अध्यक्ष : विदेश संबंध परिषद में आपका स्वागत है। मैं, रिचर्ड हास, विदेश संबंध परिषद का अध्यक्ष
हूँ, और आपका यहां स्वागत करते हुए और एक ऐसे व्यक्ति से आपको मिलवाते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है,भारत
के महामहिम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी।
जैसा कि आप सभी जानते हैं और हमारे मीडिया में आपने देखा है, प्रधान मंत्री ने न्यूयॉर्क शहर में हलचल पैदा कर दी है। निक्स के चैम्पियनशिप जीतने के बाद से मैडीसन स्क्वायर गार्डन में ऐसी उत्तेजना
देखने को नहीं मिली थी, और वह भी इतनी पुरानी घटना है कि उसको देखने वालों में से कुछ ही हमारे साथ हैं।
हमारी बास्केटबॉल टीम की असफलता के लिए संकीर्ण टिप्पणी के लिए मैं क्षमा प्रार्थना करता हूँ।
प्रधान मंत्री ने यहां हमारे साथ आने के लिए भले ही लम्बा सफर तय किया हो, परंतु इस सप्ताह मीलों लम्बा सफर तय करने वाले वे अकेले भारतीय नहीं हैं। भारत का मार्स ऑर्बिटर भी कुछ ही दिन पहले अपनी
मंजिल तक पहुंचा है। मैं प्रधान मंत्री को तथा इस उपलब्धि को प्राप्त करना संभव बनाने वाले उस देश के सभी लोगों को बधाई देता हूँ।
प्रधान मंत्री मोदी भारत के छठे ऐसे प्रधान मंत्री हैं जिनका हमें यहां विदेश संबंध परिषद में मेजबानी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है,और इससे भारत और इसके पड़ौसियों तथा अमेरिका के साथ इसके संबंधों
के अध्ययन की हमारी चिरकालिक प्रतिबद्धता परिलक्षित होती है।
127 दिन पहले वास्तविक अर्थों में ऐतिहासिक चुनावों के बाद पद ग्रहण करने के बाद प्रधान मंत्री की पहली अमेरिका यात्रा के दौरान हम उनकी मेजबानी करके विशेष रूप से गौरवान्वित हुए हैं। उनकी पार्टी ने तीस वर्षों के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत प्राप्त
किया है। मतदान करने वालों की संख्या—अमेरिका के सभी लोगों को इस पर ध्यान देना चाहिए--मतदान करने वालों की संख्या 550 मिलियन थी, 66 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान
किया। और इस मतदान के कारण बड़ा जनादेश सामने आया और परिणाम ने भारत तथा उसके बाहर भी उत्तेजना की चिंगारी सुलगा दी और बदलाव की ऊँची अपेक्षाएं जगा दी।
अब जैसा कि आप में से कई लोग जानते हैं, प्रधान मंत्री ने एक आधार तैयार किया था जो सुशासन तथा भारत की आर्थिक प्रगति एवं विकास पर केंद्रित था,
जो एक ऐसा संदेश है जिसमें वह सब परिलक्षित होता है जो उन्होंने गुजरात के मुख्य मंत्री के रूप में किया था। परंतु प्रधान मंत्री को हमारे देश सहित भारत के विदेश संबंधों पर भी ध्यान देने का थोड़ा अवसर मिलेगा।
जैसा कि प्राय: कहा जाता है, भारत और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े प्रजातंत्र हैं। अमेरिका के लिए द्विपक्षीय संबंधों में बहुत महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। मैंने‘संभावनाएं’शब्द
का प्रयोग बहुत सजग होकर किया है, क्योंकि हमारे संबंध उस मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं जहां होने चाहिए। व्यापार और निवेश,ऊर्जा सुरक्षा,
और क्षेत्रीय मुद्दों के साथ-साथ दक्षिण एवं पूर्वी एशिया एवं आतंकवाद तथा जलवायु परिवर्तन सहित ट्रांसनेशनल मुद्दों पर कूटनीतिक सहयोग के मामले में हमारे संबंध अल्प विकसित हैं।
और दोनों देशों, अमेरिका और भारत, के लिए इस पूरी संभावना को वास्तविकता में बदलने की चुनौती भी है और अवसर भी है। मैं प्रधान मंत्री के साथ भारत
के बारे में, विशेष रूप से उनकी अर्थव्यवस्था के लिए उनकी योजनाओं पर एवं विदेश नीति पर तथा उनके तथा उनके देश के सामने आ रही चुनौतियों पर बातचीत करना चाहता हूँ।
तथापि, सबसे पहले प्रधान मंत्री कुछ टिप्पणियां करेंगे, और वे हिंदी में बोलेंगे। जो लोग हिंदी अभी अच्छी तरह नहीं जानते उनके लिए हैडफोन उपलब्ध
हैं। उसके बाद, प्रधान मंत्री और मैं बैठकर कुछ मिनट चर्चा करेंगे उसके बाद हम हमारे सदस्यों के अतिरिक्तप्रश्नों का उत्तर देंगे। और मैं प्रत्येक व्यक्ति को यह
बताना चाहता हूँ कि यह बैठक ऑन-द-रिकॉर्ड होगी।
अत: इसके साथ,मैं पुन: प्रधान मंत्री मोदी का विदेश संबंध परिषद में स्वागत करता हूँ और उन्हें अपना भाषण देने के लिए इस पोडियम पर आमंत्रित करता हूँ,आइए,
श्रीमान।
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : डॉ. रिचर्ड हास और यहां उपस्थित सभी अतिथियो, इस हॉल में आपसे बात करने का सौभाग्य अब से पहले पांच प्रधान
मंत्रियों को मिल चुका है। मैं छठा हूँ। पिछले तीन दिन से, मैं आपके शहर में हूँ, और जो प्रोत्साहन, प्यार और स्नेह
मैंने यहां पाया है उसके लिए मैं इस शहर का तथा अमेरिका का आभारी हूँ, और मैं अपने हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
विशेष रूप से विदेश संबंध परिषद की जिस परंपरा ने अपनी स्वयं की साख बनाई है, उसके लिए मैं उसे बधाई देना चाहता हूं कि वे अपने विचारों को दूसरे पर थोपते नहीं हैं। वे विचारों को सुनते हैं,
वे सभी पहलुओं पर विचारों को सुनते हैं, और फिर उन्हें दुनिया के सामने पेश करते हैं, और इस बात को वे दुनिया पर छोड़ देते हैं कि ये भी अलग विचार हैं,
ये भी अलग पहलू हैं। आप स्वयं निर्णय करें कि क्या सही है और क्या गलत।
मेरा विश्वास है कि यह कोई अपने आप में छोटी बात नहीं है। अन्यथा,संस्था के लिए इतना अधिक स्नेह है, संस्था सदैव
अपनी छवि के बारे में चिंता करती है। कहीं-न-कहीं लोग अपने विचारों को रंग देते हैं और अपने विचारों को दूसरों पर थोपते हैं। परंतुविदेश संबंध परिषद ने सदैव इस बात से स्वयं को बचा कर रखा है और सभी पहलुओं को एक साथ लाकर हर एक के समक्ष रखा
है। यह वह बात है जिसके लिए मैं विदेश संबंध परिषद को अपने हृदय से बधाई देना चाहता हूँ।
डॉ0 हास के भारत के साथ बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। और पिछले दशक में,भारत और अमरीका के संबंधों को भी बढ़ावा मिला है। और इसमें डॉ0 हास ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
है। जब वाजपेयी जी की सरकार तब इन्होंने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और समूची सरकार ने इनके योगदान को सकारात्मक रूप में याद रखा है, और इसके लिए आज भी मैं डॉ0 हास के प्रति मेरी ओर से आभार प्रकट करना चाहता
हूं।
जैसा कि डॉ. हास ने अभी हमें बताया है कि भारत में तीस वर्ष के बाद कोई सरकार पूर्ण बहुमत से चुनी गई है। और वह पार्टी जो हमेशा विपक्ष में बैठी, सत्ता में आई है। और भारत में पहली बार,ऐसे
व्यक्ति को प्रधान मंत्री बनने का अवसर मिला जो स्वतंत्र भारत में पैदा हुआ है। अब तक,हमारे देश के सभी प्रधान मंत्री ब्रिटिश काल में पैदा हुए थे।
और यही कारण है कि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसने दासता के दिन नहीं देखे। और मैं पैदा हुआ, जैसे ही मैं पैदा हुआ,मैंने अपनी पहली सांस प्रजातंत्र
में ली थी। और मेरी हर सांस में प्रजातंत्र है। और क्योंकि प्रजातंत्र में मेरा दृढ़ विश्वास है, आज अत्यधिक नम्र व्यक्ति सत्ता के सबसेऊँचे पद पर पहुंच गया है।
यह प्रजातंत्र की शक्ति है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि हमें पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है। और उसके कारण, लगभग दो पीढ़ियों ने जो अपेक्षाएं और उम्मीदें लगा रखी थीं अचानक उनमें उबाल आ गया,
और भारत का प्रत्येक युवा जो आज चालीस से पैंतालीस साल का है, उसने दस वर्ष की आयु से चालीस वर्ष की आयु तक केवल अस्थायित्व, निराशा,
और ऐसा ही माहौल देखा है।
और जब यह स्थिति आ गई है तो उसकी उम्मीदें बहुत बढ़ गई हैं। और उन उम्मीदों को पूरा करना हमारा कर्तव्य है। भारत एक बहुत विशाल देश है। इसके चुनाव को समझना भी बहुत कठिन काम है। और जैसा कि पाश्चात्य देशों में चुनाव पर किताबें लिखी गई हैं,
भारत में अभी तक ऐसी कोई परंपरा नहीं रही है। और इसके कारण,चुनावी रंग और जिस प्रकार चुनाव होते हैं और इसका दायरा कितना होता है, सब कुछ- जब तक कोई इस सब को बहुत
निकट से नहीं देखता, सब कुछ नहीं समझ पाएगा और संभवत: विश्व में यह एक ऐसा बड़े पैमाने पर होने वाला चुनाव है और इतने अधिक लोगों से वोट प्राप्त करना और विजयी होना एक बड़ा काम है,
परंतु भारत की जनता ने अपना आशीर्वाद दिया है।
और इस चुनाव में, हमें दो बड़े विषय मिले हैं। एक सुशासन का अनुरोध था, और दूसरा विकास का। हम इस बात से सहमत हैं कि समस्याएं है,
परंतु सभी समस्याओं का समाधान तब तक नहीं किया जा सकता जब तक हम इन दो बातों पर ध्यान न दें।
पहले, जैसा कि आप जानते हैं, छोटे-छोटे वर्गों को खुश रखना हमारी आदत बन गया था,बस उन्हें कुछ
टुकड़े डाल दो, और अपने वोट बैंक को बचाए रखो, और राजनीति करते रहो। यह बहुत आसान समाधान है, बहुत आसान तरीका है,
और राजनीति में बने रहो,भारत की जनता इसकी आदी होती जा रही थी।
परंतु जब हम छोटे-छोटे मुद्दों से ऊपर उठकर सुशासन और विकास की,उत्थान की बात करते हैं,
तो यह बहुत कठिन होता है। परंतु इसी कारण जनता ने यह स्वीकार किया है कि युवा पीढ़ी, भारत की युवा पीढ़ी है, वे सोचते हैं और उनके सोचने का
नजरिया बदल गया है। वे छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटकर अब नहीं रहना चाहते। उनके साथ अब तक जैसा बर्ताव किया गया, वे उससे खुश नहीं हैं, और वे कुछ नया चाहते हैं।
और भारत बहुत सौभाग्यशाली देश है। यह विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है। इसके अलावा, यह दुनिया का सबसे युवा देश भी है। यह एक बहुत निराला संयोग है जो हमारे पास है। हमारी विरासत बहुत महान है,
और हम दुनिया के सबसे युवा देश भी हैं। हमारी पैंसठ प्रतिशत जनसंख्या पैंतीस वर्ष से कम आयु के लोगों की है।
और इस युवा वर्ग की उम्मीदें, जो विचार उनके मस्तिष्क में हैं, यह एक बड़े राजनैतिक परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा हुए हैं। यह निश्चित है
कि राजनीति में स्थायित्व अपने आप में एक बड़ा संदेश है। हम जानते हैं कि यदि हमारे पास स्थायित्व है, तो एक आम आदमी में भी आत्म-विश्वास होगा कि अब नीतियों और कानूनों के आधार पर कुछ न कुछ होगा और हमारा हित
होगा।
अत: नीतियों का अनुसरण करने का निर्णय ले कर, हमने एक आधार बनाया है, लोग स्वयं उस आधार को विकास का आधार बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। जब मैं सुशासन
की बात करता हूं, मेरा विश्वास होता है कि न्यूनतम सरकार होनी चाहिए और अधिकतम शासन होना चाहिए, क्योंकि इतने विशाल देश को चलाने के लिए,
बहुत सारी परंपराएं है, नियम, विनियम और परिपाटियां हैं,ये सभी चीजें हैं जो उनके मार्ग में अवरोध बनती हैं। और कभी-कभी
सरकार का स्वयं का आदेश भी बाधा, समस्या बन जाता है। मेरा उद्देश्य यह देखना है कि उन्हें आसान किस प्रकार बनाया जाए, उन्हें त्वरित कैसे किया जाए,
और मैं उस दिशा में काम कर रहा हूं। पारदर्शिता कैसे लाई जाए, यह हमारा प्रयास है।
हम ई-गवर्नेंस पर, इलैक्ट्रॉनिक गवर्नेंस पर जोर दे रहे हैं। और इसके कारण, संभव है, पूरी संभावना
है कि सरकार प्रभावी रहे, सहजता से चले और हम इस बात पर भी बल दे रहे हैं। और दूसरी बात विकास की है। विकास के लिए, हमारे पास दो पहलू हैं। एक विश्व स्तर पर,
हमें विकासशील देशों के बराबर आना चाहिए। और साथ ही मेरे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति के, मेरे देश के हर एक व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाना चाहिए। और जब हम भारत की बात करते हैं,एक
पहलू यह है जिसको हम भूल जाते हैं,और वह है समय की मांग, वह यह कि हम उसके बारे में बात करते हैं और वह मध्यम वर्ग है,ये
वे लोग हैं जो गरीबी के पंजे से मुक्त हुए हैं परंतु वे अभी तक मध्यम वर्ग तक नहीं पहुंचे हैं, और अब वे गरीबी में वापस नहीं जाना चाहते। यह बहुत बड़ा तबका है।
अब, हम इस नए मध्यम वर्ग की समस्या का समाधान करना चाहते हैं। यदि हम इस नए मध्यम वर्ग की समस्या का समाधान कर पाए तो हम उनके आर्थिक जीवन में परिवर्तन ला सकते हैं,
तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे मजबूत हुए हैं, वे निश्चित रूप से गरीबी से बाहर आ जाएंगे। परंतु यदि हम उनके लिए निराशा लेकर आए,और यदि दुर्भाग्य से वे फिर
से गरीबी की ओर चले गए तो एक गरीब आदमी के भीतर फिर से गरीबी से बाहर आने की आकांक्षा नहीं रहेगी क्योंकि वह मान लेगा कि ठीक है,ईश्वर ने मेरे लिए यही तय किया था और मुझे जो कुछ स्थिति है उसके अनुसार चलना चाहिए
और स्थिति को स्वीकार करना चाहिए।
मैं इसे बदलना चाहता हूँ। और इसके लिए इस तबके के लिए जो योजनाएं हो सकती हैं हम इस समय उन पर ध्यान दे रहे हैं। जब मैं यह बात कहता हूँ कि हमें जाना चाहिए-तब हमें वैश्विक स्तर पर जाना चाहिए जहां हमें अपनी विकास दर बढ़ा सकते हैं,हम
अपनी अर्थव्यवस्था में तेजी लाना चाहते हैं, यह बेहतर है कि पहले तीन महीनों में,हम 4.5 प्रतिशत से 5.7 प्रतिशत पर आ गए हैं। हम 1.3 प्रतिशत की वृद्धि करने में सफल
रहे हैं।
और इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि सरकार के चुने जाने के बाद, एक विश्वास का, एक भरोसे का माहौल बना है। और भरोसे के,
विश्वास के इस माहौल के कारण हमें गति मिलती है। कभी-कभी यदि कोई गरीब आदमी बीमार पड़ जाता है,और वह यदि किसी अन्य शहर में बीमार पड़े तो जब तक उसे अपना खुद का डॉक्टर नहीं मिल जाता,
वह ठीक नहीं हो सकता। वह चिंतित रहता है। उसे अपना डॉक्टर चाहिए।
और यह उसका स्वयं का भरोसा है, विश्वास है कि उस बीमारी के लिए उसे जो इलाज दिया जा रहा है,उसी प्रकार का विश्वास जनता द्वारा सरकार चुने जाने
में जताया गया है। अब जब हमने सरकार बना ली है और उनकी कुछ अपेक्षाएं और उम्मीदें हैं जिन्हें वे चाहते हैं कि पूरा किया जाए,और इसके कारण जनता के हृदय में यह विश्वास पैदा हुआ है। और विश्वास एवं भरोसा बहुत बड़ा
मनोवैज्ञानिक काम कर रहा है। और एक चुंबकीय प्रभाव, चारों तरफ चुंबकीय प्रभाव है, और विकास की ओर, प्रगति की ओर दौड़
लगाई जा रही है।
और यदि हम विकासशील देशों के समकक्ष आना चाहें तो यह भी महत्वपूर्ण है। हम चाहते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था कृषि, विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के तीन स्तंभों पर प्रगति करे। और हम इन तीनों में
संतुलन बनाना चाहते हैं। हमारी समूची अर्थव्यवस्था में, 30 प्रतिशत अंशदान कृषि से, 30 प्रतिशत विनिर्माण क्षेत्र से और 30 प्रतिशत सेवा क्षेत्र से होता है। आप जानते
हैं कि यदि इसमें थेड़ा बहुत बदलाव आता भी है तो देश की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। यही वह दिशा है जिस ओर हम जाना चाहते हैं।
जब हम विनिर्माण की बात करते हैं,
हम भारत में निर्मित किए जाने में भरासा पैदा करने का प्रयास करते हैं। हम दुनिया को बता रहे हैं कि भारत में निर्माण करो। आओ,और हमारे साथ मिलकर भारत में निर्माण करो। और मैं भारत की जनता को भी कहता
हूं कि आप भी ऐसा विनिर्माण करें कि आपका उत्पाद कारगर रहे और दुनिया की अर्थव्यवस्था में उसकी मांग हो।
यही करण है कि मैं जीरो डिफैक्ट, जीरो इफैक्ट की बात करता हूँ। हमारे उत्पाद ऐसे होने चाहिए कि इसमें खामी न हो और हमारा उत्पाद ऐसा हो कि उसका हमारे पर्यावरण पर कोई बुरा प्रभाव न हो। और इसी
कारण जीरो डिफैक्ट, जीरो इफैक्ट वह चीज है जिसे हम अपनी विनिर्माण प्रक्रिया एवं उत्पादों में लाना चाहते हैं। और इसी प्रकार, हम दुनिया में अपनी खुद की जगह बनाना
चाहते हैं।
जब मैं मेक इन इंडिया की बात करता हूँ तो दुनिया के जो भी लोग, जो भी उद्यमी यहां हैं, जो भी उद्योगपति हैं,
उसे यहां विनिर्माण करना चाहिए और यहां बाजार भी उपलब्ध है,परंतु उसे यही चिंता है कि कम लागत में उत्पादन कैसे किया जाए, प्रभावी सुशासन कैसे प्राप्त किया जाए,इस
निवेश के लिए सुरक्षा कैसे प्राप्त की जाए,और उनके अपने कर्मचारियों एवं कार्यालयों के लिए उपयुक्त मानव संसाधन कहां से प्राप्त किया जाए, अच्छा जीवन स्तर कैसे
प्राप्त किया जाए। यदि हम इन बातों पर ध्यान दें तो विदेशी निवेशकर्ता यहां आ सकते हैं और निवेश कर सकते हैं।
भारत एक युवा देश है, और हम कौशल विकास पर ध्यान दे रहे हैं। कौशल विकास में,मेरे दो पहलू हैं। एक वर्ष 2020 तक दुनिया को बहुत बड़ी कार्यशक्ति
की आवश्यकता होने वाली है। दुनिया को इतनी बड़ी कार्यशक्ति की आवश्यकता होने वाली है कि यह चिंता की बात है कि वह कार्यबल आएगा कहां से। भारत एक युवा देश है। यह अपेक्षा—दुनिया की कार्यबल की अपेक्षा भारत पूरी कर सकता है। इसमें वह क्षमता है। दुनिया को बहुत बड़ी
कार्यशक्ति की जरूरत पड़ेगी। और हम उस काम को करना चाहते हैं।
इसी प्रकार, हम वह कौशल विकास भी करना चाहते हैं जिसमें हमारे उद्यमी तैयार होते हैं और वे ऐसे लोग होने चाहिए जो रोजगार पैदा करने वाले हों। छोटे-छोटे वे लोग रोजगार पैदा करने वाले हो सकते हैं जिनके
पास छोटे उद्योग अथवा काम हैं। और फिर, उस तरीके से, छोटे उद्योगों का एक नेटवर्क तैयार हो जाएगा और हमारे देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी। यह वह दिशा है जिसमें
हम आगे बढ़ना चाहते हैं।
और मुझे विश्वास है कि जो कदम हमने अभी तक उठाए हैं, उनका सीधा असर पड़ेगा और पिछले तीन महीनों में, तीन महीनों की छोटी सी अवधि में,जैसा
कि डॉ0 हास ने आपको बताया, चन्द्रमा पर हमने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि भारत में, उसके अलग-अलग स्थानों पर,
छोटे-छोटे कारखानों में छोटे पुर्जे बनाए गए थे और हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने उन सबको इकट्ठा किया था।
और बहुत कम खर्चे में, हम बहुत ही कम खर्चे में चंद्रमा पर पहुंचने में सफल रहे। यदि मैं खर्चे की बात करूँ, तो एक हॉलीवुड फिल्म के निर्माण में
भी इससे अधिक खर्चा आता है। एक हॉलीवुड मूवी, यहां तक कि एक हॉलीवुड मूवी से भी कम खर्चे में हमने चन्द्रमा की 650 मिलियन मील की यात्रा की है,और
हम वहां पहुंचे हैं, और भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जो अपने पहले प्रयास में सफल रहा, पहले प्रयास में। लोगों ने—देशों ने सात से आठ प्रयास किए,
परंतु भारत ऐसा पहला देश है जो अपने पहले प्रयास में ऐसा करने में सफल रहा।
अत:-- और हम में ऐसी चीजों को बनाने की दक्षता है। और यही बात है जो हमने दुनिया को बताई है। विनिर्माण क्षेत्र में,लोगों को और किसी बात को देखने की जरूरत नहीं है,
उन्हें केवल हमारे, उन्हें मंगल के बारे में केवल हमारे अनुभव का अध्ययन करना चाहिए, और फिर ऐसा करने के बाद,वे
कह सकते हैं कि हां हम चांद पर जा सकते हैं।
इतने कम खर्चे में इतनी बड़ी उपलब्धि और कौशल विकास के साथ,वे समझ पाएंगे कि यदि एक व्यक्ति ऐसा उत्पाद लाता है, तो वह ऐसा कर सकता है। और यही
करण है कि मेक इन इंडिया मिशन वह चीज है जिसे हम आगे बढ़ा रहे हैं। हम कौशल विकास पर बल दे रहे हैं और हम अपने कानूनों में व्यापक बदलाव ला रहे हैं। हमने श्रम सुधार भी किए हैं।
मैं जानता हूँ कि भारत जैसे देश में, राजनैतिक दृष्टिकोण से, इसका यह अर्थ होता है कि हम बहुत ठीक नहीं कर रहे हैं। परंतु जो जनादेश जनता ने हमें
दिया है, उसकी ओर देखते हुए, मैं मानता हूँ कि मुझे मेरे देश को प्रगति की ओर ले जाना चाहिए। यह मेरा कर्तव्य है। अत: भले ही राजनैतिक रूप
से यह जरूरी न भी हो, मैं फिर भी बहुत जिम्मेदारी से कदम उठाऊँगा,और अंतत: वह सबके हित में
होने वाला है। हम नहीं चाहते कि किसी के भी सामने कोई समस्या आए।
और यदि आपको कोई श्रम सुधार करने हों तो आपको करने चाहिए। जब केंद्र सरकार की बारी आती है तो, हम आपको केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पूरा सहयोग प्रदान करेंगे। भारत में संघीय सरकार है और संघीय
संरचना है। हमने केंद्र और राज्यों के बीच टीम इंडिया के आधार पर अभिशासन की शुरूआत की है। उन्हें मिलकर क्यों नहीं काम करना चाहिए? यदि कोई कंपनी आना चाहती है और देश में निवेश करना चाहती है, तो यह आती है और नई
दिल्ली से बात करती है और दिल्ली को इसमें खुद कुछ नहीं करना होता है। इसे दूसरे राज्य में भेज देना होता है।
परंतु राज्यों के लोग नहीं जानते कि क्या करना है,और फिर वे सही प्रतिक्रिया नहीं देते। परंतु केंद्र और राज्य मिल कर एक टीम की तरह काम करें,
तो हर एक को यह विश्वास हो जाएगा कि मैं दिल्ली जाऊँ या किसी राज्य के मुख्यालय में जाऊँ, मेरे काम में कोई बाधा कभी नहीं आएगी। अब एक विश्वास का माहौल है, और
यही कारण है कि टीम इंडिया काम कर रही है और हमने अपने काम करने के तंत्र में पूरा बदलाव कर दिया है और हम उसी विश्वास के साथ आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
इसी प्रकार, काम करने की सहजता। मैं जानता हूँ कि कभी-कभी मैं कहता हूं कि हिंदू पुराणों में, यदि आप तीर्थ यात्रा पर जाते हो,तो
आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी, यह मुक्ति है। परंतु हमारे देश में, एक फाइल बत्तीस स्थानों की यात्रा करने के बाद भी सही जगह नहीं पहुंचती। इसे मुक्ति प्राप्त
नहीं होती।
इसलिए मैंने उनको कहा है- फाइलों को शीघ्रता से कैसे मूव करें- और इसके लिए हमने प्रक्रिया में बदलाव किया है। यदि हमें कोई फॉर्म भरना हो, तो लोगों के पास दस-दस पृष्ठ के बड़े-बड़े फॉर्म होते हैं।
और हर एक चीज के लिए, उन्हें एक नया फॉर्म भरना होता है। इसलिए मैंने कहा कि ऐसा अब और नहीं चलेगा।
मैंने अपने सभी अधिकारियों से कहा है कि फॉर्म एक पृष्ठ का होना चाहिए और किसी से और कुछ कभी नहीं मांगा जाए। इसका मतलब यह है कि लोग समझते हैं कि ये बहुत छोटी चीजें हैं, परंतु हम सभी जानते हैं,
ताला कितना भी बड़ा और विशाल क्यों न हो एक छोटी सी चाबी से खुलता है, और यही कारण है कि छोटी चीजें बड़ी चीजों के लिए द्वार खोलती हैं। और इस बात पर बल देते हुए हम अपने तंत्र को प्रगति की दिशा में ले जा रहे हैं।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बारे में, हमने अपने पहले ही बजट में पहल की है। हमारे देश का रेलवे सिस्टम, लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है। परंतु
आर्थिक विकास के लिए इससे बड़ी बात कुछ नहीं है। यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी रेलवे लाइन है।
यदि रेलवे में इतना अधिक काम है, तो हमें इसमें निजी निवेश की आवश्यकता पड़ेगी। अनेक वर्षों से ऐसा नहीं हो रहा था। आज अनेक औद्योगिक घरानों के लोगों ने मुझसे मुलाकात की है,
और उन्होंने कहा है कि हमने बहुत कुछ सुना है, परंतु वास्तव में कुछ नहीं हुआ है। मैंने कहा है, आपने अभी तक सुना है? अब ऐसा हो गया है। ऐसा हो चुका है। हमने अपने
बजट में आधिकारिक रूप से प्रावधान कर दिया है। हमने 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दे दी है, क्योंकि हम रेलवे का स्तर सुधारना चाहते हैं, क्योंकि हम रेलवे की गति
बढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि हम रेलवे का विस्तार करना चाहते हैं,और क्योंकि हम यह चाहते हैं कि रेलवे भारत में यात्रा करने की मूल भावना को पूरा करे।
और मेरा विश्वास है कि भारत के रेलवे के लिए ही ट्रिलियनों डॉलर का व्यवसाय मौजूद है। यह भारत के रेलवे से जुड़ा हुआ है। और यह एक ऐसा काम है जिसके लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है। यदि एक अच्छे कारखाने के लोग आएं,तो
वे इस दिशा में काम कर सकते हैं। मेरे पास जनशक्ति है,और आपके पास धन है। मेरे पास प्रतिभा है और आपके पास व्यवसाय का अनुभव है। यदि हम इन दोनों को आमेलित कर दें तो हम इसे पूरा कर सकते हैं।
और 1.25 बिलियन लोगों का जीवन केवल इन्हीं चीजों से बदल सकता है। और हम ये बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। यहां तक कि पर्यावरण के लिए भी, हम उतने ही सचेत हैं। जब मैं गुजरात का मुख्य मंत्री
था, यह दुनिया की चौथी ऐसी सरकार थी जिसका जलवायु परिवर्तन संबंधी अलग विभाग था,और हमने जलवायु परिवर्तन की बात को बहुत आगे बढ़ाया।
सौर ऊर्जा, स्वच्छऊर्जा का अस्सी प्रतिशत गुजरात में उत्पादन होता था,
जहां का मैं मुख्य मंत्री था। इसलिए हमने हर एक बात पर इतना अधिक बल दिया था। हर एक बात को ध्यान में रखते हुए,हमने गंगा नदी को साफ करने का काम भी शुरू किया है,
गंगा 2,500 मील लंबी नदी है और 30 प्रतिशत जनता इस गंगा नदी से प्रभावित होती है। इनका जीवन इससे जुड़ा हुआ है। उन क्षेत्रों के गांवों की अर्थव्यवस्था इससे जुड़ी हुई है। उत्तर में हमारी कृषि व्यवस्था इस पर
आधारित है।
और चाहे यह उत्तराखंड हो, या उत्तरप्रदेश,बिहार, पश्चिम बंगाल हो,
ये सभी क्षेत्र ऐसे हैं, जहां हमारी हमारी प्राथमिकता गरीबी दूर करने की है और इस कार्य को ध्यान में रखते हुए हम आगे बढ़े हैं। गंगा अवश्य साफ होगी। पर्यावरण और उत्पादन पर भी ध्यान दिया जाएगा। परंतु साथ ही उन
गरीब क्षेत्रों में, हम चाहते हैं कि यह वहां अर्थोपार्जन का एक बड़ा आधार बने।
और मैं एक सार्वजनिक आंदोलन तैयार करना चाहता हूँ, गंगा को साफ करने के लिए एक क्रांति लाना चाहता हूं। और मैं दुनिया भर के लोगों को, जो लोग इसमें
विश्वास रखते हैं- जो लोग गंगा नदी में विश्वास रखते हैं- उनको आमंत्रित करने जा रहा हूँ। मैं उनको भी आने का न्यौता दे रहा हूं। परंतु जो काम सबसे कठिन है, वह है- इसे पर्यावरण अनुकूल कैसे बनाया जाए,
हम इस बात पर ध्यान दे रहे हैं।
और एक तरीके से, आर्थिक विकास, पर्यावरण के बारे में चिंता, युवाओं का कौशल विकास,रोजगार
की संभावनाओं का विस्तार करना, शासन प्रणाली में सुधार लाना, प्रभावी शासन की दिशा में काम करना,हम इन सभी बातों
के साथ आगे बढ़ रहे हैं। परंतु इसके साथ ही,ऐसा कोई देश नहीं है जो केवल अपने दम पर प्रगति कर सके। दुनिया बदल गई है। और हमें वैश्विक आवश्यकताओं के अनुसार चलना होता है,
और हमें वैश्विक प्रवाह के साथ संतुलन बनाए रखना होता है। हमें वैश्विक नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलना होता है।
कोई भी अपनी मनमर्जी का मालिक नहीं हो सकता। हमें मिलकर काम करना होता है। और भारत का दर्शन इसकी प्रेरणा है और ऐसा देश जो दर्शनशास्त्र की छाया में काम करता है और आगे बढ़ता है, वह लंबे समय तक
बना रहता है। जो आइडियोलॉजी के साथ काम करते हैं, उनका एक न एक दिन पतन हो जाता है।
आइडियोलॉजी की अपनी सीमाएं हैं। दर्शनशास्त्र असीम है। और यही कारण है कि भारत का यह दर्शन कि पूरा विश्व एक कुटुम्ब है, यही वह दर्शन है जो हम आगे बढ़ने के लिए ले कर चल रहे हैं,और
जब हम आगे बढ़ते हैं तो हम उसे स्वीकार कर लेते हैं।
अपने पड़ौसी देशों के साथ हम मित्रता चाहते हैं। अपने शपथ-ग्रहण समारोह में, अनेक प्रधान मंत्रियों ने अपने शपथ-ग्रहण समारोह करवाए थे, मैं कोई पहला
प्रधान मंत्री नहीं था, परंतु यह पहला शपथ-ग्रहण समारोह था जहां सार्क देशों के सभी राष्ट्राध्यक्ष उपस्थित थे। मैंने सभी सार्क नेताओं को आमंत्रित किया था।
और इतने कम समय में,जैसे ही मैंने काम संभाला, मैं अपने पड़ौसी देशों में गया और उनसे मिला। मैं नेपाल गया। सत्रह सालों में कोई भी नेपाल नहीं गया
था। मैं नेपाल गया। मैं भूटान गया। और मैं चाहता हूँ- मैं अभी भी अपने पड़ौसी देशों के साथ मित्रता स्थापित करने में लगा हुआ हूँ, और मुझे विश्वास है कि हम सुख-दु:ख में एक दूसरे के काम आएंगे।
हाल ही में, जम्मू और कश्मीर में बाढ़ आई थी, और उसके बाद लोगों के सामने बहुत समस्याएं आई। और पाकिस्तान में भी बाढ़ आई थी। और मैंने सार्वजनिक
रूप से यह कहा कि हम कश्मीर में मदद कर रहे हैं। और दूसरी ओर, सीमा पार लोग बाढ़ की त्रासदी का सामना कर रहे हैं। और मानवता के आधार पर हम उनकी भी मदद करना चाहेंगे।
इस पृष्ठभूमि में ही हम जी सकते हैं। मित्रता बहुत गहरी होनी चाहिए, और यही हमारे लिए भी बेहतर होगा। मैंने घोषणा की है कि हम एक सार्क उपग्रह प्रक्षेपित करने जा रहे हैं। मैंने अपने वैज्ञानिकों
को पहले ही कह दिया है कि उस सार्क उपग्रह की सहायता से हम स्वास्थ्य, शिक्षा, मौसम पूर्वानुमान में तरक्की करेंगे। यह सार्क उपग्रह सभी पड़ौसी देशों को नि:शुल्क
सहायता प्रदान करेगा। इसलिए हमने एक सार्क उपग्रह के बारे में विचार किया है।
इसीलिए हम उन सभी पहलों की बात कर रहे हैं ताकि हमारे सार्क देश एक साथ काम करें और प्रगति कर सकें। और गरीबी उन्मूलन के प्रयास भी जारी हैं, हम उसके प्रति भी योगदान करने में समर्थ हो सकते हैं।
चीन भी हमारे पड़ौस में है। पूरा विश्व यह मानता है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। कुछ लोग यह मानते हैं कि यह भारत की सदी है। कुछ मानते हैं कि यह चीन की सदी है। परंतु किसी को भी यह मानने में कोई समस्या नहीं है कि 21वीं सदी किसकी सदी है। चाहे
यह चीन की हो अथवा भारत की, यह वह बात है जिस पर दुनिया में बहस चल रही है।
परंतु भारत से आने वाला एक लाभ यह है कि हमारे पास तीन ऐसी चीजें हैं जो दुनिया के पास नहीं हैं। दुनिया के किसी देश में ये तीनों चीजें एक साथ नहीं हैं। किसी एक के पास कोई एक चीज,दूसरी
अथवा तीसरी चीज हो सकती है,परंतु सभी एक साथ नहीं। एक तो है प्रजातंत्र। दूसरा है जनांकिकीय विभाजन। और तीसरी है मांग।
और ये सभी चीजें, ये सभी चीजें हमारे पास लोकतांत्रिक पहलू में हैं। अमेरिका जिस प्रकार सबसे पुराना लोकतंत्र होने के नाते, सबसे बड़ा लोकतंत्र होने
पर गर्व कर सकता है, तो भारत जनांकिकी में सबसे बड़ा प्रजातंत्र होने पर गर्व कर सकता है... हमारी जनसंख्या 1.25 बिलियन है। यहां इतनी अधिक मांग है,और ऐसा कोई और
देश नहीं है जिसमें ये दोनों संभावनाएं हों,और यही कारण है कि इस बात की संभावना है कि भारत बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा करेगा और दुनिया की भलाई एवं कल्याण के लिए काम करेगा।
मैंने यह बात हाल ही के वर्षों में भी कही है, मेरे इस पद पर आने के बाद, एक माह के भीतर, मैंने
कहा था कि सितंबर के माह में ही, मैं जापान गया था, मैं वहां गया और मैंने ऑस्ट्रेलियाई और चीनी नेताओं से मुलाकात की। अब मैं अमरीकी नेताओं से मिल रहा हूँ। मैं संयुक्त
राष्ट्र में बहुत से विशिष्ट जनों से मिला था। ऐसी तेजी से मैं वैश्विक स्तर पर काम कर रहा हूँ, भारत ने अपना वैश्विक प्रयास शुरू कर दिया है। और मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमें सौहार्दपूर्ण माहौल में मिलकर रहना
होगा। हमें पूर्ण सद्भावना के साथ एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा।
और समस्याओं, कठिनाइयों के बीच हमें अपने- हमें बातचीत करते रहना होगा,और हमें यह विश्वास रखना होगा कि हमारा सबका सह-अस्तित्व है। यदि हम अपनी
समस्याओं पर रोते और पछताते रहे तो हम आगे नहीं बढ़ सकते। चीन के साथ हमारी सीमा पर समस्याएं हैं, परंतु उसके बाद भी, हमने चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों,
अपने राजनैतिक संबंधों, अपने कूटनीतिक संबंधों में सुधार किया है,और हमारा प्रयास यह है कि वह समस्या, जिस पर पूरी
दुनिया को चिंता है और भारत पिछले चालीस वर्ष से चिंतित है, वह है आतंकवाद।
आतंकवाद की समस्या, आतंकवाद के खतरे को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। और मुझे खेद के साथ कहना पड़ेगा कि दुनिया के अनेक देश आतंकवाद के इस विशालकाय और दैत्याकार स्वरूप को कभी समझ नहीं पाए
हैं। मैं 1993 में स्टेट डिपार्टमेंट में आया था और तब भी मैं भारत में आतंकवाद के बारे में बात कर रहा था।
और स्टेट डिपार्टमेंट के अधिकारी मुझे बता रहे थे कि यह तुम्हारी अपनी कानून और व्यवस्था की समस्या है। मैं उन्हें यह समझाने का प्रयास कर रहा था कि यह आतंकवाद है, परंतु वे कर रहे थे कि नहीं
यह कानून और व्यवस्था की समस्या है। उन्होंने कहा था कि आप सरकार चलाना नहीं जानते हैं। आपके पास व्यवस्था नहीं है।
और मैंने उन्हें समझाना जारी रखा- हमारे पास केवल पन्द्रह मिनट थे। हमने डेढ़ घंटे तक बात की, परंतु मैं उन्हें नहीं समझा सका। और जब मैं 1993 में,
जब मैं आया, तो उन्होंने कहा था, आप एक साथ बैठ कर बात क्यों नहीं करते? और फिर हम फिर साथ बैठे, और इस बार,
वे मुझे बता रहे थे कि आतंकवाद क्या है।
और वे मुझे इसलिए बता रहे थे कि ट्रेड सेंटर पर एक भारी विस्फोट हुआ था। इसका आशय यह है कि जब तक कोई बम विस्फोट नहीं हो जाता, तब तक हम नहीं समझते कि आतंकवाद क्या है। आतंकवाद के कारण,
भारत- पूरी दुनिया बड़ी समस्याओं का सामना कर रही है। इसे बहुत अधिक पीड़ा हो रही है।
हमने चालीस वर्ष तक इस समस्या का सामना किया है। और इस समस्या की कोई सीमा नहीं है। यह किसी देश का अनुसरण नहीं करता। और यह यह भी नहीं जानता कि यह कब और किस देश में जाएगा। इसका अनुमान लगाना कठिन है। यह एक ऐसी विद्रूपता है जिसकी हम कल्पना भी
नहीं कर सकते, जब एक टीवी पत्रकार का गला रेत दिया जाता है। और हम 21वीं सदी में मानवता की बात कर रहे हैं। हमारे सामने ऐसा जघन्य अपराध किया जा रहा है। यह हम सबको हिला कर रख सकता है।
जब तक हम इसे समझ नहीं लेते, हम केवल कूटनीति के आधार पर आतंकवाद का समाधान नहीं कर सकते। आतंकवाद मानवता का दुश्मन है, और जो कोई भी मानवता में
विश्वास रखता है, उन सबको एकजुट होने की जरूरत है।
देशों की सीमाएं, जातिवाद, और सांप्रदायिकता ये सभी चीजें हैं जिन पर हमें जीत प्राप्त करनी है,
उनसे ऊपर उठकर हमें मानवता में विश्वास करना होगा,
और हम सबको खुद ही एकजुट होकर एक साथ खड़े होने की जरूरत है। केवल तभी हम आतंकवाद की समस्या का समाधान कर सकते हैं।
और इसके लिए, आतंकवाद की समस्या को चुनौती देने के लिए, चाहे जितने भी संसाधन हों, केवल एक ही
रास्ता है। और हमें उस एक मात्र रास्ते पर चलना होगा,और विश्व को उसे समझना चाहिए तथा जो सभी मानवता में विश्वास रखते हैं उन सबको हाथ मिलाना चाहिए। हम आतंकवाद को अलग-अलग तराजुओं पर
नहीं तौल सकते, जैसे कि यह अच्छा आतंकवाद है और यह बुरा आतंकवाद है। यदि जिस देश को मैं पसंद करता हूं उसमें आतंकवाद है, मैं परवाह नहीं करता,मुझे
केवल अपनी आंखें मूंद लेनी चाहिए। और यदि जिस देश को मैं नहीं चाहता उसमें आतंकवाद है, तो मुझे कुछ करना चाहिए।
नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए। आतंकवाद केवल आतंकवाद है। अच्छे अथवा बुरे आतंकवाद जैसी कोई चीज नहीं है। और यदि अच्छे और बुरे आतंकवाद जैसे ब्रांड हमने बना दिए तो आतंकवादी इसका फायदा उठाने लगेंगे। आज,
पश्चिमी एशिया की जो स्थिति हम देख रहे हैं, यदि पिछले तीन दशकों में हम देखें तो वहा समृद्धि थी। वे अर्थव्यवस्था में बहुत आगे थे,परंतु
अब देखिए क्या स्थिति है।
और यही कारण है कि यह- मानवता के दुश्मन ये काम होते हैं, उसके लिए दुनिया को मिलकर काम करना होगा, एक दूसरे के साथ मिल कर,और
केवल तभी हम मानवता को बचा पाएंगे,और जब मानवता अपने मार्ग पर चलती है तो हम प्रत्येक के लाभ और कल्याण की बात करते हैं।
हम उस परंपरा और उस दर्शन की बात करते हैं। हम वे लोग हैं जिन्होंने वैदिक में एक मंत्र सीखा था (अस्पष्ट)। वैदिक युग,जो यहां संस्कृत में कहा जा रहा है,
इसका आशय यह है कि हम वे लोग हैं जो यह चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति सम्पन्न हो,और शारीरिक रूप से स्वस्थ हो और प्रत्येक व्यक्ति सम्पन्न हो।
यह वह दर्शन है जिसके साथ हम बड़े हुए हैं। हम केवल यही नहीं कहते कि भारत में रहने वाले लोग समृद्ध हों। नहीं, हम इस बात में विश्वास नहीं रखते। और यही कारण है कि हम दुनिया की समृद्धि में विश्वास
रखते हैं और उसे चाहते हैं। और इसी विचार के साथ,
हम आगे बढ़ रहे हैं।
और मुझे पूरा विश्वास है कि भारत प्रगति की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा। हम पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। और मैं आप में से हर एक को आमंत्रित करता हूँ कि कृपया भारत आएं और उसकी यात्रा करें। यह देखने लायक,घूमने
लायक जगह है। यह मेरा मंत्र है। पर्यटन जोड़ता है। आतंकवाद तोड़ता है। यही कारण है कि मैं यह चाहता हूं कि हम सब एक साथ मिल जाएं और एक दूसरे की ओर देखें और एक दूसरे को जानें। और जब हम एक दूसरे को बेहतर ढंग से जानेंगे,
उतने ही बेहतर हमें लाभ मिलेंगे।
मुझे आप सबके बीच आने, आप सब से मिलने का अवसर मिला। मैं आप सबका आभारी हूँ। आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद।
अध्यक्ष : अब,मैं प्रधान मंत्री को इस संगठन के बारे में, विदेश संबंध परिषद के बारे में उदार
टिप्पणियों के लिए, मेरे बारे में कुछ ज्यादा ही उदार टिप्पणियों के लिए धन्यवाद देते हुए शुरू करना चाहता हूँ और मैं उन्हें इस क्षेत्र के असाधारण दौरे के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं अपने आपको यह सोचने
से नहीं रोक पा रहा हूँ कि भारत का रॉकेट उतने से भी कम समय में चन्द्रमा पर पहुंच गया होगा जितने समय में पिछले सप्ताह यह न्यूयॉर्क में क्रॉसटाउन गया,
परंतु यह यहां एक समस्या है।
महोदय, मैं एक प्रश्न के साथ शुरू करना चाहता हूँ, अर्थव्यवस्थाओं से,व्यापार से शुरू करना
चाहता हूं जो आप जानते हैं प्राय: आर्थिक विकास के प्रमुख लोकोमोटिव अथवा इंजिन माने जाते हैं। फिर भी, आपके प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत ने आगे न बढ़ने और तथाकथित व्यापार फेसिलिटेशन करार का अनुसमर्थन नहीं
करने का निर्णय लिया है।
और जैसा कि भारत फिलहाल एपेक और टीपीपी वार्ताओं से भी बाहर है। इसलिए क्या आप व्यापार के बारे में अपने विचार बता सकते हैं और क्या भारत की घरेलू राजनीति आपको उदार व्यापार एजेंडा पर आगे बढ़ने देगी?
प्रधान मंत्री : (माइक से दूर)
अनुवादक : कोई साथ-साथ अनुवाद नहीं (माइक से दूर)
अध्यक्ष : ठीक है, ठीक है।
प्रधान मंत्री : (माइक से दूर)
(अनजान) : कृपया क्या आप अनुवाद कर सकते हैं? कृपया क्या आप अनुवाद कर सकते हैं?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : .... और विश्व इस तथ्य को स्वीकार करता है कि हमें खाद्य सुरक्षा के प्रति सकारात्मक रूख अख्तियार करना होगा।
अध्यक्ष: क्या इन सज्जन के लिए हमारे पास यहां कोई माइक्रोफोन है? यहीं अभी। नहीं एक हमें यहां मिल गया है,सिर्फ बात का सार जानने के लिए,
और फिर मैं सोचता हूं कि हम यहां से साथ-साथ अनुवाद करते हुए आगे बढ़ेंगे।
प्रश्न : ठीक है।
अध्यक्ष : यह चल रहा है। यह चल रहा है।
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : ठीक है, धन्यवाद। भारत विश्व व्यापार संगठन के व्यापार फेसिलिटेशन करार के विरोध में बिल्कुल नहीं है।
व्यापार फेसिलिटेशन करार के संबंध में विश्व व्यापार संगठन के प्रति हमारी वचनबद्धता के प्रति हमारा विचार एकदम स्पष्ट है। हम यह भी भली-भांति स्वीकार करते हैं कि हमें इस करार पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय तथा शेष विश्व के साथ मिल कर काम करना है।
मैं व्यक्तिगत रूप से जनवादी नीतियों अथवा यहां तक कि जनवादी आर्थिक दृष्टिकोणों के भी विरूद्ध हूँ। परंतु हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत में गरीबों की संख्या बहुत अधिक है जिनकी खाद्य सुरक्षा की जरूरतों भोजन की उपलब्धता की जरूरतों को
अनदेखा नहीं किया जा सकता। परिणामस्वरूप मैंने सदैव इस बात को बनाए रखा है और भारत ने ऐसा कहा है कि खाद्य सुरक्षा और व्यापार फेसिलिटेशन को एक साथ मिलकर चलना चाहिए।
ऐसा नहीं हो सकता कि आप ऐसा पहले करें और हम बाद में कुछ और करें। अत: हम व्यापार फेसिलिटेशन के प्रति बहुत अधिक प्रतिबद्ध हैं, परंतु हमें साथ-ही-साथ यह भी सुनिश्चित करना है कि खाद्य सुरक्षा
के मोर्चे पर भी प्रगति हो।
अध्यक्ष :मेरा एक और प्रश्न है,मैं आर्थिक मामलों में यह प्रश्न उठाना चाहता हूँ,
जो बिजली से संबंधित है। जैसा कि मैं समझता हूँ, कई सौ मिलियन भारतीयों के पास पर्याप्त बिजली नहीं पहुंचती। और प्रश्न यह है कि बहुत सारे लोग यह प्रश्न करते रहते हैं कि ये लोग मध्यम वर्गीय जीवन का आनंद कैसे
ले सकते हैं,और इसकी प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। अर्थव्यवस्था जितना कार्बन उत्सर्जित करती है, उसका जलवायु परिवर्तन पर स्पष्ट नकारात्मक प्रभाव पड़ता है?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : यह सही है कि आजकल बिजली हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है। बिजली अब कोई ऐशो-आराम की चीज नहीं है। यह हमारे जीवन की जरूरत है। और चौबीसों घंटे,
हम प्रत्येक व्यक्ति के लिए चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अपने चुनाव घोषणा-पत्र में हमने ऐसा कहा है, और ऐसा हमने अपने एजेंडा में भी कहा है, कि आगामी पांच वर्षों में भारत के प्रत्येक गांव में चौबीसों
घंटे की बिजली, ऊर्जा आपूर्ति की जाएगी,और यह संभव है। और हमने
ऊर्जा क्षेत्र में जिस प्रकार काम किया है, हम स्वच्छऊर्जा पर बल दे रहे हैं। सौर
ऊर्जा के लिए हम रूफटॉप पॉलिसी बना रहे हैं। और इसके लिए,अब इस बात की कोई संभावना नहीं है कि भारत में बिजली की कमी रहेगी।
जहां तक जलवायु परिवर्तन का संबंध है, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि,जैसा कि मैंने पहले कहा है,जब
मैं गुजरात में था, अल गोर ने उस सच्चाई को अपनी पुस्तक में लिखा है। और मैंने‘कन्वीनिएंट एक्शन’ नामक एक पुस्तक
लिखी है। और मैंने यह पुस्तक पर्यावरण पर लिखी है। और पर्यावरण अनुकूल कार्य किया जा सकता है, जो राजनैतिक इच्छाशक्ति से संभव है, और मैंने यही उस पुस्तक में साबित
किया है।
और यही कारण है कि विकास और पर्यावरण आपस में शत्रु नहीं हैं। यदि आप ऐसा सोचते हैं,तो यह गलत है। हम अभी भी इसे सावधानीपूर्वक स्ट्रीमलाइन कर रहे हैं और इसे कारगर बना
रहे हैं।
अध्यक्ष: महोदय, कई प्रकार से,जनसंख्या के मामले में,
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम देश है। केवल इंडोनेशिया इससे बड़ा है। और जैसा कि आप जानते हैं, आपने यहां देखा भी है, अमेरिकी लोगों ने आईएसआईएस ग्रुप द्वारा
पेश की गई चुनौतियों पर स्पष्ट रूप से काबू पाया है।
इसलिए, एक प्रश्न यह उठता है कि क्या आप अरब और मुस्लिम देशों के बड़े हिस्सों में फैल रही अशांति के भारत में भी फैल जाने के बारे में चिंतित हैं। और यदि आप थोड़े बहुत चिंतित हैं तो रेडिकलाइजेशन
और यहां तक कि हिंसा के प्रति भी आपके देश की संवेदनशीलता को कम करने के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : जहां तक भारत का संबंध है,चाहे कोई भी समुदाय का अथवा धर्म का व्यक्ति हो,
प्रत्येक व्यक्ति एक बुनियादी दर्शन से प्रेरित होता है। और भारत का दर्शन है- भारत का प्रतीक है- महात्मा- महात्मा गांधी, जहां हम अहिंसा में विश्वास रखते हैं। यह हमारे स्वभाव में है।
और आपने अवश्य देखा होगा कि हमारे देश में बहुत अधिक आतंकवादी घटनाएं हुई हैं। हम भी आतंकवाद से चिंतित हैं। परंतु इस आतंकवाद के भीतर, यह आतंकवादी गतिविधि हमारे देश के भीतर निर्यात की गई है। यह
हमारे देश में पैदा नहीं हुआ है। और यही कारण है कि भारत के मुसलमान- एक बार सीएनएन ने मुझसे पूछा था कि अलकायदा ऐसा-वैसा कह रहा था, और अब क्या होगा? और मैंने कहा था
भारत के मुसलमान अलकायदा के प्रयासों को विफल कर देंगे।
अध्यक्ष : हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा ही हो। अब मैं एक मिनट के लिए विदेश नीति पर आना चाहता हूँ, और फिर मैं इस बातचीत को खोल दूंगा,
शीत युद्ध के लिए, भारत की एक विदेश नीति गुट-निरपेक्षता की है, और सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का संदर्भ सदैव इसके साथ जुड़ा रहा
है। परंतु जैसा कि आप जानते हैं, और सभी जानते हैं,शीत युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व अब किसी गुट के सापेक्ष नहीं रहा है।
अत: भारत का दृष्टिकोण क्या है? जब इसकी विदेश नीति की बात आती है तो, शीत युद्ध के बाद के इस विश्व के प्रति भारत का बौद्धिक नजरिया क्या है?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : यदि हम 18वीं और 19वीं सदी की ओर जाएं, तो पूरा युग एक क्रांति का युग था। जो भी शासक रहा हो- उसका जो भी
पैरामीटर रहा हो, उसने विस्तार के लिए लड़ाई लड़नी चाही और यदि आप दोनों सदियों के इतिहास को देखें,तो यह क्रांति का,
लड़ाई का इतिहास है,और इसके बाद जो इतिहास आता है वह क्रांति है, वह समूहों का इतिहास है, एक समूह के विरूद्ध दूसरा
समूह है।
अब समय तेजी से बदल गया है। 21वीं सदी समूहों अथवा समूहवाद पर नहीं चलने वाली। अब वे अप्रासंगिक हो गए हैं। अब प्रत्येक देश स्वतंत्र है। दुनिया के प्रत्येक देश को एक दूसरे की जरूरत है। हम पहले ही एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जहां प्रत्येक
देश एक दूसरे पर निर्भर है।
और अब समूहों की मदद से नहीं बल्कि हमें सहअस्तित्व के साथ, सहअस्तित्व में विश्वास के साथ आगे बढ़ना और बढ़ते चले जाना है। हम भले ही ऐसा चाहें या न चाहें,
ऐसा पहले ही हो चुका है। और सभी देश, भले ही वे जी20 में हों, वे जी4 में भी होंगे। जो जी7 में हैं, जी9 में भी होंगे।
अत: आप देख सकते हैं कि ऐसा अकेला कोई समूह कभी नहीं हुआ। हर कोई हर जगह स्थान बनाना चाहता है। इसलिए दुनिया बदल गई है। हमें इस बात में विश्वास नहीं रखना चाहिए कि हमने पुराने समय में विश्वास रखा। और यह एक दूसरे पर निर्भर देशों की दुनिया है।
हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि यह एक दूसरे पर निर्भर देशों की दुनिया है। और हमने एक नए बदलाव को स्वीकार कर लिया है,और यही कारण है कि पुराने पैरामीटर अब काम नहीं करने वाले।
अध्यक्ष : यहां न्यूयॉर्क में इस बैठक के बाद, आप शीघ्र ही वाशिंगटन के लिए रवाना हो जाएंगे। आप रात को राष्ट्रपति से मिलेंगे। कल भी आप बैठकें
करेंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि एक शब्द आपको बार-बार सुनने को मिलेगा अमरीका-भारत संबंधों का वर्णन करने वाला वह शब्द है,भागीदारी।
अत: मेरा आपसे प्रश्न यह है कि क्या आप इस शब्द को सुनकर सहज रहते हैं,और यदि आप नहीं रहते तो जब भारत और अमरीका की बात आती है तो भागीदारी की आपकी परिभाषा क्या होती है?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : सबसे पहले तो मैं कहना चाहूँगा कियह आवश्यक नहीं कि हम प्रत्येक बात में सहज महसूस करें। यहां तक कि पति और पत्नी के बीच भी 100
प्रतिशत सहजता नहीं होती है।
अध्यक्ष : हम आपके उत्तर को यहीं छोड़ देते हैं।
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : परंतु इस सबके बावजूद,बहुत लंबे समय तक रिश्ते बने रहे। कुछ चीजें हैं जो भारत
और अमरीका को जोड़ती हैं। सबसे बड़ी चीज है,प्रजातंत्र,खुलापन। खुलापन, जो हम समाज में
देखते हैं,जो हम दोनों देशों की संस्कृतियों में देखते हैं। और तीसरी बात, आप अमेरिका में देखते हैं,
पूरा विश्व अमेरिका में आ बसा है। यह अमेरिका के चरित्र का एक हिस्सा है कि वह हर एक को अपने में समाहित कर लेता है।
और भारतीय पूरी दुनिया में बसे हुए हैं। इसी प्रकार, भारत में भी हर एक को अपने देश में समाहित कर लेने की ताकत है। इसलिए यह वह विशेषता है जो हमें जोड़ती है,
हमें मिलाती है।
तीसरी बात है, अर्थव्यवस्था। आप जानते हैं, यह संबंध व्यापारिक संबंध है। कभी-कभी यह आपके लिए फायदेमंद होता है,
कभी-कभी यह आपके संबंधों के लिए फायदेमंद होता है। यह एक आदान-प्रदान का सूत्र है जिसके आधार पर हम काम करते हैं। परंतु दोनों देशों की प्रजातंत्र में आस्था है, प्रजातंत्र के प्रति सम्मान है जो हमें जोड़ता है।
अध्यक्ष : हमने कुछ मिनट विलंब से शुरू किया था, यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो हम कुछ मिनट और बात करेंगे। और विदेश संबंध परिषद की परंपराओं में से
एक यह है कि हमारे सदस्यों को कुछ प्रश्न पूछने का अवसर दिया जाता है। मैं पुन: यह बात कहता हूँ कि इस संगठन के बारे में आप असाधारण रूप से उदार रहे हैं।
अत: क्यों न मैं उनसे मुखातिब होऊँ? ये प्रश्न उन प्रश्नों से कठिन होंगे जो मैंने पूछे थे,अत: मैं आपको आगाह कर देना चाहता हूं। केन जस्टर,
मैंने देखा था कि आपके पास कोई प्रश्न था- यदि आप लोग माइक्रोफोन के लिए प्रतीक्षा करें और अपनी बात कम से कम शब्दों में कहें और अपना परिचय दें।
प्रश्न : नमस्कार। वारबर्ग पिनकस फर्म से मैं,केन जस्टर। मैं अमरीका और भारत के बीच भागीदारी के बारे में केवल रिचर्ड के अंतिम प्रश्न को आगे
बढ़ाना चाहता हूँ। आपने उन सब बातों का वर्णन किया जो हमारी समान विशेषताएं हैं,परंतु जो आपने सुना है, या आप कल सुनेंगे वह शब्द है,
कूटनीतिक भागीदारी। और क्या उस भागीदारी के लिए आपकी कोई भावी योजना है और अमरीका और भारत वैश्विक मुद्दों तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर किस प्रकार मिल कर काम कर सकते हैं?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) :भारत और अमरीका मिलकर, एक बात यह है कि हम शांति स्थापना की दिशा में काम कर
रहे हैं। परंतु आर्थिक विकास के संबंध में, हम यहां होने वाले अनुसंधान के बारे में बैठक में बात करेंगे, उस अनुसंधान के बारे में बात करेंगे कि किस प्रकार उसका उपयोग
किया जा सकता है। संभव है कि इसका उपयोग, भारत की तरह, अन्य देशों द्वारा किया जाए, और यह भी संभव है कि इसे पूरी
पृथ्वी पर किया जाए,जहां इसकी अधिक उपादेयता है, हम उस पर भी काम कर सकते हैं।
और दुनिया के प्रति हमारा नजरिया क्या है,दुनिया के प्रति हमारा दृष्टकोण कैसा है, जो केवल उपयोग पर आधारित न हो। मेरा अभी भी यह मानना है कि अमरीका
और भारत अमरीका के लाभ के लिए भारत के संबंध और अपने स्वयं के लिए अमरीका के संबंध, ऐसा सोचने के बजाय, हमें ऐसा सोचना चाहिए कि हम एक दूसरे के लाभ के लिए किस प्रकार
मिल कर काम कर सकते हैं। और यदि हम ऐसा कर पाएं तो हमारी ताकत पूरी दुनिया के लिए बहुत फायदेमंद होगी। और आज जब मैं मिस्टर केरी से मिला था, तब इस बात को मैंने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया था।
अध्यक्ष : क्या अफगानिस्तान ऐसा क्षेत्र है, जहां हम मिलकर किसी उपयोगी तरीके से काम कर सकते हैं? क्या अफगानिस्तान उन चुनौतियों में से एक है
जिन पर हम काम कर सकते है?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : अफगानिस्तान एक बहुत बड़ा उदाहरण है। यह वास्तव में यह एक उदाहरण है। भारत के बहुत सारे लोग अफगानिस्तान में रहते हैं,और
एक तरीके से यह अफगानिस्तान और भारत की भागीदारी है, इसने- अफगानिस्तान ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। और यहां तक चाहते हैं कि अफगानिस्तान में स्थायित्व हो और लोकतांत्रिक व्यवस्था हो। इसे अपने विकास की यात्रा
पर चलना चाहिए।
और सुरक्षा के जिन उपायों पर अमेरिका ने मदद की है, उन्होंने वहां स्थायित्व पैदा किया है। और आज भी चुनाव के बाद बनी नई सरकार में भी हमारे प्रयास ये रहे हैं कि हमने सरकार और लोगों के बीच समन्वय
स्थापित करने के प्रयास किए। और भारत तथा अमेरिका ने वहां यह समन्वय स्थापित करने के लिए काम किया है और प्रयास किए हैं।
और अफगानिस्तान अच्छे परिणाम की दिशा में अग्रसर हुआ है। परंतु हमने अमेरिका से आग्रह किया है कि सुरक्षा हटाने के विषय में कृपया वही गलती न दोहराएं जो आपने इराक में की थी, क्योंकि इराक से तुरंत
इस प्रकार सुरक्षा हटा लेने से आप सब जानते हैं वहां क्या हुआ है, अत: अफगानिस्तान से सुरक्षा हटाने की प्रक्रिया बहुत धीमी होनी चाहिए, उसे अपने पैरों पर खड़ा होने
दीजिए, और केवल तभी वह वहां अपने सिर पर तालिबान के पैदा होने को रोक पाएगा। यही कारण है कि अमरीका और भारत ने अफगानिस्तान में समृद्धि लाने के लिए मिलकर काम किया है।
अध्यक्ष : प्रो. कोहेन, जो इस देश के चीन संबंधी मामलों के अग्रणी विशेषज्ञ हैं।
प्रश्न : श्रीमान प्रधान मंत्री, आपने जून में दुनिया के लिए एक प्रशंसनीय उदाहरण पेश किया जब आपने समुद्र न्यायाधिकरण के कानून का विवाचन निर्णय
स्वीकार किया, यद्यपि यह बांग्लादेश के साथ विवादित बंगाल की खाड़ी से संबंधित था। क्या आप चीन के साथ अपनी भूमि और सीमा संबंधी समस्याओं को विवाचन अथवा न्याय-निर्णयन के लिए प्रस्तुत करना चाहेंगे? चीनी सरकार
ने अभी तक तो विवाचन अथवा न्याय-निर्णयन की उपादेयता को खारिज किया है। अब फिलिपीन्स चीन की परीक्षा ले रहा है। क्या भारत भी ऐसा ही कुछ करने का इच्छुक है?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : चीन और भारत दोनों बातचीत के माध्यम से समाधान करने में सक्षम हैं। चीन और भारत सीधी बातचीत कर रहे हैं,और
इसी वजह से किसी पृथक विवाचन की कोई जरूरत नहीं है। और चीन के साथ मेरे व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। चीन के राष्ट्रपति यहां आए थे,मुझसे मिले थे और मेरा मानना है कि हां,सीमा
पर विवाद है। और अनेक बातों में, हमने जिनके बारे में बातचीत की है और हम इसे आगे बढ़ाएंगे,परंतु हम दोनों का मानना है कि हम एक साथ बैठकर समाधान कर सकते हैं। यही
कारण है कि हमें किसी विवाचन की जरूरत नहीं है।
अध्यक्ष : जी, महोदया?
प्रश्न : (माइक से दूर)
अध्यक्ष : यह चल रहा है।
प्रश्न : यह चल रहा है। नमस्कार। मैं टेरा लॉसन-रीमर, पहले इसी परिषद में फैलो थी और अब‘आवाज’
में कानूनी एवं अभियान निदेशक हूँ, जो दुनिया भर के 38 मिलियन सदस्यों वाला एक नागरिक संगठन है। आपने प्राय: कहा है कि महिलाओं की अस्मिता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। अत: भारतीय महिलाओं की असीम क्षमताओं
तथा दिनोंदिन उनके सामने आने वाली चुनौतियों के चलते,लिंग-आधारित हिंसा एवं असमानता को समाप्त करने के लिए आपका मेड इन इंडिया के लिए क्या दृष्टिकोण है? क्या आपकी
सरकार किसी प्राइम मिनिस्टरियल कार्यबल अथवा कोई अन्य मील का पत्थर स्थापित करने की संभावनाओं को तलाश कर रही है जो इतने अधिक लोगों के जीवन से जुड़े इस मूलभूत मुद्दे पर एक वैश्विक नेतृत्व प्रदान करे?
अध्यक्ष : यह आपके विदेश मंत्री और विदेश सचिव दोनों का परिचय कराने का भी अच्छा समय हो सकता है।
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : मैं आपका आभारी हूँ कि जो पहल मैंने की है,आपने उसके बारे में बात की। दुनिया के ऐसे बहुत से हिस्से हैं
जहां का मुखिया कोई महिला नहीं बन सकती। ऐसे बहुत से स्थान हैं- देश हैं जहां कोई महिला राष्ट्रपति अथवा प्रधान मंत्री नहीं बन सकती।
परंतु भारत और एशियाई देश ऐसे हैं जहां महिला प्रधान मंत्री और (अस्पष्ट) की अध्यक्ष रही हैं। मेरी विदेश मंत्री महिला हैं,सुश्री सुषमा स्वराज। वे यहां बैठी हुई हैं।
मेरी विदेश सचिव भी महिला हैं, सुजाता सिंह। और मेरे मंत्रिमंडल में 25 प्रतिशत महिलाएं हैं। वे कैबिनेट मंत्री हैं।
परंतु इतना ही नहीं है। महिला सशक्तीकरण के लिए, सबसे पहली और प्राथमिक चीज है बालिका शिक्षा। हम बालिका शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और मैं गुजरात के अपने अनुभवों को बांटना चाहता हूँ। जब मैं गुजरात
का प्रधान मंत्री था, जब मुझे बालिका शिक्षा के बारे में पता चला, जब मैं पहली बार मुख्य मंत्री बना,मेरे लिए यह
बात बहुत पीड़ादायक थी कि बालिका शिक्षा की स्थिति ऐसी थी कि स्कूल 15 जून को शुरू होते हैं, और उस समय वहां तापमान 45 डिग्री होता है। यहां 24 डिग्री होता है तो आपको बहुत गर्मी लगती है,
और हम वहां 45 डिग्री में रह रहे हैं।
इसलिए 13, 14 और 15 जून को मैं स्वयं गांवों में जाता, मेरे सभी कैबिनेट मंत्री मेरे साथ जाते। और मेरी विधान सभा के सभी सदस्य मेरे साथ जाते।
और मैं घर-घर जाकर लोगों से अनुरोध करता। और मैं उनसे कहता कि मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप कृपया मुझसे एक वादा करें कि आप अपनी पुत्रियों को पढ़ाएंगे,और मैं उन बालिकाओं को खुद स्कूल लेकर जाता,और
मैं शतप्रतिशत नामांकन कराने में सफल रहा। यह 100 प्रतिशत नामांकन था जिसे प्राप्त करने में मैं सफल रहा।
मैं यहीं नहीं रूका। मैं जहां कहीं भी गया, एक सार्वजनिक समारोह होता, लोग मुझे उपहार देते। और मैंने उन उपहारों की नीलामी करवाई। इस प्रकार जब मैं
गुजरात से बाहर आया तब उस नीलामी से मुझे 78 करोड़ रूपये मिले। और मैंने उस उपहार को बालिका शिक्षा के लिए सरकार को दिए गए उपहार के रूप में काम में लिया।
इस प्रकार, यह मेरी सरकार का एजेंडा है। अपनी पुत्रियों को पढ़ाएं और अपनी पुत्रियों को बचाएं। और हम उस दिशा में काम कर रहे हैं। दुनिया में ऐसे अनेक देश हैं,
जहां मतदान का हक प्राप्त करने के लिए महिलाओं को बहुत सी क्रांतियां करनी पड़ी। यहां तक कि विकसित देशों में भी मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को लड़ाई लड़नी पड़ी। परंतु भारत में, चाहे कोई भी निकाय
हो, महिलाओं को चुनाव में 30 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। 30 प्रतिशत महिलाओं का चुनाव करना अनिवार्य है। हम ऐसे भविष्य की सोच रखने वाले देश से हैं।
अध्यक्ष : फारूख कथवारी?
प्रश्न : मैं फारूख कथवारी, एथान एलन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मेरा जन्म (अस्पष्ट) कश्मीर में हुआ था। आपने जम्मू और कश्मीर की बाढ़
का जिक्र किया। इसलिए हमारे परिवार वास्तव में बहुत अधिक और बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इसलिए मेरा प्रश्न और स्पष्ट अनुरोध यह है कि भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय संगठनों को आने देना चाहिए। मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों को आने देने में बड़ी मात्रा में
नौकरशाही है।
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : सबसे पहले मैं बता दूँ कि दुनिया के कई देशों ने जम्मू और कश्मीर के लिए मदद भेजी है। जब गुजरात में भूकंप आया था,तब
भी हमें बहुत सारी सहायता प्राप्त हुई थी,और पूरी दुनिया में यह बहुत अच्छी बात है कि कहीं भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो सभी देश मदद भेजते हैं। जब पाकिस्तान
में भूकम्प आया था, तब मैं मदद करने वाला पहला था, क्योंकि मैं गुजरात में था, पड़ौस में था,
और हमने पाकिस्तान को मदद भेजी। यह वह बात है जो मनुष्य होने के नाते करनी चाहिए।
अध्यक्ष : मैं जल्दी से एक छोटा सा प्रश्न पूछना चाहता हूं,क्योंकि मैं जानता हूँ कि हम तय समय से आगे निकल गए हैं,जब
से आपको यह जिम्मेदारी मिली, तब से आपको चार माह हो गए हैं। क्या भारत में अथवा किसी अन्य देश में ऐसा कोई नेता है जिसने ऐसा आदर्श स्थापित किया हो जिसके बारे में आप कह सकें कि प्रधान मंत्री के रूप में मैं उनका
अनुसरण करना चाहूँगा?
प्रधान मंत्री (अनुवादक के माध्यम से) : यदि मैंने ऐसा कहा तो वह अनेक लोगों के साथ अन्याय होगा,क्योंकि ऐसे बहुत से
लोग हैं और मैं प्रत्येक व्यक्ति से बहुत कुछ सीखता हूं। यदि मैं आपको एक नाम बता दूँ,तो पचास और लोग नाराज होंगे। इसलिए सभी लोग अनुभवी हैं, और मुझे हर एक व्यक्ति
से कुछ न कुछ सीखना है। और हर एक से सीखने के बाद आपको मेरे देश जाना पड़ेगा। इसलिए जो भी श्रेष्ठ है, उसे मुझे अपने देश में लेकर आना है।
अध्यक्ष : श्रीमान प्रधान मंत्री, मैंने आपसे यह सीखा कि किसी प्रश्न का उत्तर फिलहाल किस प्रकार न दिया जाए।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
समाप्त