथा अन्य मैत्रीपूर्ण देशों और बेसिक, ब्रिक्स एवं अन्य समूह के देशों के साथ भी अलग से चर्चाएं हुईं परंतु ये चर्चाएं मुख्यत: जी-77 प्लस चीन के इर्द-गिर्द तक ही केन्द्रित रहीं।इसका उद्देश्य था कि विकासशील देशों की आवाज
को विधिवत तरीके से सुना जाए और समानता एवं सीवीडीआर के सिद्धांतों का स्पष्ट रूप से प्रतिपादन किया जाए और उसी प्रकार इसे आगे बढ़ाया जाए जैसे हमने डरबन में रखा जाए। अत: वार्ताओं में इन बातों पर विशेष रूप से बल दिया गया है और इसमें हमारी एकता की भी झलक मिली
है और यह भी स्पष्ट हुआ है कि हम इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
प्रश्न : क्या आप भारत और चीन की बात कर रहे हैं...(अश्रव्य)...
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री: मैं जी-77 प्लस चीन की बात कर रही हूं। हम नजरिया जी-77 और चीन के नजरिए के अनुरूप है और हम इसे आगे बढ़ाने की आशा रखते हैं।
प्रश्न : महोदया, प्रधानमंत्री जी ऐसे समय में जा रहे हैं जब राष्ट्रपति चुनाव के कारण हाल में उत्पन्न राजनैतिक घटनाक्रमों के कारण घरेलू स्तर पर काफी दबाव है। क्या किसी प्रकार का तनाव है? क्या घरेलू परिस्थितियों के
कारण इस दौरे में तनाव रहेगा?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : बिल्कुल नहीं। यह एक राजनैतिक लोकतंत्र है। कांग्रेस 100 वर्ष से अधिक पुरानी पार्टी है। प्रधानमंत्री जी के रूप में इनका यह दूसरा कार्यकाल है। हमें अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का सम्मान
करना होता है और इस दिशा में आगे बढ़ना होता है। संप्रग अध्यक्षा के रूप में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व मौजूद हैं। हमारी पार्टी कार्य कर रही है और गठबंधन भी कार्य कर रहा है। किसी प्रकार का तनाव नहीं है।
प्रश्न : उनके प्रश्न के अनुवर्ती प्रश्न के रूप में मैं कुछ पूछना चाहता हूं। आपको यह बताने में इतना समय क्यों लगा कि प्रधानमंत्री जी रेस में नहीं हैं?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री: यह वार्ता रियो+20 के लिए है। यहां मैं एक मंत्री के रूप में हूं। मेरे लिए...उपयुक्त नहीं होगा।
प्रश्न : आपने जी-77 और चीन के बारे में क्या बताया? बेसिक देशों का नजरिया क्या है? वे कौन सी बातें हैं, जिन पर भारत रियो में चर्चा नहीं करना चाहता है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : मैं इस बात पर बल नहीं देना चाहूंगी कि जी-77 प्लस चीन की सभी मुद्दों पर सहमति है। यह एक सतत प्रक्रिया है। अभी जब मैं बात कर रही हूं तब भी यह प्रक्रिया चल रही है। हमारे वार्ताकार वहां हैं।
हम जी-77 प्लस चीन का एक दृष्टिकोण रखने का प्रयास कर रहे हैं। हम बेसिक देशों के साथ भी बात कर रहे हैं। मैं समझती हूं कि हमने ठोस प्रगति की है। जहां तक भारत का संबंध है, निम्नलिखित पर हम बात नहीं करना चाहेंगे: समानता तथा सीबीडीआर के प्रश्न पर किसी प्रकार
का समझौता; इन एसडीजी को किसी भी प्रकार शैक्षिक अथवा आकांक्षाओं पर आधारित तथ्य से विकासशील देशों के लिए बाध्यकारी बनाने का प्रयास।जैसा कि आप सब जानते हैं, सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों की घोषणा एकपक्षीय तरीके से की गई थी और विकासशील देशों ने इसे स्वीकार
कर लिया। हमारा मानना है कि सतत विकास के लक्ष्य स्वैच्छिक एवं आकांक्षाओं पर आधारित होने चाहिए तथा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये कार्यान्वयन के तरीकों द्वारा समर्थित होने चाहिए, जिनमें वित्त, तथा व्यापार बाधाओं की अनुपस्थिति शामिल हैं।
प्रश्न : महोदया, जैसा कि आपने बताया कि आपका लक्ष्य यही हुआ है कि रियो शिखर सम्मेलन के परिणामों से हरित अर्थव्यवस्था के नाम पर गलत और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री: यह सही है।
प्रश्न: क्या आपने ब्रिक्स देशों तथा अन्य देशों के साथ अपनी रणनीतिक का समन्वय किया है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : जैसा कि मैंने बताया हम वस्तुत: जी-77 प्लस चीन, ब्रिक्स और बेसिक इत्यादि जैसे समूहों के साथ के साथ एक समूह के रूप में वार्ता करते रहे हैं।
प्रश्न : वार्ताओं के पिछले अनेक दौरों में विकासशील देशों तथा अमरीका और अन्य देशों द्वारा अपना पक्ष रखा गया है। इस संबंध में आगे की कोई प्रगति नहीं हुई। आप इसकी क्या संभावनाएं देखती हैं?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : मैं समझती हूं कि इस दिशा में प्रगति अवश्य ही हुई है। मैं समझती हूं कि हमें निरंतर बैठकें करनी होंगी। मेरा मानना है कि मैं इस मुद्दे पर अत्यंत आशावान हूं कि हम इस विजन को आगे ले जाने में
सफल होंगे। मैं ऐसे किसी निष्कर्ष को स्वीकार नहीं करना चाहूंगी कि इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। मेरा मानना है कि आज से 20 वर्ष के बाद हम इस तथ्य को ठोस तरीके से रख सकेंगे कि रियो सिद्धांतों की निश्चित रूप से पुन: पुष्टि की जानी चाहिए।
प्रश्न : क्या आप कुछ ऐसे तथ्यों की सूची दे सकते हैं, जिनमें आपके दृष्टिकोण में प्रगति हुई है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : यह तथ्य कि विकासशील देश...(अश्रव्य)...मूल रियो सिद्धांतों में कार्यान्वयन के तौर तरीकों, त्वरित वित्त पोषण, 30 बिलियन पर विशेष बल दिया गया था। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन का मुकाबला
करने के लिए हमने एक हरित जलवायु कोष की स्थापना की है। अत: हम इस संबंध में आशावान हैं कि विकसित देश निश्चित रूप से धन उपलब्ध कराने के लिए आगे आएंगे।
प्रश्न : ..(अश्रव्य)...
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : ऐसा नहीं हो पाया है। परंतु हम इस संबंध में बातचीत करते रहे हैं। हम आशा करते हैं कि इस मंच पर हम इस बात पर बल देने में समर्थ होंगे कि अनुचित व्यापार प्रतिबंधों एवं एक पक्षीय व्यापार प्रतिबंधों
को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसलिए हम बातचीत करना जारी रखेंगे क्योंकि ये मुद्दे अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। मेरे विचार में आगे बढ़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि हम इस बात को रेखांकित करें कि सतत विकास का मतलब ऊपर उल्लिखित तीनों आधारशिलाओं के बीच संतुलन
स्थापित करना है। गरीबी उन्मूलन इसमें से सबसे महत्वपूर्ण बात है तथा विकासशील देशों के संदर्भ में समानता और सीबीडीआर अन्य बातों की तरह ही समान रूप से महत्वपूर्ण है।
प्रश्न : मंत्री महोदया, हम वर्ष 2020 तक कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में 20 से 25 प्रतिशत की कमी लाने का प्रस्ताव कर रहे हैं। परंतु यह स्वैच्छिक अथवा आकांक्षाओं पर आधारित होनी चाहिए। आप किसी भी बात को थोपा जाना अथवा किसी
प्रकार की बाध्यता नहीं चाहती हैं। दूसरा प्रश्न यह है कि क्या कार्बन प्रश्न का समाधान करने के लिए विकसित देशों से प्राप्त होने वाले धन के कतिपय भाग को पाने की आशा भारत भी कर रहा है? क्या विकासशील देश उड़ानों पर कार्बन कर लगाए जाने संबंधी यूरोप के निर्णय
के संदर्भ में एकीकृत नजरिया अपनाने जा रहे हैं?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : जहां तक आपके पहले प्रश्न का संबंध है, प्रधानमंत्री जी ने इसी संबंध में घोषणा की है। हमने भी अत्यंत गर्व के साथ कहा है कि यह ऐसी घोषणा है जो हमारी प्रतिबद्धता तथा जलवायु परिवर्तन से संबद्ध
समस्या का समाधान करने से संबंधित हमारे गंभीर दृष्टिकोण को दर्शाता है। साथ ही यह सतत विकास और पर्यावरण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का भी द्योतक है। यह एक स्वैच्छिक लक्ष्य है और इन लक्ष्यों को हमने स्वयं अपने लिए निर्धारित किया है। मैं समझती हूं कि हमने
इस दिशा में काफी तरक्की की है क्योंकि हमने इस आशय के विधान भी लाए हैं, जिसके जरिए अधिदेश दिया गया है कि निर्धारित अवधि के भीतर ऊर्जा प्रभाविता प्राप्त की जानी होगी।इस संबंध में हमने काफी प्रगति की है। इससे वस्तुत: हमारे इस नजरिए की पुष्टि होती है कि ये
लक्ष्य स्वैच्छिक, आकांक्षाओं पर आधारित तथा अबाध्यकारी होने चाहिए क्योंकि हमने इस दिशा में विकसित देशों की तुलना में कहीं अधिक कार्य किए हैं। इसके अतिरिक्त हमारे प्रधानमंत्री जी ने यह भी घोषणा की थी कि भारत की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर किसी भी हाल
में विकसित देशों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर से अधिक नहीं होगी। यह घोषणा उन्होंने हेलीगेंदाम में की थी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि हमने स्वैच्छिक रूप से ये कार्य किए हैं।
जहां तक ईयू ईटीएस का संबंध है, पर्यावरण मंत्रालय ने यह कहते हुए यूएनएफसीसी में ठोस विरोध दर्ज कराया कि यह अत्यंत ही प्रतिबंधात्मक और एकपक्षीय व्यापार उपाय है जो जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्रवाई के छद्म वेष में है और ईयू को इसे थोपना नहीं चाहिए। मैंने
यूरोपीय आयोग के उपायुक्त कोनी हेडेगार्ड को लिखा है और यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में भी हमने इस पर बात की। हमने ईयूईटीएस कर लगाए जाने पर अपना कड़ा विरोध जताय है और मैं समझती हूं कि उन्होंने इसे एक वर्ष के लिए टाल दिया है। परंतु हम इस बात पर और संभावित समुद्रीय
कर से जुड़े मुद्दे पर बल देते रहेंगे। हमें अतिरिक्त धन मिलने की भी आशा है।विकसित देशों का मानना है कि यह निजी हो सकता है। वे मंदी को इसका एक कारण मानते हैं। उनका मानना है कि यह निजी होना चाहिए और इसे एकत्र करने का कार्य लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। परंतु
हम इस बात पर बल दे रहे हैं और वार्ता मंच पर हमने तर्क दिया है और अभी भी दे रहे हैं कि यह अतिरिक्त, पूर्वानुमेय और सार्वजनिक धन होना चाहिए। यदि सरकारें प्रतिबद्धता व्यक्त करती हैं तो वर्ष 2013 से 2017 तक प्रति वर्ष 30 बिलियन अमरीकी डालर मुहैया कराना होगा।
इसके साथ ही वर्ष 2018 के आगे प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डालर की जरूरत पड़ेगी।वस्तुत: वार्ताओं में हमने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र अध्ययनों से इस बात का पता चला है कि हमें प्रति वर्ष कम से कम 1.9 ट्रिलियन अमरीकी डालर की आवश्यकता होगी। विकासशील देशों के
लिए यह राशि सतत विकास से संबंधित कार्रवाइयों को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी होगी। इसलिए विकसित देशों को अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत विदेशी विकास सहायता (ओडीए) के रूप में अपने सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 0.7 प्रतिशत देने संबंधी प्रतिबद्धता को गंभीरता से लेना चाहिए।
उन्होंने इससे पूर्व भी एक प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। हम चाहते हैं कि उस प्रतिबद्धता का भी अनुपालन किया जाए।
प्रश्न :...(अश्रव्य)...
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : 1.7 से 1.8...(अश्रव्य)...
प्रश्न: महोदया, जहां तक कार्यान्वयन पहलू का संबंध है, वित्तीय मुद्दों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका होने की संभावना है क्योंकि आपने स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिया है कि किन बातों की जरूरत है और पूर्व विकसित देशों
ने किस प्रकार की प्रतिबद्धताएं की हैं। यूरो जोन संकट को देखते हुए हम सबको इस बात की जानकारी है कि विकसित देश विभिन्न मोर्चों पर पीछे हटने के प्रयास कर रहे हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जी-77 आगे बढ़ने के लिए कितना तैयार है? जब भी हम इस प्रकार की चर्चाएं
देखते हैं- हमने डरबन में और कानकुन में देखा- तो अंतिम समय में अनेक बातों को छोड़ दिया जाता है और कई बातों से समझौता भी कर लिया जाता है।भारत के नजरिए से अथवा जी-77 के नजरिए से यदि इन पहलुओं के संबंध में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न होता है तो हमने कहा है
कि हम ब्राजील के साथ खड़े रहेंगे क्योंकि यह एक मैत्रीपूर्ण देश है। इस मामले में भारत ब्राजील के साथ किस सीमा तक खड़ा रहेगा क्योंकि हमने यह भी सुना है कि वित्तीय पहलुओं के संदर्भ में ब्राजील अपने नजरिए से पीछे भी हट सकता है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : हम ब्राजील के दृष्टिकोण पर टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि ब्राजील ही हमारा मेजबान राष्ट्र है। रियो शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में हो सकता है कि उनके पास इस मुद्दे का समाधान करने
का कोई विशेष तरीका हो। जहां तक भारतीय दृष्टिकोण का संबंध है, यह बिल्कुल स्पष्ट है। इसी बात का उल्लेख मैंने पूर्व में भी किया था। प्रधानमंत्री जी भी यही चाहते हैं। मंत्रिमण्डल ने भी इसी का अनुमोदन किया है। हमारी कुछ सीमाएं हैं और यही हमारी वार्ताओं का
आधार होंगी। यही जी-77 बेसिक तथा ब्रिक्स के भीतर भी हमारी वार्ताओं का आधार होंगी। हमारी अपनी सीमाएं हैं।
प्रश्न : महोदया, क्या आप बता सकती हैं कि जी-20 में ब्राजील की क्या कार्यसूची अथवा क्या नजरिए होगा, खासकर इस संदर्भ में कि ब्रिक्स के अंतर्गत ब्राजील ने कहा था कि यदि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कोटे में संशोधन नहीं
किया जाता है तो वह कोष में अपने अंशदान पर पाबंदी लगा सकता है। क्या हम ब्राजील के नजरिए का समर्थन करेंगे? हमारा नजरिया क्या होगा?
सरकारी प्रवक्ता : मैं समझता हूं कि आप कुछ बाद में आए। मैंने आरंभ में कुछ घोषणाएं की थीं। मैंने बताया कि जी-20 में हमारे दोनों वार्ताकार फिलहाल लॉस काबोस में हैं और वे वार्ताओं में शामिल भी हैं। इसलिए इस समय हम ऐसा कुछ
भी नहीं कहना चाहते जिसका प्रभाव वार्ताओं पर पड़े। तथापि आपमें से जो लोग प्रधानमंत्री जी के साथ जा रहे हैं उन्हें 17 तारीख को वहां पहुंचने के साथ ही डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया के साथ बात करने का मौका मिलेगा। मुझे विश्वास है कि आप ये प्रश्न उनसे पूछेंगे और
वे इसका उत्तर भी देंगे।इसलिए जी-20 के लिए हमारे सभी वार्ताकार पहले से ही वहां पहुंच चुके हैं और वही आपके प्रश्नों का सर्वोत्तम तरीके से उत्तर दे सकते हैं। तब तक हमें इस बात को छोड़ देना चाहिए। यदि आप आ रहे हैं तो आपको वहां यह प्रश्न पूछने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न : महोदया, पृथ्वी शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूरो जोन संकट और भी जटिल होता जा रहा है। आपको नहीं लगता कि इस संकट और विकासशील देशों पर इसके प्रभावों के कारण हरित अर्थव्यवस्था और आपके द्वारा उल्लिखित
अन्य प्रतिबद्धताओं की समग्र प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है?
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री : जैसा कि मैंने अपनी आरंभिक टिप्पणी में स्पष्ट रूप से कहा था कार्बन वृद्धि और हरित अर्थव्यवस्था का मामला तो बाद में आता है। जहां तक विकासशील देशों का संबंध है, सबसे पहले हमें गरीबी से
जुड़े मुद्दे का समाधान करना है और इसका उन्मूलन करना है और यहीं से हमें अन्य बातों को आगे बढ़ाएंगे। हमने उन उपायों की सूची का भी उल्लेख किया जो हमने स्वैच्छिक रूप से हरित अर्थव्यवस्था के लिए उठाए हैं। जहां तक विकसित देशों का संबंध है, यूरो जोन संकट के
आलोक में हम उनकी बाध्यताओं को समझते हैं।परंतु यह तथ्य भी गौर करने योग्य है कि जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के संदर्भ में वे काफी आगे बढ़ चुके हैं और उन्होंने इस विषय पर 20 वर्ष पूर्व ही अपनी प्रतिबद्धताएं व्यक्त कर दी थीं जब पहले पृथ्वी शिखर सम्मेलन
का आयोजन किया गया था। मैं आप सबको स्मरण दिलाना चाहूंगा कि स्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि गरीबी सबसे बड़ा प्रदूषक है।
प्रश्न : मेरा प्रश्न जी-20 के बारे में है। आपने प्रधानमंत्री जी की निर्धारित बैठकों के बारे में बताया क्या प्रधानमंत्री और अमरीकी राष्ट्रपति तथा चीन के राजाध्यक्ष के बीच किसी बैठक का प्रस्ताव है?
सरकारी प्रवक्ता : जहां तक चीन का संबंध है, ब्रिक्स के नेताओं की बैठक तो हो ही रही है। राष्ट्रपति हू जिन ताओ इसमें उपस्थित ही रहेंगे और लॉस काबोस में इस बैठक में भाग लेंगे। फिलहाल संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति
के साथ किसी बैठक पर विचार नहीं किया जा रहा है।
मैं अंत में एक बात जोड़ना चाहूंगा। मैंने जिन बैठकों का उल्लेख किया वे लॉस काबोस में होंगी। हो सकता है कि रियो में द्विपक्षीय स्तर पर होने वाली प्रधानमंत्री जी की बैठकों की जानकारी भी मैं आपको दे पाऊं।निम्नलिखित के साथ बैठकों की संभावना है: नेपाल के प्रधानमंत्री
श्री बाबूराम भट्टाराई; श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री महिन्द्रा राजपक्षे, बेनिन गणराज्य के राष्ट्रपति श्री यायी बोनी, जो अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री जी ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति श्री लूला से भी मुलाकात करेंगे। हम दो बैठकों
पर भी कार्य कर रहे हैं। अगले कुछ दिनों के भीतर ही इसकी रूपरेखा तैयार कर लिए जाने की संभावना है। फिलहाल हम इन बैठकों का निर्धारण करने के प्रयास कर रहे हैं।
आज के लिए इतना ही है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
(संपन्न)
नई दिल्ली
15 जून, 2012