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Address by External Affairs Minister at inauguration of Bharat-ASEAN Maitri Park in New Delhi (January 24, 2018)

January 24, 2018

Excellencies;
Distinguished dais;
Meenakshi Ji, our Member of Parliament from this constituency;

Ladies and Gentlemen;


We have gathered here today to celebrate the dedication of this garden as Bharat-ASEAN Maitri Park. This is also, our own way of taking time from our demanding schedules to connect with nature.

Excellencies,

As Prime Minister, Shri Narendra Modi, has aptly observed, connecting with nature is to connect with ourselves, if we do so, we nurture a better planet.

It is a matter of fact that Indian culture places intensive faith and divinity in nature including rivers, mountains, lakes, animals, flora, the mineral world and the stars and planets. Our philosophy as well as spirituality has close bonds with nature.

Ayurveda which is increasingly valued as a complete health and medicine system is based on nature. Our architecture takes increasing cognizance of Vastu Shastra which emphasizes balance of natural elements in construction.

Excellencies,

Earth, is venerated as mother in Hinduism - as a life giver which nourishes and sustains us. Indeed our sages have always looked towards Mother Nature for inspiration.

It was under the Peepal Tree Prince Siddhartha attained nirvana and became Buddha - the enlightened one. It is therefore appropriate that we spend the culmination of the celebration of the silver jubilee of ASEAN India dialogue partnership in the midst of nature.

As we look back in celebration of 25 years of the ASEAN-India Dialogue Partnership, I feel inspired to compare our friendship to a garden where our relationship tree, rooted firmly in our historical and civilizational links, thrives and grows, through multi-sectoral activities.

As a tribute to this affinity, the name of this park is inscribed in all the official languages of ASEAN countries.

Excellencies,

Thank you for joining me in planting saplings representing the flora found in all ten ASEAN countries as well as in India. These saplings would reflect our shared commitment to protect the environment as well as symbolize the strong bond that India shares with the ASEAN.

Thank you.

Excellencies,


Now I would like to speak something in Hindi for my local audience.

मित्रों,

सबसे पहले तो मैं एनडीएमसी के चेयरमैन, एनडीएमसी के सदस्य और विशेष तौर पर इसी क्षेत्र की सांसद मिनाक्षी जी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूंगी कि जब जब हमने यानी विदेश मंत्रालय ने कोई बड़े आयोजन का फैसला किया है तब उन्होंने आकर हमें कहा कि अगर हम एक पार्क आपके इस आयोजन के निमित्त लोकार्पित कर दें तो आपको कैसा लगेगा?

तो मैंने कहा कि इससे ज्यादा बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता, मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करूँगी क्योंकि मेरा ये मानना है कि पार्कों को डेडीकेट करना, उनका नामकरण करना केवल रस्म निभायगी नहीं होती, मेरे लिए तो मिनाक्षी जी ये विदेश नीति को जन-जन तक ले जाने का माध्यम बनेगा. और मुझे ख़ुशी है हमने इंडो-अफ्रीका समिट की तो आपने एक पार्क का नाम उसके नाम पर रखवाया, हमने ब्रिक्स का आयोजन किया तो आपने एक पार्क ब्रिक्स के नाम डेडीकेट किया, अब हमे इंडिया-आसियान का आयोजन किया तो आपने एक पार्क उसके लिए डेडीकेट किया.

अभी आपने पीछे देखा जब प्राइम मिनिस्टर नेतान्याहू आये इजराइल के तो हमने तीन मूर्ति चौक का नाम बदल कर हाइफ़ा-तीन मूर्ति चौक रखा. उससे पहले जब शेख हसीना प्रधानमंत्री आयीं थीं तो हमने उनके पिता के नाम पर पार्क स्ट्रीट का नाम बंग बंधू रोड रखा, ये हम क्यों करते हैं? क्या केवल रस्म निभाने के लिए? नहीं. मैंने आपसे कहा था कि इससे विदेश नीति को मैं जन-जन तक ले जाऊँगी. आप कहेंगें एक पार्क के नामकरण से कैसे जन-जन तक ले जायेंगीं, मैं बताती हूँ.

जब एक छोटा पाँच साल का बच्चा अपने दादाजी की ऊँगली पकड़कर इस पार्क में आएगा और देखेगा भारत-आसियान मैत्री पार्क तो उसके मन में के जिज्ञासा जागेगी कि आसियान क्या है? एशिया तो मैंने सुना था क्योंकि हम खुद दक्षिण एशिया में रहते हैं पर ये आसियान क्या है, वो दादाजी से पूछेगा. हो सकता है वो बताने के लिए समर्थ हों, हो सकता है ना हों, तो घर जाकर बड़े भाई से पूछेगा. उसे भी नहीं पता होगा तो वो गूगल से सर्च करेगा और तब उसे पता चलेगा कि आसियान दक्षिण पूर्व एशिया के दस देशों के एक समूह का नाम है. उन दस देशों के नाम उसे पता चलेंगें और फिर उसे पता चलेगा कि इन दस देशों के साथ भारत के सदियों-सदियों पुराने सम्बन्ध हैं. ऐतिहासिक सम्बन्ध भी हैं और सांस्कृतिक सम्बन्ध भी हैं. तो ये मेरे लिए आज के लिए नहीं बल्कि एक स्थायी स्तम्भ बन गया. आज से दस साल बाद भी अगर कोई इस पार्क में घूमने के लिए आएगा और इसका नाम भारत-आसियान मैत्री पार्क देखेगा तो आसियान के बारे में उसकी जिज्ञासा जाग्रति होगी.

जिज्ञासु हर कोई होता है लेकिन जिज्ञासा को शांत करने के लिए उसकी जिज्ञासा जागृत करने के आवश्यकता होती है. ये पार्क उन तमाम लोगों की जिज्ञासा जागृत करेगा जो यहाँ से गुज़रेंगें और इसका नाम भारत-आसियान मैत्री पार्क के साथ साथ देखेंगें ये दस भाषाएँ किसकी हैं. और आजकल तो गूगल विश्व गुरु है, किसी से पूछने जाने की जरूरत ही नहीं, सबसे पढ़ा-लिखा आदमी दुनिया का गूगल है. आप एक बार सर्च करिए आपको पता चल जाएगा कि ये भाषा, अरे इसको तो भाषा ही कहते हैं, ये इंडोनेशिया की है. इंडोनेशिया में भाषा करके ही बोली को कहा जाता है, उनके बोली का नाम ही भाषा है. फिर वो थाई भाषा देखेगा, वो यद्दिम्स देखेगा, तो कितना ज्यादा उअर कितने लोगों तक ये बात पहुंचेगी, हमारा समारोह तो समाप्त हो जाएगा 26 तारीख़ को. हमारे ये समारोह समाप्त हो गए इंडो-अफ्रीका वाले, हमारे समारोह समाप्त हो गए ब्रिक्स वाले, नेतान्याहू आये और चले गए लेकिन एक हाइफ़ा का नाम तीन मूर्ति चौक में जो आपने जोड़ दिया, पता नहीं हजारों बच्चे उस दिन जाकर अपने गूगल पर जाकर उन्होंने हाइफ़ा की मोहर के बारे में पढ़ा होगा और पता लगा होगा की उस समय भारतीय सैनिकों ने हाइफ़ा के लिबरेशन वॉर में अपनी जान गँवाई थी.

इसलिए मैं बहुत-बहुत आपके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ और दूसरा मुझे ख़ुशी होती है कि मेरे स्वीकृति देने और आपके बनाने के बीच मुश्किल से महीने-डेढ़ महीने का अंतर होता है. तो मैं कहती हूँ कि एनडीएमसी में विश्वकर्मा बहुत हैं, ये पार्क 53 दिन में बनकर तैयार हुआ है. इसकी जो स्थिति आपने पहले देखि है वो आप जानते हैं और आज जो देख रहे हैं वो आप जानते हैं और अभी जो एक ऑफर किया है मिनाक्षी जी ने, मैं आपके ऑफर का स्वागत करती हूँ, निश्चित तौर पर हम दसों देशों से आपको दो से तीन फीट के स्कल्पचर्स ला करके देंगें जो आप हर जगह लगाइए ताकि जब बच्चे अन्दर आयें तो यहीं उन्हें पता चल जाए गूगल तक जाने की जरूरत ना पड़े. यही दस देश हैं जो आसियान देशों के समूह में शामिल हैं और ये इनके स्कल्पचर्स हैं.

इसलिए मैंने आपसे कहा कि ये कोई एक रस्म निभाई का छोटा आयोजन नहीं है, दिखने में छोटा जरूर लगता है लेकिन बहुत-बहुत महत्व का ये आयोजन है कि जब हमने पार्क को भारत-आसियान मैत्री पार्क कहा है और ये मैत्री कुल 25 वर्षों की नहीं है मित्रों जिसका हम रजत जयंती समारोह मना रहे हैं. ये मैत्री सदियों पुरानी है जो रामायण और बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है. अभी भी 20 तारीख़ से यहाँ रामायण उत्सव चल रहा है. दस में से आठ देश रामायण का मंचन करते हैं और वो कलाकार आये हुए हैं. कमानी ऑडीटोरियम में हर दिन एक देश की रामायण होती है. बौद्ध धर्म हमें जोड़ता है, रामायण हमें जोड़ती है, आसियान का इतिहास हमें जोड़ता है, संस्कृति हमें जोडती है इसलिए हमने जानबूझ कर इसका नाम भारत-आसियान मैत्री पार्क रखा, पार्टनरशिप डायलाग की कमेमोरेटिव समिट नहीं रखा. भारत आसियान मैत्री जो सदियों-सदियों पुरानी है उसको आज हम ये पार्क लोकार्पित कर रहे हैं. मेरे साथ सभी आसियान देशों के प्रतिनिधि यहाँ आये हैं, मैं उनके प्रति पुनः आभार व्यक्त करती हूँ और आप सबको शुभकामनाएं देती हूँ कि इस पार्क का रोज़-रोज़ आप भी लुत्फ़ उठायेंगें, ये लोग तो चले जायेंगें, लेकिन इसका आनंद आप लेंगें. आप उस आनंद के साथ-साथ भारत आसियान मैत्री को भी याद करके आनंद लीजिये. बहुत बहुत धन्यवाद!

नमस्कार!

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