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सेंट स्टीफंस कॉलेज में ‘भारत और विश्व व्यवस्था का पुनरुत्थान’ पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र में विदेश सचिव का आभासी संबोधन

सितम्बर 21, 2020

सबसे पहले, मैं सेंट स्टीफन कॉलेज को जहाँ मैंने शिक्षा पाई उस संस्था में मुझे बोलने का अवसर देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, यद्यपि यह आभासी रुप से है। मैं, व्यक्तिगत रूप से कॉलेज का दौरा करना चाहता हूं। दुर्भाग्य से, हमारी वर्तमान परिस्थितियाँ इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं। प्रिंसिपल प्रोफेसर जॉन वर्गीस और इस कार्यक्रम के आयोजक श्री ब्लेसन मैथ्यू को मैं विशेष रुप से धन्यवाद देता हूं। मैं शासी निकाय और सर्वोच्च परिषद के सदस्यों के साथ-साथ सेंट स्टीफन कॉलेज के संकाय को भी शुभकामनाएं देता हूं। मैं अपने साथी पूर्व छात्रों के साथ-साथ सेंट स्टीफन कॉलेज के वर्तमान छात्रों को भी शुभकामनाएं देता हूं जो इस सत्र में शामिल हुए हैं।

2. व्यक्तिगत स्तर पर मैं बहुत खुश हूं कि सेंट स्टीफन ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर एक नया सर्टिफिकेट कार्यक्रम शुरु किया है। काफी समय से मेरा यह विचार रहा है कि, क्योंकि हमारे देश का बाहरी जुड़ाव मजबूत है तथा वैश्विक स्तर पर देश के प्रति दृष्टिकोण में तेजी से बदलाव आ रहा है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर अधिक से अधिक अकादमिक रुप से ध्यान केंद्रित करना वांछनीय है। यह महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए सेंट स्टीफन कॉलेज को मेरी शुभकामनाएं। यह पहल इसलिए और अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि पाठ्यक्रम का संचालन नए सेंटर फॉर एडवांस लर्निंग में किया जाता है, जिसमें शासन के मुद्दों, नीति तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर ध्यान दिया जाता है।

3. मैं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर सर्टिफिकेट कोर्स के प्रतिभागियों को बधाई देना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु चयन प्रक्रिया कठीन है। मैं इसके लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

4. आज की मेरी टिप्पणी का विषय है "भारत और विश्व व्यवस्था का पुनरुत्थान''। यह आप जैसे दर्शकों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। आप में से कई पहले से ही वो काम कर रहे हैं जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों से संबंधित है और पाठ्यक्रम के कई प्रतिभागी आने वाले वर्षों में ऐसा ही करेंगे।

5. हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसकी दो प्रमुख विशेषताएं हैं। पहला यह है कि हम वैश्वीकृत हैं। हम ऐसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में रहते हैं, जो कई व्यवस्थाओं द्वारा कई स्तरों पर जुड़ा हुआ है। अर्थव्यवस्थाएं आपस में जुड़ी हुई हैं। हम जिस हवा में सांस लेते हैं और जो पानी हम पीते हैं, वह वैश्विक जन से तैयार होता है। प्रौद्योगिकी कोई सीमा नहीं है। हमारी शिक्षा तथा हमारा मनोरंजन वैश्विक सामग्री सहयोग से तैयार होती है। हमारे परिवार दुनिया भर में रहते हैं। कोई भी व्यक्ति, ऐसी नहीं है जो एकांत भूमि में रहता हो।

6. दूसरी अहम विशेषता परिवर्तन की दर है। जब मैं कॉलेज में था तब इंटरनेट और सेल फोन नहीं हुआ करते थे। ई-कॉमर्स, स्ट्रीमिंग मीडिया, सोशल मीडिया और ऐप भी नहीं थे। नवीकरणीय ऊर्जा, बायोटेक, स्वायत्त वाहन, आनुवंशिकी और कई उन्नत सामग्री इस वास्तविकता से बहुत दूर थीं जहां वे आज हैं। हाल के वर्षों में तकनीकी नवाचारों में जो वृद्धि हुई है और इससे हमारे जीवन में तथा हमारी चेतना में जो बदलाव आए हैं, उसका पूर्व में अनुमान लगाना तक मुश्किल था।

7. विशेष रूप से प्रौद्योगिकी द्वारा वैश्वीकरण तथा परिवर्तन आया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पहले ही तुलना में कुछ भी समान नहीं है। शासन तथा नीति-निर्माण के मूल तत्व अभी भी सतत हैं। सही उद्देश्य, खुले विचार, सीखने की इच्छा व सीखने की क्षमता, सुनने की क्षमता, अनुकूलनशीलता, परिश्रम और काम के प्रति लगाव आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि वे दशकों तथा सदियों पहले थे। लोक सेवकों और आप जैसे प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा इनको समान समझने की आवश्यकता है।

8. अंतर्राष्ट्रीय मामलों का अध्ययन और अभ्यास कला तथा विज्ञान दोनों है। यह विज्ञान इसलिए है क्योंकि इसमें तथ्यों का पता लगाने और उन्हें निश्चित करने की क्षमता की आवश्यकता होती है। यह कला इसलिए है क्योंकि इसमें अमूमन गैर-रैखिक तरीके से पैटर्न तथा पाठों का विभाजन शामिल होता है। इसके लिए अनुभव, अध्ययन, चिंतन आवश्यक है।

9. सार्वजनिक प्रशासन तथा प्रबंधन की तरह कूटनीति का अभ्यास भी कला और विज्ञान दोनों है। लोक सेवकों के रूप में हमारी प्रभावशीलता अंततः नीतिगत उद्देश्यों और प्राथमिकताओं को क्रियान्वित करने के हमारे कौशल पर निर्भर करती है।

10. मुझे लगता है कि आप इस पाठ्यक्रम में इसलिए भाग ले रहे हैं क्योंकि आप अंतरराष्ट्रीय संबंधों और अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर बहुत अधिक रुचि रखते हैं। मैं यह मानता हूं कि यह रुचि इसी मान्यता से जुड़ी हुई है कि बाहरी दुनिया, वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के माध्यम से, आने वाले वर्षों में हमें हर रोज प्रभावित करने वाली है। आप में से कई लोग, या हमारी राष्ट्रीय यात्रा के साथ वैश्वीकरण तथा परिवर्तन संबंधित ताकतों के को जोड़ने वाले बिन्दु पर काम कर सकते हैं।

11. इसमें तेजी से विस्तार होने वाला है। हम वैश्विक हितों वाले देश हैं। हमारे पास सबसे अधिक और सबसे सक्षम प्रवासी हैं। हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा कल्याण पूरी तरह से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ा हुआ है। हम अपनी विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी के साथ सेवा क्षेत्र के स्रोत हैं। हम दुनिया को आपस में जुड़े बाज़ार के साथ सीमाहीन अर्थव्यवस्था के रूप में देखते हैं।

12. यह गौर किया जाना चाहिए कि वैश्वीकृत दुनिया एक बहुत ही जटिल दुनिया है। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिवर्तन की दर हमारी दुनिया में अनिश्चितता के स्तर को बढ़ाती है। वर्तमान महामारी इनमें से कुछ जटिलताओं को रेखांकित करती है।

13. हम नए तथा अनिश्चित जोखिमों और खतरों का सामना कर रहे हैं, जैसा की हम अभी ऐसे खतरे का सामना कर रहे हैं। आतंकवाद, कट्टरपंथी विचारधारा और अंतरराष्ट्रीय अपराध साइबर क्राइम और जैविक खतरों ने सुरक्षा चुनौतियों के रूप में सभी के लिए एक हैं जिनकी कोई सीमाएं नहीं हैं।

14. अवसरों तथा खतरों के साथ अंतर्राष्ट्रीय मामलों का क्षेत्र, आने वाले वर्षों और दशकों में और बढ़ेगा। इस क्षेत्र और इसकी सामग्री के आयाम समय के साथ बदल जाएंगे लेकिन अंतरराष्ट्रीय मामलों के अध्ययन में आज आप जितना समय और परिश्रम कर रहे हैं, वह आपके बाकी कामकाजी जीवन में प्रासंगिक रहेगा।

15. अब मैं इनमें से कुछ प्राथमिकताओं और हमारे वर्तमान राजनयिक उद्देश्यों की बात करना चाहूंगा। भारत विश्व व्यवस्था में कहां खड़ा है, मैं ये बताने की कोशिश करुंगा।

16. इसकी शुरूआत इस बात से करता हूं कि अभी महामारी के बावजूद, भारत में हमारे जीवन में सुधार हेतु कई बदलाव हुए हैं। हम एक उभरती हुई शक्ति हैं, यह सच है और यही मेरा मानना भी​है। यह वास्तविकता तथा आकांक्षा दोनों है। यह एक वास्तविकता है क्योंकि हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। यह आकांक्षा इसलिए है क्योंकि हमने आगे बढ़ना जारी रखा है।

17. महामारी ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था या प्रणाली को बाधित किया है जिससे हमारा अधिकांश कामकाजी जीवन प्रभावित हुआ है। हम संप्रभुता की अवधारणा के चारो-ओर और सामान्य सिद्धांतों पर बने राष्ट्रों का एक समूह है जिसमें विवादों को शांति से हल किया जाना चाहिए तथा किसी अन्य राष्ट्र के मामलों में दूसरे द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। इसे अक्सर वेस्टफेलियन प्रणाली कहा जाता है। इस प्रणाली में संयुक्त राष्ट्र, ब्रेटन वुड्स संस्थान, विश्व व्यापार संगठन, जी20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का नेटवर्क शामिल किया गया है। हाल ही में इस प्रणाली को संप्रभुता से संबंधित विचारों को फिर से परिभाषित किया गया है और अंतर्राष्ट्रीय कानून, सरल कानूनों और मानदंडों जैसी अवधारणाओं पर बहुत ध्यान दिया गया है।

18. इस प्रणाली के तहत काम करना, इसे आकार देना और इसमें सुधार करना प्रमुख विदेश नीति की प्राथमिकता रही है। हम इस बहुपक्षीय प्रणाली में विश्वास करते हैं।

19. बहुपक्षीय कूटनीति नियमों पर आधारित होनी चाहिए। हम ऐसी अंतर्राष्ट्रीय क्रम हेतु प्रतिबद्ध हैं, जो नियमों पर आधारित हो।

20. हम यह भी मानते हैं कि वैश्वीकरण की विषय-वस्तु को बदलने की आवश्यकता है। हमारा मानना​है कि वर्तमान रुझानों और वास्तविकताओं को समायोजित करने हेतु बहुपक्षवाद में सुधार करना चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री ने ऐसे मानव-केंद्रित वैश्वीकरण की बात की है जो पूरे तरह से आर्थिक एजेंडा को हस्तांतरित करता है जिसने अब तक वैश्वीकरण को परिभाषित किया है। हम कोविड के बाद की दुनिया में निष्पक्षता, समानता और मानवता पर आधारित वैश्वीकरण का एक नए रूप लाना चाहेंगे।

21. हम लंबे समय से मानव कल्याण केंद्रित अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के आकार में रचनात्मक कर्ता रहे हैं। वैश्विक दक्षिण में हमारे पड़ोसी और अन्य साझेदार देशों के साथ व्यापक विकास सहयोग है। हमारे पड़ोस में, हम मानवीय संकटों के पहले प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में माने जाते हैं। हमने अपने निकटवर्ती क्षेत्र के अलावा भी मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्य किए हैं। प्राकृतिक आपदाओं के जवाब में, हमने इंडोनेशिया से लेकर मोज़ाम्बिक तक अपनी सहायता को बढ़ाया है। हमने मौजूदा महामारी के दौरान अपने कई दोस्तों और भागीदारों की मदद की है। हमने इंटरनेशनल सोलर अलायंस और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की शुरूआत की अगुवाई की है। संयुक्त राष्ट्र में, हमने अबतक की दो प्रतिष्ठित वैश्विक कार्यक्रमों, 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने कि पहल की है।

22. विकास की दौर सभी संकटों के बावजूद जारी रहा है। पहले के संकटों की तरह, अभी का संकट भी इसी तरह की प्रवृत्ति का होगा, ऐसी उम्मीद है। इस संदर्भ में, हमारी प्राथमिकता, प्रधानमंत्री के शब्दों में, भारत को "वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का तंत्रिका केंद्र" बनाना है। यह 'आत्मनिर्भर भारत' के उनके दृष्टिकोण के भी अनुरूप है। हम सक्रिय रूप से भारत को वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र और नवाचार गंतव्य के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं।

23. इन सभी संकटों के कारण भू-राजनीति में बदलाव आया है। हालांकि, कुछ चीजें कभी नहीं बदलेंगी। हमारी नीति का मूल दृष्टिकोण पड़ोस पहले है। बिम्सटेक जैसी पहलें पड़ोस पहले के रुप में हमारी विदेश नीति के अन्य मूल स्तंभ को शामिल करती हैं, यानि, एक्ट ईस्ट। हम कई माध्यमों से आसियान के साथ जुड़ाव बढ़ा रहे हैं। थिंक वेस्ट - हमारी खाड़ी और पश्चिम एशियाई देशों तक पहुंच - हमारी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है। राजनीतिक और आर्थिक, दोनों ही तरीकों से अफ्रीका के साथ हमारा जुड़ाव पहले की तरह अच्छा हो गया है। हमने स्वतंत्र, खुले और समावेशी क्रम के आधार पर, और संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, और अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों के आधार पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जुड़ाव हेतु अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया है।

24. हमने अपने प्रमुख द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान देना जारी रखा है।

25. हम अपने प्रवासी की सेवा करने और सार्वजनिक सेवाओं को वितरित करने की एक वैश्विक प्रणाली के निर्माण पर केंद्रित हैं।

26. आप में से कई लोगों ने 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम देखा होगा जो लगभग एक साल पहले ह्यूस्टन में आयोजित किया गया था।

27. अपनी बात के अंत में, मैं शासन कला में बड़े निर्णय लेने की प्रकृति के बारे में कुछ सामान्य बिंदुओं पर बात करना चाहूंगा।

28. सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि यह एक बहुत जटिल बहुस्तरीय और बहुआयामी ऑपरेटिंग वातावरण है। यह वह क्षेत्र हैं जिसे हम डेफिसिट ज्यामिति में संचालित करते हैं। संभवतः इसे बहु-पक्षीय बहुभुज के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मामलों में जटिल पैटर्न के संदर्भ में सोचने की क्षमता एक आवश्यक कौशल है।

29. दूसरी बात, शासन कला का प्रयोजन बाइनेरी में से एक नहीं है। शायद ही किसी के पास काले और सफेद के बीच चुनने की सुविधा है। एक को आम तौर पर धुंधला होता है, और ऐसा उप-इष्टतम विकल्पों के साथ करना पड़ता है।

30. तीसरा, इसमें वैश्विक और स्थानीय दोनों तरीके से सोचने की क्षमता की आवश्यकता होती है। इसके लिए समय-क्षेत्र, भौगोलिक और संस्कृतियों में मानसिक रूप से बहु-कार्य की क्षमता की आवश्यकता होती है, जबकि किसी की अपनी संस्कृति तथा पर्यावरण में निहित होती है।

31. चौथा, हम नैतिक वैक्यूम में नहीं रहते हैं। हम एक ऐसे राष्ट्र हैं जो "वसुधैव कुटुम्बकम" और "निष्काम कर्म" के सिद्धांत में विश्वास करते हैं, जो कि स्वयं के लिए किए जाने की जरूरत है। यही कारण है कि हमने मौजूदा संकट के दौरान "दुनिया की फार्मेसी" के रूप में काम करने की कोशिश की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 150 से अधिक देशों को दवाएं तथा आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति प्रदान की। उनके अनुरोध पर, महामारी से निपटने में सहायता हेतु कुवैत, मालदीव, मॉरीशस और कोमोरोस सहित कई देशों में तीव्र प्रतिक्रिया चिकित्सा दल भेजे गए हैं।

32. भारत ने महामारी के बीच, सुरक्षा प्रदाता से परे जाकर मदद की है। हमने इन कठिन परिस्थितियों में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में अपनी भूमिका को जारी रखने और दूरगामी विचार रखने का निर्णय लिया, जो हमें महामारी से जुझ रही दुनिया में अच्छे स्थान पर खड़ा करेगा। हमने मानवता को जिम्मेदार अंतर्राष्ट्रीय नागरिकता के रूप में वैश्विक समृद्धि तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग के केंद्र में रखा है।

33. मैं भविष्य के बारे में बात करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा। हम जानते हैं कि भविष्य अनिश्चित है। तो हम इस संबंध में क्या कर सकते हैं?

34. मैं कहूंगा कि हमें लगातार अनुकूलन और नवाचार करने हेतु तैयार रहने की जरूरत है। हमें लचीलापन तथा क्षमता का निर्माण करना चाहिए। हमें अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के संचालन में चुस्त व लचीला होना होगा।

35. हम बहुत तेजी से निर्णय लेने वाली संरचनाओं और तेजी से सजगता के साथ प्रभावी राजनयिक प्रतिष्ठान का संचालन चाहते हैं।

36. एक ऐसा समय था जब कूटनीति कुलीन वर्ग तक ही सीमित थी। यह एक प्रसिद्ध किंवदंती है कि यह कॉलेज भारतीय विदेश सेवा का प्रमुख सृजनकर्ता रहा है। हमारे कई अधिकारी ये कह सकते हैं कि यह वह संस्था है जहाँ उन्होंने शिक्षा पाई है। आज, सेवा विविध पृष्ठभूमि के अधिकारियों के साथ कहीं अधिक प्रतिनिधि है। यह कई वर्षों में हमारे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की सफलता को दर्शाता है। हम कूटनीति में भविष्य को देखने हेतु छात्र समुदाय में इसके प्रति अधिक रुचि हो, इसकी कामना करते हैं। इस संदर्भ में, मुझे सेवा क्षेत्र में सेंट स्टीफन कॉलेज के असाधारण पुरुषों और महिलाओं को आने की उम्मीद करता हूं।

37. मुझे आशा है कि मैं उस क्षेत्र के विस्तार की भावना को व्यक्त कर पाया हूं जिसका आप अपने पाठ्यक्रम में अध्ययन करेंगे। मुझे यह भी उम्मीद है कि मैं इस बात को व्यक्त करने में सक्षम रहा हूं कि भविष्य में आने वाली बड़ी चुनौतियों के लिए केवल सरकार के दृष्टिकोण की ही आवश्यकता नहीं होगी। इसके लिए पूरे समाज के दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। इसमें आप जैसे सुविज्ञ तथा कुशल पेशेवरों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है।

धन्यवाद।

नई दिल्ली
सितंबर 21, 2020

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