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भारत की मदिरा के लिए प्रतिष्‍ठा बढ़ रही है

दिसम्बर 02, 2011

द इंडिपेन्‍डेन्‍ट : इनजोली लिस्‍टॉंन

यूनाइटेड किंगडम में हाल के वर्षों में सभी महान आहार और पेय में कढ़ी और बीयर की जोड़ी बनाना उसे प्रिय रहा है। यद्यपि मिर्च और मसालों के लिए उचित प्रशंसा प्राप्‍त किये जाने के बावजूद भी भारतीय बीयर को अब शायद अपने रसीले चचेरे भाई भारतीय मदिरा के साथ प्रतिस्‍पर्धा करनी होगी

भारत ने गत वर्ष 13.5 मिलियन लीटर से अधिक का मदिरा उत्‍पादन किया था (यू के से 5 गुना अधिक) और यद्यपि यह दशकों से करता आ रहा है परन्‍तु इस वर्ष प्रथम बार इसने वास्‍तव में मदिरा प्रेमियों पर बौछार कर दी है।

ऋतु वायोग्नीयर 2010 और लाल जम्‍पा सीराह 2008 उस समय ताखों से उड़ गयीं थीं जब वैट्रोज प्रथम बार यू. के. में एक विशेष संवर्धन काल की अवधि, अगस्‍त ceuमाह में भारतीय मदिराओं के भण्‍डार का सुपर बाजार बना था और ऋतु को एक ऐसी सफलता मिली थी कि सुपर बाजार की ऑंनलाइन शाखा अब स्‍थायी रूप से इसका भण्‍डारण कर रही है। लंदन के मदिरा मेले में प्रथम बार भारतीय उत्‍पादकों की सशक्‍त उपस्थिति देखी गयी थी और सूला वाइनयार्ड की सौविगनॉंन ब्‍लैने 2010 जिसे महाराष्‍ट्र के नासिक में उत्‍पादित किया गया था, को वर्ष, 2011 के सुप्रसिद्ध डिकैंटर वर्ल्‍ड वाइन ऑंवार्ड के स्‍वर्ण पदक से पुरस्‍कृत किया गया था।

आलोचकगण नये आगन्‍तुकों के प्रति शीघ्रता से उत्‍साह में कमी व्‍यक्‍त कर सकते हैं और अनेकों कह सकते हैं कि इसकी हाल की सफलता के एक हिस्‍से में नवीनता एक उल्‍लेखनीय भूमिका निभा रही है परन्‍तु भारतीय मदिरा के पास भी अपने चैम्पियन्‍स हैं जो लंदन के भारतीय भोजनालय मोती महल में 150 बोतल मदिरा की सूची के प्रभारी परिचारक जोल्‍टन कोरे से कम नहीं हैं। इस सूची में दो भारतीय मदिरायें सम्मिलित की गयीं हैं एक 2009 की सौविगनॉंन ब्‍लैंक जो बंगलूरू के निकट नंदी हिल्‍स के ग्रोवर वाइनयार्ड से है और दूसरी 2010 की शिराज़ महाराष्‍ट्र के नासिक शहर के निकट सूला एस्‍टेट से है जो बहुतों की जैसी नहीं प्रतीत नहीं हो सकती है परन्‍तु इसके दो नाम, यू. के. के भोजनालयों में बहुसंख्‍यक से अधिक है।

‘‘मैं कहूँगा कि हमारे 90 प्रतिशत अतिथियों ने भारत की मदिरा को कभी भी चखने का प्रयास नहीं किया होगा और उन्‍हें यहां तक कि आश्‍चर्य हो रहा है कि भारत भी मदिरा बनाता है'' श्री कोरे कहते हैं। उनका मत है कि भारतीय मदिरा को परोसने से भोजनालय की प्रामाणिकता और कुछ इस प्रकार का बोध होता है जो अतिथियों के लिए सामान्‍य से हट कर है परन्‍तु उन्‍होंने जोर दिया था कि इन दो मदिराओं को लेकर चलने का प्रमुख कारण यह है कि मैं इन्‍हें ‘‘असाधारण'' मानता हूँ। ‘‘अपने अतिथियों से प्राप्‍त की गयी प्रतिपुष्टि यह दर्शाती है कि यह प्रभावकारी मदिरायें हैं। मूल्‍य के संदर्भों में वे प्रवेश स्‍तर पर हैं परन्‍‍तु गुणवत्‍ता के संदर्भों में वे अछूती हैं'' वे कहते हैं।

श्री कोरे, ताजगी भरी पुष्‍प गंधीय, चरपरी, अम्‍मलीय श्‍वेत मदिरा को मछली से बने व्‍यंजनों के साथ पीने की संस्‍तुति करते हैं और कहते हैं कि चेरी के तर्ज पर सुस्‍वादिष्‍ट लाल मदिरा भली-भांति मसालेदार गोश्‍त, विशेष रूप से भुने हुए कटे मेमने को तंदूरी ओवन में चारकोल के ईंधन से पका कर तैयार किये गये मांस के साथ संपूर्ण रूप से ध्रूममय स्‍वाद का पूरक है।

उन्होंने जोर देकर कहा था कि यह भोजन में ना तो मसालों का अतिक्रमण करता है और ना ही विभिन्‍न स्‍वादों की मेजबानी में आसानी से टक्‍कर लेता है जो उसे किसी भी ‘‘फ्रेंच अथवा इटैलियन मदिराओं को चुनौती देने के लिए समर्थ बनाता है''।

भारत में अधिकॉंश वाइनयार्ड पश्चिम महाराष्‍ट्र में हैं जहां के ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र उनके लिए उचित स्थिर एवं अनुकूल सूक्ष्‍म जलवायु प्रदान करता है जो उन्‍हें प्रतिकूल मौसम की परिस्थितियों का सामना करने के लिए आश्रय देता है और ठण्‍डी हवा प्रदान करता है। यही वह स्‍थान है जहां पर भारत की एक सर्वाधिक व्‍यवस्‍थि‍त मदिरा उत्‍पादक कंपनी ‘सूला' आधारित है। दूसरी मदिरा उत्‍पादक कंपनी ‘ग्रोवर' दक्षिणी प्रान्‍त कर्नाटक के नंदी हिल्‍स पर स्थित है जो वर्षा ऋतु के जलपात से मात्र संयत रूप से प्रभावित होता है और यहां के तापमान से लाभांवित है जो सामान्‍य रूप से मात्र 10 और 29 डिग्री के बीच होता है।

भारतीय वाइनयार्ड अधिकॉंशत: फ्रेंच, इटैलियन और तुर्की के अंगूर प्रजातियों की खेती करते हैं जिसके बारे श्री कोरे कहते हैं कि इस प्रकार से यहां की मिट्टी और जलवायु से पुरानी शैली पर ‘‘एक नये मोड़ के स्‍वाद का सृजन होता है''।

यद्यपि, श्री कोरे मानते है कि सभी भारतीय मदिरायें इसके जैसी अच्‍छी नहीं होती हैं जिनका वे अपने व्‍यंजन सूची में सम्मिलित करने का समर्थन करते हैं : ‘‘मैं अन्‍य (भारतीय मदिराओं) के प्रति उत्‍सुक नहीं हूँ क्‍योंकि वे वास्‍तव में अपनी यात्रा की शुरुआत कर रहीं हैं परन्‍तु उनमें से कुछ अत्‍यधिक संभावनाओं से भरे होने का संकेत देती हैं''।

‘‘बोर्डेयाक्स के परामर्शदाता माइकल रोलैण्‍ड, जो 16 वर्षों से अधिक समय तक ‘ग्रोवर' के परामर्शदाता रहे हैं ने हाल ही में कहा था कि भारत ‘‘अच्छी मदिरा का उत्‍पादन कर सकता है परन्‍तु महान मदिरा का नहीं''। बंगलूरू से प्रकाशित होने वाली पत्रिका सोमेलियर इण्डिया के श्री आलोक चन्‍द्र कहते हैं कि चूँकि भारतीय मदिरा उद्योग वर्तमान में ‘‘संघीय शासन और निवेश की कमी तथा कर (कुछ प्रान्‍तों में 300 प्रतिशत तक) तथा ऊँची लागत आदि से बाधित है''। उनका मत है कि मात्र भारत के विकसित हो रहे मध्‍य वर्ग के संभावित मांगों के घनत्‍व से श्री कोरे द्वारा किये गये वायदों को पूरा करने को सुनिश्चित नहीं किया जा सकेगा। उपलब्‍ध ऑंकड़े श्री चन्‍द्रा के तर्क का समर्थन करते हैं।

भारत में मदिरा का उत्‍पादन वर्ष 2003 से 300 प्रतिशत तक बढ़ा है और 10 वर्ष पूर्व की तुलना में अब 30 अधिक मदिरा कंपनियां आ गयीं हैं जो प्रतिस्‍पर्धा का एक व्‍यापक बोध करा रही हैं।

श्री चन्‍द्रा ने तर्क देते हुए कहा था ‘‘गुणवत्ता में सदैव सुधार आता रहता है,'' भारतीय तेजी से सीखने वाले हैं। इस अंतराल पर अब से 5, 10 और 20 वर्षों तक बस नजर रखिये''।

श्री चन्‍द्रा, ऋतु वायोग्नीयर के प्रशंसक हैं जो ब्रिटिश सुपर बाजार के खरीददारों के बीच बहुत लोकप्रिय सिद्ध हुई है। वे लूका एक्‍जॉंटिक लीची मदिरा की भी संस्‍तुति करते हैं जिसके बारे में वे कहते हैं कि ‘‘गेउर्जट्रैमिनर को स्‍मरण कराती है'', जिसकी मधुरता मसालों के सा‍थ काम करती है

वैट्रोज से मदिरा क्रय करने वाले श्री मट स्‍मिथ कहते हैं कि इस वर्ष भारतीय मदिरा द्वारा यू. के. में सफलता देखे जाने के बाद सुपर बाजार ‘‘भारतीय मदिरा उत्‍पादकों पर नज़र बनाये हुए है क्‍योंकि यह उद्योग विकसित हो रहा है''। इससे परिलक्षित होता है कि वह मात्र एक अकेल व्‍यक्ति नहीं हैं जो भारतीय बीयर को अब कढ़ी के साथ संगत करने के लिए इसके शीर्षक को सर्वोच्‍च स्‍थान पर रखते हैं।

(व्‍यक्‍त किये गये उपरोक्‍त विचार लेखक के व्‍यक्तिगत विचार हैं)

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