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आधिकारिक प्रवक्ता द्वारा साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग का प्रतिलेख (16 जनवरी, 2020)

जनवरी 17, 2020

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : मित्रों, नमस्कार, मैंने रायसीना वार्ता पर थोड़ी पढ़ा है। यह पिछले तीन दिनों से चल रहा है और मैंने सोचा कि हमारे परिप्रेक्ष्य के संबंध में मुझे कुछ बताना चाहिए।

आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री की मौजूदगी में 14 जनवरी को इसका उच्च स्तरीय उद्घाटन हुआ था। इस अवास पर सात शासनध्यक्ष और राष्ट्र प्रमुख उपस्थित थे। तब से, अनेक विदेश मंत्रियों ने मंच साझा किया है, और विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण साझा किए हैं। इस बार 700 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागी हैं जो विभिन्न मतों के 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।
उच्च स्तरीय प्रतिभागियों में हमारे पास 11 विदेश मंत्री और तीन विदेश मंत्रियों के समकक्ष हैं। इनमें एससीओ, राष्ट्रमण्डल के महासचिव और यूरोपिय संघ के उच्च प्रतिनिधि भी है। बांग्लादेश के सूचना मंत्री, अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अमेरिका से उप एनएसए भी भाग ले रहे हैं। मंत्रिस्तरीय प्रतिभागियों ने कल शाम प्रधानमंत्री से मुलाकात की। विदेश मंत्री का इस पूरे सम्मेलन के दौरान बहुत व्यस्त कार्यक्रम चल रहा है। परसों शाम उन्होंने धन्यवाद प्रस्ताव दिया और कल प्रात: उन्होंने फिर से भारत की राह-विकास और प्रतियोगिता की सदी की तैयारी पर चर्चा की अध्यक्षता की।
अब तक विदेश मंत्री ने कम से नौ विदेश मंत्रियों, बांग्लादेश के सूचना मंत्री, एससीओ और राष्ट्रमंडल के महासचिवों के साथ द्विपक्षीय बैठकें की हैं। वे अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ-साथ अमेरिका के उप एनएसए से भी भेंट कर चुके हैं और उनकी सभाएं अलग-अलग प्रारूपों में आयोजित हुई हैं। वे कुछ अन्य प्रतिभागियों से भी भेंट करेंगे, कुछ जो कल देर से आए थे। वह आज बैठक कर रहे हैं और कुछ बैठकें कल भी जारी रहने वाली हैं।
हमने प्रधानमंत्री पर मंत्रियों द्वारा किए गए आह्वान सहित उनकी सभी बैठकों पर प्रेस विज्ञप्ति जारी की है और वे हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। तो यही मुझे रायसीना वार्ता पर बताना था और अब मैं प्रश्नों के उत्तर दूंगा।

प्रश्न : हम सभी जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्या हुआ, एक अनौपचारिक गोपनीय बैठक हुई और चीन वह देश था जिसने कश्मीर का मुद्दा उठाने का प्रयास किया था। इस पर विदेश मंत्रालय की आधिकारिक प्रतिक्रिया क्या है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : मैं इस विषय पर अन्य प्रश्न का उत्तर दूंगा।

प्रश्न : हमने बहुत ठोस वक्तव्य देखे हैं और जब भी उन्होंने कश्मीर का मुद्दा उठाया है तुर्की और मलेशिया जैसे देशों के मामले में भारत ने कुछ कार्रवाई की है। एक उदाहरण है जब संयुक्त राष्ट्र में ही इसे उठाया गया था। क्या हम इस बात पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं कि हमने संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर के मुद्दे को बार-बार उठाने के लिए चीन पर कड़ी प्रतिक्रिया क्यों नहीं की है?

प्रश्न : जिस तरीके से चीन ने फिर से कोशिश की है और उसको हालांकि, कामयाबी नहीं मिली, लेकिन इस पर विदेश मंत्रालय का प्रतिक्रिया क्या है।

प्रश्न : क्या हम यह जानते हैं कि गोपनीय बैठक में सभी देशों ने भारत की स्थिति का समर्थन किया है और कौन से देश हैं जिन्होंने समर्थन नहीं किया है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : आप देखिए, शायद हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक सदस्य के माध्यम से एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के मंच का दुरुपयोग करने का प्रयास किया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का भारी बहुमत से यह मत था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ऐसे मुद्दों के लिए सही मंच नहीं था और भारत और पाकिस्तान के बीच इस पर द्विपक्षीय रूप से चर्चा की जानी चाहिए। इसलिए अनौपचारिक गोपनीय बैठक बिना किसी परिणाम के संपन्न हो गई।
हमारे मत में यह एक बार फिर से प्रकाश डाला गया है कि पाकिस्तान के हताश उपायों को निराधार आरोपों को प्रेरित और एक खतरनाक परिदृश्य के रूप में प्रस्तुत किसी भी विश्वसनीयता का अभाव है। हमें पूरी आशा है कि यह संदेश पाकिस्तान को जोर-शोर से और स्पष्ट हो गया है कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई ऐसा मामला है जिस पर चर्चा किए जाने की आवश्यकता है तो उस पर द्विपक्षीय रूप से ही चर्चा की जानी चाहिए। पाकिस्तान के पास भविष्य में इस प्रकार के कृत्यों से परहेज करके बार-बार इस वैश्विक शर्मिंदगी से बचने का विकल्प है।
चीन के संबंध में पूछे गए प्रश्न पर मेरा सुझाव है कि इस प्रश्न का उत्तर चीन की ओर से भी दिया जाना चाहिए। हमारे विचार से चीन को इस वैश्विक सहमति पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए, उचित सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसी कार्रवाई करने से बचना चाहिए।
इस बारे में इस प्रश्न पर कि वास्तव में किसका समर्थन किया गया और कौन खिलाफ था, हमारी भावना यह है कि इस मंच का भारी समर्थन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के एक सदस्य के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना था। जैसाकि आप सबको संभवत: पता है एक संयुक्त राष्ट्र महासभा सदस्य के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा, फिर से, द्विपक्षीय मामलें में चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच का दुरुपयोग करने का प्रयास किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिकांश सदस्यों का मानना था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ऐसे मुद्दों के लिए सही मंच नहीं है और इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रूप से चर्चा होनी चाहिए, इसलिए जो अनौपचारिक और गोपनीय सत्र था उसका कोई परिणाम बाहर नहीं आया।
इससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान के बेबुनियाद आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है या सच्चाई का आभाव था। हमें पूरी आशा है कि पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से यह संदेश मिल गया है कि यदि भारत और पाकिस्तान का जो मुद्दा है, अगर वो चर्चा करने योग्य है तो यह केवल भारत और पाकिस्तान के बीच में ही हो सकता है और हमारी यह भी सलाह है कि पाकिस्तान को बार-बार की शर्मिंदगी से बचना चाहिए। उनको समझना चाहिए कि जो उनका झूठ है, जो वो एक नजरिया पेश करते है, उस नजरिए का वैश्विक समुदाय में कोई प्रशंसक नहीं है।
जहां तक चीन का प्रश्न है, मुझे लगता है कि यह प्रश्न उनसे भी पूछना चाहिए कि वह पाकिस्तान की ओर से बार-बार ऐसा क्यों कर रहा है और उसके साथ चीन को हमारा यह भी कहना है कि जो एक वैश्विक सहमति बनी है, जो भारी बहुमत में प्रतिबिंबित हुई है, की इस मामले को संयुक्त राष्ट्र महासभा में चर्चा नहीं करनी चाहिए। उनको इसके ऊपर ध्यान देना चाहिए और शायद इससे कुछ सीख भी लेनी चाहिए। और हमारा यह मानना है कि शायद भविष्य में उनको ऐसी कार्रवाई करने से बचना चाहिए।

प्रश्न : अगस्त के बाद से जब चीन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस मुद्दे को पहली बार उठाया तो दो बहुत वरिष्ठ चीनी गणमान्य व्यक्तियों, राष्ट्रपति और वांग यी ने स्थिति का जायजा लेने के लिए दिसंबर में दौरा किया। इन मुद्दों को उस स्तर पर क्यों नहीं उठाया गया है, ताकि यह समझा जा सके कि चीन का मुद्दा क्या है जो वह संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा लगातार उठाता है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : नहीं, मुझे लगता है कि आप मान सकते हैं कि इन मुद्दों को नहीं उठाया गया है। मुझे लगता है कि अतीत में मैंने इस मंच से साझा किया है कि सभी मुद्दे जो हमारे हित के हैं, उनका ऐसी सभी उच्च स्तरीय बैठकों में चर्चा और उल्लेख किया जाता है।

प्रश्न : चूंकि आपने संकेत दिया है कि हो सकता है कि इस मुद्दे को उठाया गया हो कि चीन की प्रतिक्रिया क्या थी?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : मैंने आपको केवल इतना बताया था कि हम अपने नजरिए को साझा करते हैं। यह समय चीन के लिए इस वैश्विक आम सहमति पर चिंतन करने, इससे कुछ सबक लेने और भविष्य में इस प्रकार की कार्रवाई करने से बचने और परहेज करने का है।

प्रश्न : अगर मुझे महाबलीपुरम शिखर सम्मेलन के बाद सही याद है, तो उस संवाददाता सम्मेलन में विदेश सचिव ने कहा था कि अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया गया था। तो क्या आप कह रहे हैं कि यह उस विशेष बैठक के दौरान उठाया गया था?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार
: नहीं, विदेश सचिव ने जो कहा, मैं उस पर कायम हूं। जब विदेश सचिव ने उल्लेख किया कि कश्मीर मुद्दा नहीं उठाया गया था, तो आप उस बैठक की पृष्ठभूमि को समझते हैं और मुझे लगता है कि मीडिया के प्रश्न थे कि क्या कश्मीर की घटनाएं, चर्चा का विषय थी और विदेश सचिव ने स्पष्ट किया कि इस संदर्भ में दोनों पक्षों के बीच इस पर चर्चा नहीं हुई ।

प्रश्न : राष्ट्रपति ट्रम्प के भारत दौरे को लेकर तमाम तरह की खबरें चल रही हैं विशेष रूप से कल भी खबर आई कि वे ताज महल देखने आगरा जा सकते है, उसके लिए सुरक्षा संबंधी चिंताएं को लेकर तमाम बातें हो रही है। क्या कुछ स्पष्ट है भारत की तरफ से कि यह यात्रा कब होगी और उसको लेकर क्या तैयारियां चल रही है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए इस यात्रा को लेकर आज से नहीं बल्कि कई महीनों से अटकलें चल रही है, अभी आ रहे हैं, बाद में आएगें। आपको पता है कि दोनों देशों के बीच में जो उच्च स्तर, शीर्ष स्तर, शिखर स्तर के आदान-प्रदान है वह हमारी सामरिक साझेदारी का एक अहम हिस्सा है।
और उसी के संदर्भ में जब प्रधानमंत्री राष्ट्रपति ट्रम्प से मिले थे तो उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प को भारत आने का निमंत्रण दिया था और इसके अलावा जब कभी सरकारी स्तर पर वार्ता या बाकी बातें होती है, ये उच्च स्तरीय आदान-प्रदान होता है जिस पर चर्चा की जाती है कि यह कब हो सकता है। मैं इतना बता सकता हूं कि दोनों देश जो राजनयिक चैनल के माध्यम से लगातार इस पर संपर्क बनाए हुए है।
कौन सा दिन होगा, कहा जाएगें, कौन से महीने होगा, मुझे लगता है उसमें अभी वक्त है। आपको पता है कि ऐसी जब ही कोई उच्चस्तरीय यात्रा होती है उसकी घोषणा हमारे एक उचित प्रक्रिया के अंतर्गत की जाती है। जैसे ही हमारे समक्ष कोई पक्की जानकारी होगी हम आप से अवश्य सांझा करेगें।

प्रश्न : भारत-प्रशांत शब्द पर रूसी विदेश मंत्री की आपत्तियों पर कोई प्रतिक्रिया, मेरा तात्पर्य है कि हम इसे कैसे देखते हैं?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार :
मुझे लगता है कि भारत-प्रशांत के बारे में हमारा नजरिया कोई ऐसी बात नहीं है जो अस्पष्ट हो। यह बात स्वयं प्रधानमंत्री ने शांगरी-ला वार्ता के दौरान व्यक्त की है, मैं जून 2018 में सोचता हूं और तब से विदेश मंत्री ने भारत-प्रशांत के उस दृष्टिकोण का विस्तार किया है। हम बहुत स्पष्ट हैं कि यह स्वतंत्र है, खुला है, यह आसियान केंद्रीयता के साथ समावेशी है।

प्रश्न : रायसीना बातचीत में आज हम सब ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का बयान भी सुना था कि जब वो कह रहे थें कि पाकिस्तान के विरूद्ध एफएटीएफ के अंतर्गत अगर काली सूची में डालने की कार्रवाई अगर सफल हुई या वह प्रभावशाली नहीं रही तो हम उसके आगे सख्त कार्रवाई करेगें। उसमें वो यह भी कहते है कि अमेरिका की तरह से प्रहार करना चाहिए। आप यदि इसे थोड़ा स्पष्ट करें तो?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार
: मैं अपना परिप्रेक्ष्य दे सकता हूं कि एफएटीएफ पर हमारा क्या दृष्टिकोण है और ये जो सारे सदस्य है, एफएटीएफ द्वारा पाकिस्तान से कहा जाता है कि इतने कार्रवाई बिन्दु है, आप उसका उत्तर दो। ये एफएटीएफ और उनके सदस्य के ऊपर है कि जो उत्तर पाकिस्तान से मिलता है उनको, उसको बारिकी से समझाएं, उसकी तहकीकात करें। देखें कि पाकिस्तान इन कार्रवाई बिन्दु में कितनों पर खरा उतरा है और उसके बाद जो निर्णय लेना होता है वो एफएटीएफ लेगा। मैं उसमें उनकी प्रक्रिया के ऊपर या उनके निर्णय के ऊपर में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।

प्रश्न : ऐसी खबरें हैं कि अक्तूबर में भारत में एससीओ सरकार के प्रमुखों की बैठक होगी, इसलिए क्या भारत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को उस समय यात्रा करने का निमंत्रण देगा और दूसरों द्वारा उठाए गए पहले के प्रश्न पर भी त्वरित कार्रवाई करेगा। क्या हमने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर के इस मुद्दे को उठाने पर चीन के साथ औपचारिक विरोध दायर किया है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार :
दूसरा भाग का उत्तर देना मेरे लिए बहुत आसान है, मैंने अभी बात की है।
प्रश्न जारी : आपने कहा कि आपने इस मुद्दें को चीनी पक्ष के साथ उठाया है।

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : मैंने कहा है कि मैंने एक वक्तव्य पढ़ा है। पहले यह एक सार्वजनिक ज्ञान है कि भारत इस वर्ष के अंत में एससीओ शासनध्यक्षों की बैठक की मेजबानी करेगा। यह बैठक प्रधानमंत्री स्तर पर प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है और इसमें एससीओ के सभी आठ सदस्यों के साथ-साथ चार पर्यवेक्षक राज्यों और अन्य स्थापित अभ्यास और प्रक्रिया के अनुसार एससीओ के बहुपक्षीय आर्थिक और व्यापार सहयोग के कार्यक्रम पर चर्चा की जाती है। बैठक में भाग लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संवाद सहयोगियों को आमंत्रित किया जाएगा।

प्रश्न : एक पुस्तक है जो इस हफ्ते की शुरुआत में सामने आई है, इसे बहुत स्थिर जीनियस कहा जाता है, यह राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में है। अब इसमें सुनाई गई या याद की गई घटना में से एक राष्ट्रपति ट्रम्प प्रधानमंत्री के साथ अपनी एक बैठक में कह रहे हैं कि ऐसा नहीं है कि आपको अपनी सीमा पर चीन दिखाई दे। अब मैं बस सोच रहा हूं कि अगर ऐसा कुछ है जो वास्तव में हुआ है या यह है, तुम्हें पता है, लेखक की कल्पना।आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : सच कहूं तो मेरे लिए टिप्पणी करना बहुत कठिन है। मुझे नहीं लगता कि मैं इस पुस्तक में क्या कहा गया है, उस पर पुष्टि अथवा नकारने के लिए मैं सही व्यक्ति हूं।

प्रश्न : एससीओ के सबसे अच्छा अभ्यास के बारे में आपने बताया, मैं यह जानना चाहता हूं कि बतौर प्रधानमंत्री इमरान खान को क्या एससीओ के शिखर सम्मेलन में भारत आने के लिए भारत सरकार निमंत्रण भेजेंगी, और आप क्या आशा कर रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा जो स्थितियां है उसमें इमरान खान भारत आएगें?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए, मैं यह बता सकता हूं कि हम क्या करेगें और मैंने अभी बताया है कि यह एक स्थापित प्रक्रिया है कि जब भी एससीओ परिषद् की सरकार के प्रमुखों की बैठक होती है तो एससीओ के जो 8 सदस्य देश है उनको बुलाया जाता है, उनके जो 4 निरीक्षण देश है उनको बुलाया जाता है और जितने अंतर्राष्ट्रीय संगठन है उनको बुलाया जाता है। जैसा मैंने कहा कि जितने भी ये सारे है, हम सबको बुलाएगें। अब उसके बाद क्या होगा इस समय मेरे लिए बताना मुश्किल है।

प्रश्न : ईरान के विदेश मंत्री के साथ विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की आज मुलाकात हुई और ये तय किया गया कि भारत और ईरान अपने राजनयिक संबंध की 70वीं मनाएंगें, इसका कार्यक्रम क्या है और दूसरी बात यह है कि व्यापार को लेकर जो समस्या आ रही थी, उसमें आपके बयान में एक आश्वासन भी है कि भारत और ईरान अपना व्यापार बढ़ाएगें, उसे मजबूत करेगें, तो क्या कुछ ठोस कदम तय किए गए है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : 70वीं वर्षगाठ मनाने के लिए भारत और ईरान के बीच में जो गतिविधियों की सूची है या जो होंगी उस पर अभी चर्चा चल रही है और मुझे लगता है बहुत जल्द ही इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। जैसाकि ऐसे समारोह में सामान्य होता है काफी घटना यहां होगी, बहुत सारी घटनाएं ईरान में होंगी, उस पर चर्चा चल रही है, जैसे ही हमारे पास कोई अन्य जानकारी होगी हम आपके साथ सांझा करेंगें। आपका दूसरा प्रश्न क्या था?

प्रश्न जारी : भारत-ईरान व्यापार को लेकर कुछ ठोस कदम क्या तय हुए है क्योंकि अमेरिका ने अतिरिक्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए है।

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए जब 19वी संयुक्त आयोग की बैठक हुई थी और उसमें इस बारे में काफी चर्चा हुई थी और इस बारे में यह भी चर्चा हुई थी कि दोनों देशों के जो व्यापारिक संबंध है उसको कैसे बढ़ावा दिया जाए और आप अगर उस बैठक के विवरण देखें तो उसमें उनका काफी जिक्र है। दोनों देश अपने व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए जो भी हो सकेंगे उन कदमों को उठाएगें।

प्रश्न : पाकिस्तान को लेकर मैं प्रश्न नहीं पूछूंगा क्योंकि आपने स्वयं ही बोल दिया कि पाकिस्तान को तिमाही शर्मिंगी से बचना चाहिए। मेरा प्रश्न चीन को लेकर है, अचानक ऐसा क्या हुआ कि चीन की दूरसंचार कंपनियां जैसेकि हुआवई और जेटी, खासकर हुआवई, उसको 5जी परीक्षण में इज़ाजत दे दी गई है और उसने परीक्षण के लिए एयरटेल, वोडाफोन के साथ में गठबंधन कर लिया है। तो अचानक से वैश्विक परिप्रेक्ष्य में क्या बदलाव आया जिसके कारण सरकार ने इस प्रकार की इज़ाजत दी है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए ऐसा है कि जो 5जी का मामला था और शुरू से मैं कहता आया हूं कि यह विदेश मंत्रालय के अधीन नहीं आता है, यह दूरसंचार मंत्रालय का मामला है और उसने इस पर निर्णय लिया है, यह एक तकनीकी मामला था, हमारे माननीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री ने वक्तव्य दिया है, उन्होंने इस पर बयान भी दिया है और मुझे नही लगता कि इसके अलावा विदेश मंत्रालय की तरफ से मेरे पास कुछ कहने को है।

प्रश्न : क्या तेल या ऊर्जा सुरक्षा के लिए हम चीन के साथ कोई द्विपक्षीय विचाराधीन है क्या इस प्रकार की कोई बातचीत चल रही है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए, अगर मैं विगत कुछ बैठकों को स्मरण करूं तो मेरे जहन में ऐसा कुछ नहीं आता जिसमें इस विशिष्ट विषय पर कुछ चर्चा चल रही है, पर मुझे लगता है ये जो द्विपक्षीय ऊर्जा सुरक्षा या जो बातचीत होती है यह पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन होती है, उनके काफी द्विपक्षीय तंत्र है और उनकी लगातार बातचीत चलती रहती है, उनके पास इस बारे में ज्यादा जानकारी होगी।

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार :
सच कहूं तो, विदेश मंत्रालय बीच में नहीं हो सकता है क्योंकि मेरा मतलब है कि अगर यह एक व्यापार से संबंधित मामला है, अगर वे वास्तव में बाहर आया है तो वास्तव में यह कि सीधे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय कर सकता है। फिर, यह कुछ ऐसा है जो व्यापार नीति से संबंधित है, इसलिए मुझे लगता है कि आपको उनसे इस प्रश्न का समाधान करना चाहिए।

प्रश्न : वहां भी कुछ रिपोर्टें है कि वहां इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और सामान पर कुछ आयात प्रतिबंध हैं, तो क्या आप टिप्पणी कर सकते हैं?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार
: नहीं, मैं नहीं कर सकता, क्योंकि किसी भी वस्तु से संबंधित आयात दो कारकों द्वारा शासित होते हैं।

पहले व्यापार नीति हो सकती है और यदि व्यापार नीति में कोई परिवर्तन होता है जो कुछ वस्तुओं के आयात पर प्रभाव डाल सकता है, तो इन क्षेत्रों को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा संबोधित करना होगा, लेकिन जैसाकि मैंने पिछली बार उल्लेख किया था कि अन्य कारण भी हो सकते हैं, मेरा तात्पर्य है कि यदि यह व्यापार नीति नहीं है तो वाणिज्यिक मत हो सकते हैं।
यदि यह एक वाणिज्यिक मत है, यदि किसी निश्चित वस्तु को आयात करने का विकल्प आयातक पर छोड़ दिया जाता है तो यह उसका निर्णय है, वह कई कारकों में आकलन कर सकता है। जैसाकि मैंने अतीत में उल्लेख किया है कि संबंधों की स्थिति, हां, जब यह एक निजी आयातक द्वारा एक वाणिज्यिक निर्णय की बात आती है तो यह एक निर्णय को प्रभावित करने में एक कारक बन जाता है।

प्रश्न : आपने कहा कि यह नहीं मान लेना चाहिए कि चीन के साथ कश्मीर का प्रश्न नहीं उठाया गया था या वे संयुक्त राष्ट्र महासभा के पास गए थे, एक अन्य प्रश्न पर आपने स्पष्ट किया कि चूंकि विदेश सचिव ने कहा है कि कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाया गया था, ऐसा नहीं था। तो भारत ने चीन के साथ इस मुद्दे को कैसे हरी झंडी दिखाई है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार :
देखिए, आपको यह समझना होगा कि महाबलीपुरम में अनौपचारिक शिखर सम्मेलन एक निश्चित पृष्ठभूमि के इतर हो रहा था और मुझे लगता है कि वहां संदर्भ बहुत अलग था। और यह था कि क्या कोई पक्ष भारत की ओर से जम्मू-कश्मीर की स्थिति के मुद्दे को हरी झंडी दिखाना चाहता था या नहीं और मैंने यही कहा था कि इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई है। लेकिन आप जानते हैं, मेरा तात्पर्य विश्व में है, विभिन्न स्तरों पर दोनों पक्षों के बीच ये मुद्दे उठाए गए हैं, ये सभी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। वे हमें चिंतित करते हैं और हमारे लिए जो कुछ भी हित का है, उसे विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न समयों पर उठाया गया है।

प्रश्न : रक्षा सेनाध्यक्ष जनरल रावत ने रायसीना वार्ता में कहा है कि भारत सरकार को तालिबान शांति वार्ता में अमेरिका का समर्थन करना चाहिए। इस पर भारत सरकार की आधिकारिक स्थिति क्या है?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : देखिए, रायसीना वार्ता 2020, आप जानते हैं कि यह एक ऐसा मंच है जहां आप आते हैं और आपके विचारों का मुक्त आदान-प्रदान करते है। आपके पास ईरान के विदेश मंत्री, रूसी विदेश मंत्री थे, कई लोग आए और बोलें। यह एक खुला मंच है, यह आदेशात्मक नहीं है, आप एक चर्चा के आधार पर कार्रवाई की एक रूपरेखा पर निर्णय नहीं करते।
अफगानिस्तान के भीतर शांति प्रक्रिया पर हमारे विचार मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी तरह से पता है।

प्रश्न : क्या आप हमें गणतंत्र दिवस के लिए ब्राजील के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का कार्यक्रम बता सकते हैं?

आधिकारिक प्रवक्‍ता, श्री रवीश कुमार : हम इसकी आधिकारिक घोषणा करेंगे। इस समय हमने अभी घोषणा की है कि वे मुख्य अतिथि हैं लेकिन हम अभी भी कार्यक्रम बना रहे हैं। आशा है कि कुछ समय और लगेगा, मुझे लगता है कि अगले कुछ दिनों में हम कार्यक्रम साझा करेंगे।

बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सभी का शामिल होने के लिए धन्यवाद।

(समापन)
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