प्रश्न :भारत के राष्ट्रपति के रूप में इस साल के नोबल शांति पुरस्कार पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
उत्तर :हमारे दो पड़ोसी देशों– भारत और पाकिस्तान से दो शानदार
व्यक्तियों का चयन करने संबंधी नार्वे की शांति समिति के निर्णय के लिए मैं उनकी दिल से प्रशंसा करता हूँ। उनमें से एक छोटी लड़की है परंतु इसके बावजूद उसकी बहादुरी, साहस एवं दृढ़ निश्चय उसके चरित्र का बयान करता है। कैलाश सत्यार्थी भारत में एक सुप्रसिद्ध सामाजिक
कार्यकर्ता हैं। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया है। नोबेल शांति समिति का उनको नोबल पुरस्कार देने का निर्णय स्वागत योग्य है। मैंने स्वयं उनको बधाई दी है।
प्रश्न :कृपया भारत– नार्वे द्विपक्षीय संबंधों पर अपनी टिप्पणी व्यक्त करें।
उत्तर :सबसे पहले, अपने देश का दौरा करने के लिए मुझे आमंत्रित करने के लिए मैं नार्वे के नरेश का दिल से आभार व्यक्त
करता हूँ तथा उनकी प्रशंसा करता हूँ। यह भारत के किसी राष्ट्रपति / राष्ट्राध्यक्ष की नार्वे की पहली यात्रा है। हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं तथा यह बहुआयामी है। हमारे बीच सारवान व्यापार संबंध हैं– दस साल पहले
व्यापार बहुत मामूली था। यह लगभग 150 मिलियन अमरीकी डालर था– आज यह 1 बिलियन अमरीकी डालर के आसपास है। नार्वे ने भारत में लगभग 4 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश किया है। भारत की अनेक बड़ी कंपनियां नार्वे में मौजूद
हैं। 1.6 मिलियन अमरीकी डालर का संचयी निवेश सारवान रूप से बहुत अधिक नहीं है परंतु यह हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में मौजूद है।
मेरी यात्रा का प्रयोजन इन संबंधों को एक नई गति देना है। संभवत: आपने नोटिस किया हो कि मेरे शिष्टमंडल में न केवल संसद सदस्य एवं मंत्री शामिल हैं, अपितु एक बड़ा घटक भारत के युवा, दूसरी पीढ़ी के उद्योगपतियों का भी है जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि
से प्रवीण हैं, विभिन्न आधुनिक उद्योगों के विशेषज्ञ हैं जो मुख्य रूप से ज्ञान पर आधारित हैं। क्योंकि नार्वे की तरह ही हमारा भी यह विश्वास है कि प्रौद्योगिकी, अनुसंधान, विकास और शिक्षा का समग्र स्तर अब काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। ज्ञान आधारित
समाज अब कोई सपना नहीं रह गया है बल्कि सच्चाई बन गया है। मेरा यह विश्वास है कि हमारे कार्यबल, विशेष रूप से तकनीकी कार्मिक, इंजीनियर, वैज्ञानिक तथा प्रबंधन कार्मिक काफी सक्षम हैं तथा नार्वे में विभिन्न क्षेत्रों में जहां कहीं भी वे तैनात हैं वहां वे बहुमूल्य
सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। मेरा कारोबारी एवं शैक्षिक शिष्टमंडल अपने समकक्षों के साथ विचार-विमर्श करेगा। हम एक वृहद सहयोग रूपरेखा निर्मित करना चाहेंगे जिसके अंदर दोनों देशों को अनुसंधान, विकास तथा शिक्षा, विशेष रूप से उच्च शिक्षा में परस्पर लाभ मिल सके। इसलिए,
मेरी यात्रा का प्रयोजन यह सुनिश्चित करना है कि हमारे बीच जो अच्छे संबंध मौजूद हैं– व्यापार, निवेश एवं वाणिज्यिक संबंध– उनमें शिक्षा, विशेष रूप से अनुसंधान,
विकास एवं नवाचार में सहयोग का एक नया आयाम जुड़ सके, जो मेरी राय में हमारे दोनों देशों के लिए परस्पर लाभप्रद होगा।
प्रश्न :अनेक तरह से हम एक बहु-ध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ रहे हैं जहां कोई एक बड़ी महाशक्ति न होकर अनेक महाशक्तियां होंगी। इस बहु-ध्रुवीय विश्व में भारत किस तरह फिट
है?
उत्तर :हमने हमेशा बहु-ध्रुवीय विश्व में विश्वास किया है। हम द्वि-ध्रुवीय या एक ध्रुवीय विश्व में विश्वास
नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ देशों के पास अपार सैन्य ताकत है। कुछ देशों के पास अपार वित्तीय ताकत है। इसी तरह, कुछ देशों के पास अपार बौद्धिक ताकत है। इसलिए आप ध्रुव को कहां फिक्स करते हैं? विश्व द्विध्रुवीय
एवं एक ध्रुवीय नहीं हो सकता है– यह बहु-ध्रुवीय है। दूसरी बात, हम बहुपक्षवाद में विश्वास रखते हैं– केवल हमारी सामाजिक या प्रशासनिक संरचनाओं में ही बहु-पक्षवाद
न होकर समूचे विश्व में बहु-पक्षवाद। आज विश्व सिमट रहा है तथा सही मायने में एक वैश्विक गांव के रूप में उभर रहा है। आज हम किसी देश को उसकी भौगोलिक सीमाओं के अंदर सीमित देश के रूप में ही नहीं देखते हैं। हम बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया के एक भाग में घटने
वाले घटनाएं विश्व के शेष बड़े भाग को प्रभावित कर सकती हैं तथा भारी संख्या में मानव जाति उससे प्रभावित हो सकती है। इसलिए, मेरा यह विश्वास है कि हमें विभिन्न देशों, विचारों एवं सिद्धांतों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए काम करना चाहिए। कोई संघर्ष नहीं
होना चाहिए और यदि कोई संघर्ष हो, तो उसका समाधान शांतिपूर्ण वार्ता, विचार– विमर्श तथा चर्चा के माध्यम से होना चाहिए, न कि बल के प्रयोग से या बल का प्रयोग करने की धमकी से। यह हमारा दर्शन है जो हमारे प्रमुख सभ्यतागत
मूल्यों पर आधारित है।
प्रश्न :इस भूमंडलीय विश्व में आप किसे भारत की प्रमुख ताकत के रूप में देखते हैं?
उत्तर :भारत की सबसे बड़ी ताकत इसकी सफल बहुदलीय संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली है। अभी हाल ही में हमारे यहां आम चुनाव
हुए हैं। हमारे मतदाताओं की कुल संख्या 800 मिलियन से अधिक थी। उनमें से 60 प्रतिशत से अधिक ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। विश्व में इस सबसे बड़े बहुदलीय क्रियाशील लोकतंत्र ने 1947 में हमारी आजादी के बाद से सफलता के साथ काम किया है। अनेक संशयवादी ऐसे थे जिनका
यह मानना था कि प्रौढ़ मताधिकार के आधार पर संसदीय लोकतंत्र के साथ हमारा प्रयोग असफल हो जाएगा, जहां भारी संख्या में लोक निरक्षर, पिछड़े, गरीब, विभिन्न क्षेत्रों, भाषाओं एवं धर्मों में बंटे हुए हैं। उन्हें आश्चर्य हुआ कि किस तरह यह परिष्कृत राजनीतिक संस्था
सफल हो सकती है। परंतु आगे चलकर ये सभी संशयवादी हमारे सिस्टम के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए तथा अब हर कोई यह मानता है कि भारत ने लोकतांत्रिक कार्यकरण के इस परिष्कृत सिस्टम को सफलता के साथ लागू किया है।
दूसरी ताकत यह है कि भारत में न केवल 1.2 बिलियन लोगों की विशाल आबादी है अपितु साथ हम एक पुरानी सभ्यता और एक युवा राष्ट्र हैं। हमारी तीसरी ताकत हमारे युवा हैं जो तकनीकी दृष्टि से बहुत सक्षम हैं तथा उनकी संख्या भी काफी है। वे हमें साफ्ट पावर
प्रदान कर रहे हैं।
अंत में, सभी परिपक्व लोकतंत्रों की तरह हम कानून के शासन, समाज में बहुलवाद, सहिष्णुता, दूसरे के विचारों की स्वीकृति तथा संविधान की रूपरेखा के अंदर काम करने में विश्वास रखते हैं जो हर नागरिक के लिए समानता, भाई-चारा एवं आजादी का प्रावधान
करता है। हमारी संवैधानिक प्रतिबद्धता, संस्थानिक रूपरेखा, युवा आबादी, पुरानी सभ्यता एवं इसके मूल्यों की विरासत तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाने तथा वैज्ञानिक सोच विकसित करने की क्षमता– मेरी समझ से ये भारत
की प्रमुख ताकते हैं।
प्रश्न :भारत और चीन एशिया की दो बड़ी महाशक्तियां हैं, पूर्व विदेश मंत्री के रूप में आपने बहुत ध्यान से विदेश मामलों को फालो किया है। इस समय चीन के साथ नार्वे का संबंध
बहुत अच्छा नहीं है। क्या यह नार्वे के लिए भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने, भारत में अवसरों की तलाश करने के लिए सही समय है?
उत्तर :भारत की विदेश नीति किसी तीसरे देश के प्रिज्म के माध्यम से किसी देश के साथ संबंधों को नहीं देखती है।
हम देशों के साथ स्वतंत्र रूप से संबंधों का निर्माण करते हैं तथा यह दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों पर आधारित नहीं होता है।
प्रश्न :परंतु राष्ट्रपति महोदय, क्या यह भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए नार्वे के लिए उपयुक्त समय है–
क्या यह सही समय है?
उत्तर :हम जानते हैं कि हमारे साथ अच्छे संबंध रखने वाले दो देशों के बीच परस्पर संबंध अच्छे नहीं हो सकते हैं।
परंतु इससे भारत और इन दो देशों के बीच संबंध प्रभावित नहीं होता है। इसलिए, मैंने इस शब्द का प्रयोग किया है कि हम किसी तीसरे देश के प्रिज्म के माध्यम से संबंधों को नहीं देखते हैं। प्रत्येक देश को अपने राष्ट्रीय हित के परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेने तथा अपनी
नीतियों का निर्धारण करने का संप्रभु अधिकार होता है। जो भी हो, विदेश नीति प्रबुद्ध राष्ट्रीय हितों का ही विस्तार होती है। इस संदर्भ में, प्रत्येक देश अपनी नीति का निर्धारण करने का हक रखता है। हम इस निर्णय में नहीं पड़ते हैं कि कौन सही है और कौन गलत। हम दूसरों
के साथ उनके संबंधों से स्वतंत्र रूप से अपने संबंध का निर्माण करते हैं।
प्रश्न :नार्वे के जो उद्यम भारत में व्यवसाय के अवसरों की तलाश करना चाहते हैं उन्हें यदि आप कोई सलाह देना चाहते हैं, तो वह क्या होगी?
उत्तर :मेरा यह विश्वास है कि हमारे संबंधों का विस्तार करने के लिए विशाल अवसर है, विशेष रूप से कारोबार एवं
शिक्षा की दुनिया में हमारे युवा सहयोगियों के बीच। हमें उन अवसरों का पूरी तरह पता लगाना चाहिए जो मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, आपके पूर्व प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान इस बात का उल्लेख किया गया था कि नार्वे के ग्लोबल पेंशन फंड, जो विश्व में सबसे बड़ा
पेंशन फंड है, से निवेश का वर्तमान स्तर बहुत कम, मात्र 4 बिलियन अमरीकी डालर है। इसे दस साल की अवधि में पांच गुना या दस गुना बढ़ाकर 20 बिलियन अमरीकी डालर या 40 बिलियन अमरीकी डालर किया जा सकता है। मेरा यह मानना है कि यदि कारोबारी संबंध स्थापित होते हैं, प्रौद्योगिकी
संबंध स्थापित होते हैं, तथा इसी तरह के और संबंध स्थापित होते हैं, मैं लगातार इस बात पर जोर दे रहा हूँ कि अनुसंधान, विकास एवं नवाचार में हमारा सहयोग शैक्षिक संस्थाओं के माध्यम से स्थापित हो रहा है, यदि हमारे पास उपयुक्त रूपरेखा हो, तो मुझे पूरा यकीन है
कि दोनों देशों को प्रचुर मात्रा में लाभ होगा। यह मेरा सुझाव है, मैं सलाह नहीं दे सकता।
प्रश्न :यहां मैं नार्वे की आम जनता से बोलूँगा, यह प्रश्नों की सूची में शामिल नहीं है परंतु नार्वे के बहुतेरे लोगों की यह मांग है कि मैं इस प्रश्न को पूछूँ। पिछले
दो वर्षों के दौरान सामूहिक बालात्कार तथा महिलाओं के विरूद्ध बालात्कार की घटनाएं हुई हैं ... (हस्तक्षेप)
उत्तर :सबसे पहली बात तो यह है कि ये घटनाएं बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हम इनकी निंदा करते हैं। हर कोई इनकी निंदा करता
है। यह भारत नहीं है। यह एक मतिभ्रम है। यह एक विकृति है। हम महिला शक्ति में विश्वास रखते हैं। हमारे सभ्यतागत मूल्य, हमारा संविधान, हमारा इतिहास हमारी महिलाओं को समान अवसर प्रदान करता है। मैं नाम का उल्लेख नहीं करना चाहूँगा परंतु आप देखेंगे कि महिलाओं को
वोट देने का अधिकार – महिलाओं के लिए सम्मान के साथ सार्वभौमिक मताधिकार– यूरोप एवं उत्तरी अमरीका के अनेक उन्नत लोकतंत्रों में बहुत बाद में दिया गया। भारत में,
हमने इसे उसी दिन दे दिया जब हमने अपने संविधान को अपनाया।
प्रश्न :आप इस विरासत को किस तरह सुदृढ़ कर सकते हैं तथा वर्तमान स्थिति में सुधार ला सकते हैं?
उत्तर :जब इस तरह के मतिभ्रम उत्पन्न होते हैं, तो हमें उनसे निपटना होता है। देश के अंदर बड़े पैमाने पर इन घटनाओं
की निंदा हुई है। हमने कानूनी रूपरेखा को कठोर बनाया है, दंड के प्रावधानों को मजबूत करने तथा दंड में वृद्धि करने संबंधी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया है। इस समय एक मुद्दे पर विचार– विमर्श चल रहा
है जो किसी घटना में किसी किशोर के शामिल होने से संबंधित है– क्या उसे प्रौढ़ों के समकक्ष समझना चाहिए। इससे संबंधित सभी मुद्दों, इसके सभी पहलुओं से निपटा जा रहा है–
कानून के प्रवर्तन तथा कानूनी रूपरेखा को सुदृढ़ करके तथा इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि समाज में जागरूकता पैदा हो। इनको दृढ़ निश्चय के साथ काबू में करना होगा। मुझे पूरा यकीन है कि ये मतिभ्रम हैं और यह कि ये मतिभ्रम जारी नहीं रहेंगे या बने नहीं रहेंगे। जहां तक
महिलाओं के सशक्तीकरण का संबंध है, हम अच्छा काम कर रहे हैं। अपनी लोकतांत्रिक संरचना के सबसे निचले स्तर पर, हमने महिलाओं के लिए आरक्षण का सुनिश्चय किया है। गांव के स्तर पर तथा नगरपालिका के स्तर पर 3.3 मिलियन चुने हुए प्रतिनिधियों को स्थानीय शासन के स्तर
पर विकास का कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। इनमें से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि इस समय 1.2 मिलियन से अधिक महिलाएं हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के तीसरे स्तर पर अर्थात स्थानीय शासन के स्तर पर प्रशासन में
भागीदारी कर रही हैं।
प्रश्न :मुझे आपके नाम से ऐसा लगता है कि आप निश्चित रूप से बंगाली होंगे। मुखर्जी महोदय, क्या आपके पास कोई छोटी-मोटी बंगाली कविता है जिसे आप हमारे लिए सुना सकते हैं?
उत्तर :मैं आपके लिए श्री टैगोर से एक उद्धरण प्रस्तुत कर सकता हूँ जिन्होंने भारतीय सभ्यता का वर्णन किया है तथा कहते हैं ''मुझे पता नहीं
है कि कहां से और कब से लोगों की धाराएं आईं, वे आपस में मिल गए, उन्होंने अंत:क्रिया की और अंतत: वे पिघल कर एक बर्तन बन गए तथा उस एक बर्तन से एक महान सभ्यता का जन्म हुआ, यही भारतीय सभ्यता है।''
भेंटकर्ता के अनुरोध पर राष्ट्रपति महोदय ने बंग्ला में भी इन शब्दों को सुनाया।
राष्ट्रपति महोदय, आपका धन्यवाद।