यात्रायें

Detail

वित्‍तीय बाजारों एवं विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था पर आयोजित जी-20 देशों के राज्‍याध्‍यक्षों अथवा शासनाध्‍यक्षों के शिखर सम्‍मेलन के अवसर पर प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह का संबोधन

नवम्बर 15, 2008

वाशिंगटन डीसी
15 नवंबर, 2008

अध्‍यक्ष महोदय,


हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जो विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था के लिए आपवादिक रूप से कठिनाई भरा है। वित्‍तीय संकट, जो एक वर्ष पूर्व संयुक्‍त राज्‍य अमरीका में वित्‍तीय प्रणाली के एक भाग तक ही सीमित प्रतीत हो रहा था, का विस्‍फोट एक प्रणालीबद्ध संकट के रूप में हुआ है जो औद्योगिक देशों के अंतर्संबंधित वित्‍तीय बाजारों के जरिए फैलता जा रहा है और साथ ही इसमें अन्‍य बाजारों पर भी अपना प्रभाव डाला है।

इसने सामान्‍य ऋण माध्‍यमों को अवरुद्ध कर दिया है और संपूर्ण विश्‍व के स्‍टाक बाजारों में विश्‍वव्‍यापी गिरावट की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वैश्‍विक अर्थव्‍यवस्‍था स्‍पष्‍ट रूप से प्रभावित हो रही है। आशा थी कि औद्योगिक देशों में वर्ष 2008 में कुछ मंदी आएगी। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष के दूसरे उत्‍तरार्ध में भी मंदी कायम रहेगी और इससे शीघ्र उबरने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। अनेक लोगों ने इसे महान मंदी के बाद से उत्‍पन्‍न सबसे गम्‍भीर संकट करार दिया है।

उदीयमान बाजारों वाले देश इस संकट के कारण नहीं थे, परन्‍तु ये ही इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित हाने वाले देशों में हैं। मंदी से विकासशील देशों के निर्यात प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ेगा और जोखिमों की अधिक आशंका के साथ ऋण का प्रवाह अवरुद्ध हो जाने से पूंजी का प्रवाह घटेगा और साथ ही विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेशों में कमी भी आएगी। इसका संयुक्‍त दुष्‍प्रभाव होगा विकासशील देशों में आर्थिक विकास में कमी आना।

भारत भी इस नकारात्‍मक प्रभाव का अनुभव कर रहा है। लगातार चार वर्षों तक लगभग 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर के उपरान्‍त ऐसी संभावना है कि वर्तमान वित्‍तीय वर्ष में हमारी विकास दर घटकर 7 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत तक रह जाएगी। अगले वर्ष आंशिक रूप से विकास की दर इस बात पर निर्भर करेगी कि यह वैश्‍विक मंदी कब तक जारी रहती है और वैश्‍विक पूंजी प्रवाह शीघ्रातिशीघ्र कब तक अपनी सामान्‍य स्‍थिति को प्राप्‍त कर लेता है। भारत का विकास मुख्‍यत: आंतरिक रूप से प्रेरित है और मुझे आशा है कि आगामी वर्षों में हम विकास की तीव्र गति कायम रख सकते हैं, परन्‍तु अनेक प्रगतिशील देशों पर इसका अधिक दुष्‍प्रभाव पड़ेगा।

यदि विकासशील देशों में विकास की गति मंद होती है, तो इससे लाखों लोग पुन: गरीबी की चपेट में आ जाएंगे और इससे पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा के स्‍तरों पर भी दुष्‍प्रभाव पड़ेगा। ये अस्‍थायी प्रभाव नहीं हैं अपितु ये पूरी पीढ़ी को ही प्रभावित करेंगे। यदि हमें मंदी की प्रक्रिया को रोकना है और सहस्‍त्राब्‍दि विकास लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करना है, तो हमें यह सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता पड़ेगी कि विकासशील देशों में वृद्धि की प्रक्रिया दुष्‍प्रभावित न हो।

अध्‍यक्ष महोदय,

चूंकि यह संकट विश्‍वव्‍यापी है इसलिए इसके समाधान के लिए समन्‍वित वैश्‍विक अनुक्रिया की आवश्‍यकता पड़ेगी और इसलिए इस शिखर सम्मेलन का आयोजन बिल्‍कुल उपयुक्‍त समय में किया जा रहा है। आवश्‍यकता है कि हम अपनी चर्चाओं में तात्‍कालिक प्राथमिकता, जिसके अंतर्गत यथासंभव शीघ्र इस संकट पर नियंत्रण पाना है, ताकि विकासशील देशों पर इसका कम से कम प्रतिकूल प्रभाव पड़े और मध्‍यम अवधि का उद्देश्‍य जिसमें वैश्‍विक वित्‍तीय ढाचों में सुधार लाना शामिल है जिससे कि भविष्‍य में ऐसे संकटों की पुनरावृत्‍ति रोकी जा सके। मैं इन दोनों बातों पर संक्षेप में अपने विचार व्‍यक्‍त करूंगा।

जहां तक तात्‍कालिक प्राथमिकता का संबंध है, मैं इस बात को स्‍वीकार करता हूँ कि वित्‍तीय प्रणाली में तरलता सुनिश्‍चित करने तथा बैंकों और अन्‍य महत्‍वपूर्ण संस्‍थाओं को पूंजी उपलब्‍ध कराने के लिए अनेक देशों द्वारा पहले ही कई महत्‍वपूर्ण उपाय किए गए हैं। कुछ देशों ने अनेक नये और यहां तक कि अपारम्‍परिक उपाय भी किए हैं जिनका उद्देश्‍य विश्‍वास बाहल करना है, ताकि वित्‍तीय प्रणाली पुन: क्रियाशील हो सके। इन उपायों के कुछ सकारात्‍मक प्रभाव सामने आए हैं, परन्‍तु संकट अभी भी समाप्‍त नहीं हुआ है। ऋण के माध्‍यम अभी भी अवरुद्ध हैं और वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था में अफरा-तफरी के संकेतों से इस बात का पता चलता है कि अभी भी अतिरिक्‍त उपायों की आवश्‍यकता है।

एक स्‍पष्‍ट मुद्दा इस बात पर विचार करना है कि क्‍या मंदी से संबंधित प्रवृत्‍तियों के उदय का मुकाबला करने के लिए किसी प्रकार के राजकोषीय प्रोत्‍साहन की आवश्‍यकता है? जो देश ऐसा कर सकते हैं उनके द्वारा एक समन्‍वित राजकोषीय प्रोत्‍साहन प्रदान करने से इस मंदी की गम्‍भीरता और अवधि में कुछ कमी लाने में सहायता मिलेगी। कतिपय परिस्‍थितियों में राजकोषीय प्रोत्‍साहनों का सहारा लेना जोखिमपूर्ण भी हो सकता है, परन्‍तु यदि हम वास्‍तव में महान मंदी के बाद सबसे गम्‍भीर मंदी की चपेट में हैं,तो यह जोखिम उठाया जा सकता है। अत: हम किसी प्रकार के समन्‍वित अंतर्राष्‍ट्रीय प्रोत्‍साहनों को संपूरित करने के लिए राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सभी प्रकार के संभावित उपाय करेंगे।

यह लगभग निश्‍चित है कि आगामी दो वर्षों में विकासशील देशों के लिए पूंजी के प्रवाह में कमी आएगी और इसका मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय को विशेष पहलकदमियों पर विचार करने की आवश्‍यकता है। अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्राकोष द्वारा नई तरलता सुविधा स्‍थापित करने की पहल करना एक स्‍वागत योग्‍य कदम है। तथापि, हमें निश्‍चित रूप से इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि क्‍या अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के पास उन कार्यों के वित्‍तपोषण के लिए पर्याप्‍त निधियां हैं जिसकी आवश्‍यकता इस वित्‍तीय संकट का प्रबंधन करने में पड़ेगी।

यदि वैश्‍विक मंदी और भी गम्‍भीर रूप लेती है, तो हमें अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के समक्ष अतिरिक्‍त मांग रखने की योजना बनानी पड़ेगी इससे इस बात का संकेत मिलता है कि हमें अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के संसाधनों में वृद्धि करने के लिए एक प्रक्रिया आरम्‍भ करनी होगी।

तरलता के छुद्र संवितरण के एक स्रोत के रूप में अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष का एक विकल्‍प हो सकता है लघु आवधिक स्‍वैप व्‍यवस्‍थाओं की स्‍थापना। यदि ऐसी व्‍यवस्‍थाएं अस्‍तित्‍व में आती हैं, तो इससे अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष पर पड़ने वाला बोझ कम होगा और इससे प्रणाली में विश्‍वास भी बहाल होगा। जो देश ऐसा करने की स्‍थिति में हैं, उन्‍हें ऐसी व्‍यवस्‍थाओं को विस्‍तारित करने पर विचार करना चाहिए।

विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में मंदी की स्‍थितियों के कारण विकासशील देशों में निजी निवेश में भी कमी आने की संभावना बनेगी जिससे मंदी की प्रवृत्‍तियां और भी बदतर हो जाएंगी। इस घटनाक्रम का मुकाबला करने हेतु उपाय करना आवश्‍यक है। निजी क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा अवसंरचना क्षेत्र में निवेश एक आदर्श आवर्ती-रोधी उपाय है। इससे आवर्ती-रोधी मांगों को बढ़ाने में तत्‍काल सहायता मिलेगी और तीव्र विकास के मार्ग पर वापस लौटने की परिस्‍थितियां उत्‍पन्‍न होंगी। आज अवसंरचना क्षेत्र में निवेश करना शायद आगामी वर्षों के लिए विदेशी प्रत्‍यक्ष निवेश सहित अन्‍य प्रकार के निजी निवेशों को पुनर्जीवित करने की दिशा में सर्वोत्‍तम संकेत होगा।

इसके लिए वित्‍तपोषण संबंधी इन समस्‍याओं का समाधान करने के लिए नये तौर-तरीकों की आवश्‍यकता पड़ेगी जो अवसंरचना में निवेश के मार्ग में अवरोध उत्‍पन्‍न कर सकते हैं। विश्‍व बैंक, क्षेत्रीय विकास बैंक और राष्‍ट्रीय सरकारों द्वारा अवसंरचना परियोजनाओं के लिए अतिरिक्‍त ऋण उपलब्‍ध कराने, अवसंरचना वित्‍तपोषण के लिए नये-नये उपरकणों को बढ़ावा देने औरचल रही अवसंरचना परियोजनाओं के लिए ऋण मुहैया कराने हेतु बैंकिंग संस्‍थानों को पूंजी और तरलता उपलब्‍ध कराने जैसे उपायों पर विचार करने की आवश्‍यकता हे।

विश्‍व बैंक/आईएफसी और क्षेत्रीय विकास बैंकों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में अवसंरचना विकास के समर्थन में प्रति वर्ष 50 बिलियन डालर की अतिरिक्‍त राशि उपलब्‍ध कराने का प्रयास करना चाहिए। वैश्‍विक पूंजी प्रवाह में सामान्‍य स्‍थिति बहाल हो जाने के उपरांत इस स्रोत को बंद कर दिया जा सकता है।

औद्योगिक देश विकासशील देशों में उपलब्‍ध निर्यात ऋण निधियों की सीमा में विस्‍तार करके व्‍यापार प्रवाह को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं। हमें इस बात की जानकारी है कि इस क्षेत्र में अस्‍थाई बाजार असफलता है और जोखिम की बढ़ी हुई आशंकाएं भी हैं जिसके कारण निजी निवेशों के प्रवाह में कमी आ रही है।

बाजार की असफलता से पार पाने के लिए हमें हस्‍तक्षेप करने की आवश्‍यकता है। यदि व्‍यापार में गिरावट आती है, तो यह वर्तमान संकट को और भी गंभीर बना देगा जिससे विकास और रोजगार पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। निर्यात ऋण को विस्‍तारित करने तथा रियायती शर्तों पर वित्‍तपोषण की प्रक्रिया आरम्‍भ करने के लिए संगठित सरकारी प्रयासों से विकासशील देशों में विकास की गति को बढ़ाने में सहायता मिलेगी, जो इन देशों में गरीबी उपशमन और रोजगार संबंधी उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है।

अध्‍यक्ष महोदय,

कठिनाई की इस घड़ी में विकासशील देशों की सहायता के लिए कतिपय उपाय करने की हमारी इच्‍छा, हमारे सामूहिक नेतृत्‍व के लिए परीक्षा की घड़ी होगी। अनेक देशों ने उत्‍तरोत्‍तर मुक्‍त और एकीकृत हो रहे विश्‍व की चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए आर्थिक उपायों को क्रियान्‍वित करने हेतु ठोस प्रयास किए हैं। अक्‍सर इसके लिए ऐसी नीतियों का क्रियान्‍वयन करने की आवश्‍यकता पड़ी है जिससे देश में डर और अनिश्‍चितता का माहौल बना है। हम इस प्रक्रिया में भी अक्षुण्‍ण रहे हैं और हमें इससे लाभ ही हुआ है।

लगभग सभी देशों के आर्थिक प्रदर्शन में सुधार आया है। इस प्रक्रिया में वैश्‍वीकरण के संदर्भ में दृष्‍टिकोणों में परिवर्तन आना आरम्‍भ हुआ है और संपूर्ण विश्‍व में लोग वैश्‍विक आर्थिक एकीकरण से प्राप्‍त होने वाले असीम फायदों की सराहना करने लगे हैं। यदि हम इस मंदी से विकासशील देशों की रक्षा करने में असफल रहते हैं और इससे इन देशों में मुक्‍त नीतियों के प्रति उत्‍तरोत्‍तर बढ़ते समर्थन में कमी आती है, तो यह विडम्‍बना की बात होगी क्‍योंकि इस मंदी को लाने में उनका कोई हाथ नहीं है।

हमें वैश्‍विक व्‍यापार प्रणाली को सुदृढ़ बनाने तथा ऐसी मंदी के दौरान उत्‍पन्‍न होने वाली संरक्षणवादी प्रवृत्‍तियों की पूर्व रोकथाम करने के लिए तत्‍काल उपाय करने की आवश्‍यकता है। चल रहे बहुपक्षीय व्‍यापार वार्ताओं की समाप्‍ति इस चरण में एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण विश्‍वासोत्‍पादक उपाय होगा। हम एक संतुलित और पारस्‍परिक रूप से लाभकारी परिणाम पर पहुंचने के लिए अन्‍य महत्‍वपूर्ण देशों के साथ रचनात्‍मक रूप से कार्य करने के लिए तैयार हैं।

अध्‍यक्ष महोदय,

हमारी तात्‍कालिक प्राथमिकता होनी चाहिए इस संकट का समाधान प्राप्‍त करना, जो अभी भी धीरे-धीरे उभर रहा है। हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि वैश्‍विक वित्‍तीय ढांचे में कौन से परिवर्तन लाए जाएं ताकि भविष्‍य में ऐसे संकटों की पुनरावृत्‍ति न हो। पहले ही विदेश मंत्रियों द्वारा इस क्षेत्र में काफी उपयोगी कार्य किया जा चुका है और अनेक क्षेत्रों में सर्वसम्‍मति भी बनी है। अत: मैं कुछ बिंदुओं के संबंध में ही अपनी टिप्‍पणियां सीमित रखूंगा।

मैं आम सर्वसम्‍मति के साथ सहमति व्‍यक्‍त करता हूँ कि इस संकट के पीछे अनेक कारण हैं और निश्‍चित रूप से इनका मुकाबला करने के लिए भावी वैश्‍विक आर्थिक ढांचे का निर्माण किया जाना चाहिए। इनमें शामिल हैं नियामक एवं पर्यवेक्षण तंत्रों की असफलता, अपर्याप्‍त विकास तथा प्रणालीबद्ध जोखिमों का प्रबंधन एवं वित्‍तीय संस्‍थाओं में अपर्याप्‍त पारदर्शिता।

हमारे द्वारा बनाई जाने वाली नई रूपरेखा में निश्‍चित से बहुपक्षीय निगरानी की एक विश्‍वसनीय प्रणाली को शामिल किया जाना चाहिए, जो ऐसे असंतुलनों के उदय का संकेत दे सके जिनका प्रणालीबद्ध प्रभाव हो सकता है और परामर्शों की एक ऐसी प्रक्रिया आरम्‍भ कर सके जिनसे नीति समन्‍वय के संदर्भ में परिणाम प्राप्‍त हो सकते हैं।

इस संबंध में मैं अपने प्रयासों के संबंध में व्‍यापक बहुपक्षीय दृष्‍टिकोणों के महत्‍व पर बल दूंगा। जी-7 जैसे निकाय अब वर्तमान की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त नहीं रह गए हैं। हमें यह सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता है कि आज हम जो भी नई रूपरेखा बनाते हैं, वह वास्‍तव में बहुपक्षीय हो और उनमें आर्थिक वास्‍तविकाताओं को परिलक्षित करने वाले देशों का पर्याप्‍त प्रतिनिधित्‍व हो।

अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष बृहत आर्थिक असंतुलनों और वित्‍तीय स्‍थिरता के साथ उनके संबंधों की बहुपक्षीय निगरानी का कार्य निष्‍पादित करने के लिए एक तार्किक निकाय है। तथापि यह प्रश्‍न करना प्रासंगिक होगा कि क्‍या इसकी प्रणाली और प्रक्रियाएं इस कार्य को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त हैं।

पिछले वर्षों के दौरान अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष बड़े देशों में नीति विश्‍लेषण और बृहद आर्थिक असंतुलनों तथा संबंधित नीतियों पर परामर्शों के संबंध में उतना महत्‍वपूर्ण नहीं रह गया है। यह कार्य अब अन्‍य मंचों द्वारा किया जा रहा है। हालांकि, यह प्रश्‍न उठाया जा सकता है कि क्‍या यह कार्य अच्‍छी तरीके से किया जा रहा है। मेरा मानना है कि हमें अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष की प्रक्रियाओं की व्‍यापक समीक्षा करने की आवश्‍यकता है जिसके फलस्‍वरूप शासन सुधार के संबंध में ऐसी अनुशंसाएं दी जा सकें जो इस कोष को बृहद आर्थिक नीति समन्‍वय की भूमिका निभाने में समर्थ बना सके।

दीर्घावधिक सुधार का एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है मुद्रा कोष के शासन स्‍तरों में प्रतिनिधित्‍व को पुनर्गठित करना जिससे कि यह वर्तमान और भावी आर्थिक वास्‍तविकताओं को परिलक्षित कर सके। कोटा प्रणाली में सुधार करना, मतदान की शक्‍तियों में परिवर्तन लाने का एक सामान्‍य तरीका है परन्‍तु यह विवादास्‍पद और संवृद्धि आधारित रहा है और अभी तक जो भी उपलब्‍धियां प्राप्‍त हुई हैं, वे आवश्‍यकता से कम ही हैं। अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के शासी मण्‍डल को स्‍पष्‍ट रूप से वैकल्‍पिक तौर-तरीकों का पता लगाने का भार सौंपा जाना चाहिए जिससे कि इसमें और वैध प्रतिनिधित्‍व प्राप्‍त किया जा सके।

आगे बढ़ें तो हमें वित्‍तीय प्रणाली में विद्यमान अनेक नियामक भिन्‍नताओं पर ध्‍यान देना होगा जिसके कारण लिवरेज के आधिक्‍य और इससे जुड़े जोखिम उत्‍पन्‍न हुए। स्‍पष्‍ट है कि हमें विशेष रूप में उन संस्‍थाओं में जोखिम प्रबंधन की बेहतर प्रणालियों और बेहतर विनियमों एवं पर्यवेक्षण की आवश्‍यकता है जिनकी पहुंच विश्‍वव्‍यापी है और जो अत्‍यंत जटिल वित्‍तीय मामलों से संबंधित हैं। वित्‍तीय संस्‍थाओं के प्रबंधकों, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और नियामकों को बेहतर कार्य करने होंगे। प्रणाली में प्रोत्‍साहनों की रूपरेखा कुछ इसी प्रकार से तैयार की जानी चाहिए।

हमें इस बात की भी जांच करने की आवश्‍यकता है कि क्‍या नियामकों के वर्तमान मंच पर्याप्‍त हैं और क्‍या वे नियामक एवं पर्यवेक्षण संबंधी उन सभी गतिविधियों को शामिल करते हैं जिनकी आवश्‍यकता है।

ये तकनीकी मुद्दे हैं जिनका समाधान उन विशेष मंचों द्वारा किया जाना चाहिए जो वित्‍तीय स्‍थिरता के संबंध में कार्य कर रहे हैं, विशेष रूप से बैंकिंग पर्यवेक्षण से संबद्ध वैसल समिति और वित्‍तीय स्‍थिरता मंच द्वारा। तथापि, आवश्‍यकता इस बात की है कि इन दोनों निकायों में वर्तमान की तुलना में व्‍यापक और बेहतर प्रतिनिधित्‍व होना चाहिए।

यदि ऐसा प्रतीत होता है कि जिन प्रधान मंचों पर इन मुद्दों के संबंध में चर्चा की जानी है वे पर्याप्‍त रूप से प्रातिनिधिक हैं, तो नियामक मुद्दों पर अंतर्राष्‍ट्रीय समन्‍वय आसानी से प्राप्‍त किया जा सकता है। इन मंचों पर प्रतिनिधित्‍व के वर्तमान स्‍तर को व्‍यापक बनाकर सफलता प्राप्‍त करना काफी असान होगा और मुझे आशा है कि यह शिखर सम्‍मेलन इस दिशा में स्‍पष्‍ट संकेत देगा। इससे वैश्‍विक वित्‍तीय प्रणाली के शासन में महत्‍वपूर्ण सुधार लाने की हमारी दीर्घावधिक मंशा के प्रति निश्‍चित रूप से विश्‍वास बहाल होगा।

इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि वर्तमान वित्‍तीय संकट से संपूर्ण विश्‍व में विकास की संभावनाओं पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ा है। हमें व्‍यापार और विकास वित्‍त के वर्तमान ढांचे की काफी जांच भी करने की आवश्‍यकता है ताकि हम इस बात पर विचार-विमर्श कर सकें कि हम अभी विद्यमान कठिन परिस्‍थितियों के आलोक में इन प्रवाहों में किस प्रकार बेहतर स्‍थिरता सुनिश्‍चित कर पाते हैं। मैंने जिस विशेषज्ञ समूह का संदर्भ दिया है, उसके द्वारा यहां इन मुद्दों से संबंधित किसी विशेष समूह द्वारा इसकी जांच की जा सकती है। इसके कार्यों के फलस्‍वरूप भविष्‍य में इन प्रवाहों को बनाए रखने और इसमें वृद्धि करने के लिए उपयुक्‍त अंतर्राष्‍ट्रीय तंत्रों एवं दस्‍तावेजों की डिजाइन तैयार की जा सकती है।

अध्‍यक्ष महोदय, इस शिखर सम्‍मेलन के आयोजन में अनेक क्षेत्रों में इस आशय की आशा का संचार हुआ है कि हम एक नई ब्रेटनवुड्स-2 का निर्माण करने के लिए कार्य करेंगे। निश्‍चित रूप से विश्‍व में इतना बदलाव हो चुका है कि अब हमें एक नये ढांचे की आवश्‍यकता है, परन्‍तु ऐसा बेहतर तैयारी और विचार-विमर्श के आधार पर ही किया जा सकता है। तथापि, हम इस बात का संकेत दे सकते हैं कि हम एक ऐसी प्रक्रिया आरम्‍भ करने के प्रति गम्‍भीर हैं, जो समय आने पर एक ऐसे ढांचे का निर्माण करेगी, जो विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था के समक्ष उत्‍पन्‍न चुनौतियों और कमजोरियों का समाधान करने के लिए सर्वथा उपयुक्‍त होगी और आर्थिक ढांचे में आए परिवर्तन को परिलक्षित भी करेगी।

निश्‍चित रूप से हमें विश्‍व को इस बात का स्‍पष्‍ट संकेत देना होगा कि हम वर्तमान संकट का समाधान करने के लिए इस प्रकार से विशिष्‍ट समन्‍वित कार्रवाई करने के लिए कटिबद्ध हैं जिससे विश्‍वास बहाल हो और जो विकासशील देशों की आवश्‍यकताओं के अनुकूल हों। हमें यह सुनिश्‍चित करने की आवश्‍यकता है कि आज हमने जिस प्रक्रिया का शुभारंभ किया है, वह हमारी भावी पीढ़ियों के हित कल्‍याण को संरक्षित और संविर्धित करे।



टिप्पणियाँ

टिप्पणी पोस्ट करें

  • नाम *
    ई - मेल *
  • आपकी टिप्पणी लिखें *
  • सत्यापन कोड * पुष्टि संख्या