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द्वितीय निरस्त्रीकरण अध्येतावृत्ति कार्यक्रम के प्रारंभ होने के अवसर पर विदेश सेवा संस्थान में दिनांक 13 जनवरी,2020 को सचिव (पश्चिम) कामूल वक्तृत्व

जनवरी 13, 2020

राजदूत जे.एस. मुकुल, डीन, विदेशी सेवा संस्थान,
श्री इंद्र मणि पांडेय,अपर सचिव (निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामले),
प्रतिष्ठित प्रतिनिधिगण,
देवियो और सज्जनो,

मुझे आप सभी को द्वितीय वार्षिक निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के अध्येतावृत्ति कार्यक्रम में स्वागत करने और आपके साथ कुछ विचार साझा करने में बहुत खुशी हो रही है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में,भारत ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और पिछले वर्ष यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी l हमारे पास अपार वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग प्रतिभा है, और आप देख ही रहे हैं कि आज भारत दुनिया में क्या मायने रखता हैl आज, जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चुप्पी साधे हुए हैं, हमारी क्षमता अधिक से अधिक जिम्मेदारियां निभाने की है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इसका स्वागत भी किया है। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते जैसे प्रमुख वैश्विक वार्ताओं को आकार देने की भारत की इच्छा को व्यापक रूप से सराहा गया है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने न केवल वैश्विक सुरक्षा मामलों में हमारी भूमिका का स्वागत किया है, बल्कि यह इच्छा भी जताई है कि भारत को वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में अपनी भूमिका और योगदान बढ़ाना चाहिए।

हमारी विदेश नीति व्यावहारिक और परिणामोन्मुख है,जिसका उद्देश्य भारत की सुरक्षा को बढ़ाना, इसकी क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना,इसके आर्थिक रूपांतरण को बढ़ावा देना और उसे सुविधाजनक बनाना है।भारत ने मूल रूप से रणनीतिक स्वायत्तता के साथ, राष्ट्रीय हित में स्वतंत्र निर्णय लेते हुए, दुनिया की सभी प्रमुख शक्तियों के साथ अपने जुड़ाव को जारी रखा है।

21वीं सदी में, भू-आर्थिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र निर्णायक रूप से एशिया में स्थानांतरित हो गया है। हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ इस उद्देश्य को साझा करते हैं कि बहु-ध्रुवीय दुनिया के मूल में एक बहु-ध्रुवीय एशिया होना चाहिए। भारत का मानना है कि इसमें ऐसे राष्ट्र हैं जिनमें क्षमताओं, संबंधों और स्थिति का एक इष्टतम मिश्रण है जो उभरते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के कई क्षेत्रों का सनचालन करने की आकांक्षा रखते हैं।

हम मानते है कि हम केन्द्राभिमुखी और समस्या-आधारित व्यवस्था की दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं। विशिष्ट विषयों पर समान विचारधारा वाले राष्ट्रों के साथ मजबूत साझेदारी के निर्माण, अर्थात् मुद्दा आधारित सम्मिलन से महान शक्ति संबंधों के प्रबंधन, क्षेत्रीय पहुँच के विस्तार और हमारी वैश्विक जानकारी को बढ़ाने में सुविधा हुई है। भारत की 'पहले पड़ोसी' की नीति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है, जिसमें स्थिरता और समृद्धि के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद, जन-उन्मुख, क्षेत्रीय ढांचा तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। ‘पूरब में कार्य करने’ और 'पश्चिम पर ध्यान देने’ की नीतियां भारत के वैश्विक जुड़ाव के प्रमुख पहलू हैं।

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा करना भारत की विदेश नीति की अनिवार्य आवश्यकता है। हम भारत के लिए एक व्यापक सुरक्षा रणनीति विकसित करने में लगे हुए हैं, जिसमें आतंकवाद और उसे बढ़ावा देने वाली व्यवस्था सहित पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों तरह के खतरे शामिल हैं,जो भारत के विकास की आकांक्षाओं को मंद या समाप्त कर सकते हैं ।

हम आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरा मानते हैं। हम आतंकवाद को पूरी मानवता के खिलाफ और सभी सभ्य संस्थानों एवं संस्थाओं के लिए एक चुनौती मानते हैं। वैश्विक स्तर पर डाएश(आईएसआईएसए), अल-कायदा, लश्कर ए तोएबा जैसे आतंकवादी संगठनों के प्रसार और आतंकवाद के कृत्य में वृद्धि सीधे अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को खतरे में डालती है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और सतत वृद्धि एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए चल रहे प्रयासों को क्षति पहुंचाती है।

हम आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में उसका मुकाबला करने के लिए संकल्पित हैं। हमने आतंकवाद के सभी कृत्यों, तरीकों और प्रथाओं की स्पष्ट रूप से निंदा की है, जिन्हें किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता है, चाहे उनकी प्रेरणा कोई भी हो और वे जहां एवं जिसके द्वारा भी किए जाएं । हमने इस बात की पुष्टि की है कि आतंकवाद किसी भी धर्म, राष्ट्रीयता, सभ्यता या जातीय समूह से जुड़ा नहीं हो सकता है और न ही होना चाहिए।

भारत ने एक व्यापक दृष्टिकोण के आधार पर वैश्विक आतंकवाद के खतरे को दूर करने का आह्वान किया है जिसमें हिंसक अतिवाद का मुकाबला करना, कट्टरता और भर्ती का मुकाबला करना, आतंकवादी आंदोलनों को नाकाम करना, आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए सभी स्रोतों को रोकना, एफटीएफ(विदेशी आतंकवादी सेनानियों)के प्रवाह को रोकना,आतंकवादी ढांचे को नष्ट करना, और इंटरनेट के माध्यम से आतंकवादी प्रचार का मुकाबला करना शामिल है, लेकिन यहीं तक सीमित नहीं हैl

हमें आतंकवाद के प्रायोजकों और समर्थकों को तत्काल अलग-थलग करने की आवश्यकता है।आतंकवाद का समर्थन करने वाली सभी संस्थाओं और ऐसे राष्ट्रों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए जोइसका उपयोग राष्ट्र की नीति के एक साधन के रूप में करते हैं। भारत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सभी देशों से आसूचना साझाकरण, विधि प्रवर्तन, सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों के विकास, पारस्परिक विधिक सहायता, प्रत्यर्पण व्यवस्था, क्षमता निर्माण आदि में सहयोग बढ़ाने का आग्रह किया है ।

भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है-वैश्विक रणनीतिक स्थिरता के लिए खतरा,जिसका हम सामना कर रहे हैंlआईएनएफ संधि की समाप्ति के साथ, एक नई मिसाइल दौड़ का खतरा उत्पन्न हुआ है,जो विकास के लिए दौड़ की बढ़ती संभावनाओं और हाइपर ग्लाइड मिसाइलों एवं पानी के नीचे ड्रोन जैसी विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के कब्जे से बढ़ रहा है। सामूहिक विनाश के हथियारों सहित घातक हथियारों को विकसित करने में कृत्रिम आसूचना और स्वचालित अधिगम जैसी नई और उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग वैश्विक रणनीतिक स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बनकर उभरा है। न्यू स्टार्ट संधि के भविष्य तथा परमाणु शस्त्रागार एवं उनके वितरण प्रणालियों में और कमी की संभावनाएं चिंता का विषय है। सामरिक हथियार नियंत्रण में गतिरोध के मद्देनजर, भारत ने वैश्विक रणनीतिक स्थिरता के लिए इन चुनौतियों और अन्य संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कार्य करने का आह्वान किया है।

परमाणु हथियारों के समस्तरीय और शीर्ष प्रसार का एक बढ़ता खतरा भी है जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा। भारत ने परमाणु हथियारों के अप्रसार की दिशा में वैश्विक प्रयासों में बहुत योगदान दिया है। इसने सभी संबंधित पक्षों द्वारा जेसीपीओए के कार्यान्वयन के लिए अपना समर्थन बढ़ाया है। हमने कोरियाई प्रायद्वीप के अपरमाणुकरण और वहां शांति एवं सुरक्षा की स्थापना के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और डीपीआरके के साथ-साथ डीपीआरके और कोरिया गणराज्य के बीच वार्ता का भी समर्थन किया है। हम आशा करते हैं कि वैश्विक निरस्त्रीकरण मशीनरी को और मजबूत किया जाएगा जिससे कि वह परमाणु हथियारों के अप्रसार की चुनौतियों से निपटने में सक्षम हो सके और परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रगति हो, जिसका हम पूरा समर्थन करते हैं। हम परमाणु प्रसार को रोकने के उद्देश्य से की गई सभी पहलों का भी पूरा समर्थन करते हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण सुरक्षा-चुनौती साइबर स्पेस की सुरक्षा है l राष्ट्रीय और गैर-राष्ट्रीय तत्वों नेसाइबर स्पेस के लिए खतरा बढ़ा दिया है। आतंकवादियों द्वारा साइबर क्षेत्र का अधिक से अधिक उपयोग किए जाने का सबूत फेसबुक के जरिए क्राइस्टचर्च शूटिंग की लाइव स्ट्रीमिंग है। लोकतंत्र होने के नाते, हम इन खतरों से असुरक्षित हैं तथा मौजूदा तंत्र में सुधार करके और समय पर ठोस कार्रवाई करने के लिए नए-नए तरीके विकसित करके उनसे निपटने के लिए सहयोग की आवश्यकता है।

इंटरनेट ने भारत में आर्थिक विकास और विस्तारित नियंत्रण की पहुंच को सुगम बनाया है। साइबर स्पेस के उपयोगकर्ताओं की बहुलता के साथ-साथ हमारे बंदरगाहों, हवाई अड्डों, विद्युत्- ग्रिड, ई-गवर्नेंस प्रणाली और व्यवसाय जैसे महत्वपूर्ण आधारिक संरचना की साइबर प्लेटफ़ॉर्म पर बढ़ती निर्भरता के कारण हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम महत्वपूर्ण आधारिक संरचना की सुरक्षा से संबंधित समस्या का समाधान करेंl हमें उच्च स्तरीय अनुसंधान और विकास एवं क्षमता तथा कौशल निर्माण के लिए सहयोग की आवश्यकता है। हम भारत में 500,000 साइबर पेशेवरों का एक पूल बनाने की उम्मीद करते हैं,जो वैश्विक साइबर स्पेस क्षेत्र में सुरक्षा की दीवार के रूप में कार्य कर सकें।

मध्य पूर्व और खाड़ी क्षेत्र में बिगड़ती स्थिति, भारत के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण है। भारत वर्तमान में खाड़ी क्षेत्र से लगभग 20% कच्चे तेल का आयात करता है और लगभग 9 मिलियन भारतीय खाड़ी देशों में रहते हैं, काम करते हैं और व्यापार करते हैं। $70 बिलियन में से लगभग $ 40 बिलियन का प्रेषण अकेले खाड़ी क्षेत्र में रहने वाले अनिवासी भारतीयों द्वाराकिया जाता हैl खाड़ी और पश्चिम एशिया भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। खाड़ी क्षेत्र में किसी प्रकार के संघर्ष का भारत की सुरक्षा पर अत्यधिक प्रभाव होगा। अत: इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता भारत के लिए आवश्यक है।

प्राचीन काल से ही भारत एक समुद्री राष्ट्र रहा है। इसके समुद्री व्यापार, और समुद्री लेन की सुरक्षा भारत के लिए एक उच्च प्राथमिकता है। परस्पर सम्बद्ध समुद्री विस्तार का मूल तर्क आज हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के रूप में, स्वाभाविक और विकासवादी रूप से पुष्ट हुआ है। हिन्द -प्रशांत क्षेत्र में खाड़ी क्षेत्र के हमारे पश्चिमी महासागर पड़ोसी, अरब सागर के द्वीप देश तथा अफ्रीका और दक्षिण एवं पूर्वी एशिया के देशों के हमारे साझीदार शामिल हैं । प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 में सिंगापुर में शांगरी-ला वार्ता में अपने संबोधन में भारत के मुक्त, खुले, नियम-आधारित और समावेशी हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण का हवाला दिया था और मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप इस पर विचार करें । इस वर्ष नवंबर में बैंकॉक में 14वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में, प्रधान मंत्री मोदी ने हमारे हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र के प्रति पहल का ब्योरा दिया, जो इस क्षेत्र के देशों और इस क्षेत्र के बाहर के देशों के बीच हिन्द-प्रशांत महासागर के समुद्री क्षेत्र में सहयोग की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।

अपना वक्तव्य समाप्त करने से पहले मैं अंतरिक्ष सुरक्षा का संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूँ, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का एक और महत्वपूर्ण आयाम है। अंतरिक्ष क्षेत्र आज हमारे दैनंदिन जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। अंतरिक्ष क्षेत्र प्रौद्योगिकी, सतत विकास की दिशा में हमारे प्रयासों का एक अभिन्न अंग है। हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश का सामाजिक और आर्थिक विकास एवं इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हमने अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई की है। हमने अंतरिक्ष के हथियारकरण और उसमें मौजूद हथियारों की होड़ को रोकने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का भी समर्थन किया है।

अगले कुछ हफ्तों में, आपको निरस्त्रीकरण और हथियारों के नियंत्रण से संबंधित विभिन्न विषयों पर विद्वानों, राजनयिकों और वैज्ञानिकों के साथ जुड़ने का मौक़ा मिलेगा। मुझे आशा है कि आप इस अवसर का लाभ केवल अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि साथी राजनयिकों के साथ संबंध बनाने के लिए भी करेंगे जो जीवन पर्यंत बना रहेगा l

 

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